ब्रज क्षेत्र की पहचान भगवान श्री कृष्ण से है, लेकिन यहां की सुप्रसिद्ध चौरासी कोस यात्रा के तहत कई स्थानों पर भगवान शिव के भी ढेरों चिह्न मौजूद हैं. राधा और कृष्ण की लीलाओं के सबसे बड़े साक्षी के रूप में भोलेनाथ को माना जाता है. यहां तक कि इस ब्रज क्षेत्र में भगवान केदारनाथ को परलक्षित करता हुआ एक महत्त्वपूर्ण स्थान भी है. माना जाता है कि द्वापर काल से ही ब्रज में भगवान केदारनाथ विराजमान हैं और आज तक अपने उसी दिव्य और विचित्र स्वरूप के दर्शनों से भक्तों को आनन्दित कर रहे हैं.
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जानकार बताते हैं कि ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग में राजस्थान और हरियाणा राज्य का क्षेत्र भी आता है. राजस्थान की सीमा क्षेत्र से करीब 14 कोस की परिक्रमा के अंदर ही ये तमाम तीर्थस्थल यहां मौजूद हैं. इस पूरे क्षेत्र को स्थानीय भाषा में कामां कहते हैं जो कि काम्यवन का ही एक अपभ्रंश है. यह ब्रज चौरासी कोस के बारह वनों में से एक है. चौरासी कोस परिक्रमा के तहत राजस्थान की सीमा में इस स्थान से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद गांव विलोंद के निकट एक पर्वत पर भगवान केदारनाथ शेषनाग रूपी एक विशाल श्वेत पत्थर की चट्टान के नीचे छोटी से गुफा में विराजमान हैं.
इस चट्टान की तलहटी में गौरीकुंड स्थित है। इस कुंड के जल से जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है. मंदिर करीब 500 फुट की ऊंचाई पर है और करीब साढ़े चार सौ सीढ़ियां चढ़कर श्रद्धालु दर्शनों के लिए मंदिर तक पहुंचते हैं. गुफानुमा मंदिर में पत्थर से बना विचित्र शिवलिंग है. लाल पत्थर के शिवलिंग में भगवान शिव के तीनों नेत्र, मस्तक, मुख, नाक, होंठ, चन्द्रमा, गंगा नदी, कुण्डल, सांप और रुद्राक्ष की माला इत्यादि स्पष्ट दिखाई देते हैं. मंदिर के समीप की एक पहाड़ी पर नंदी स्वरूप विशालकाय शिला मौजूद है. मंदिर से ठीक पहले एक पत्थर पर प्राकृतिक रूप से गणेश भगवान की छवि भी मौजूद है. शिवलिंग की सुरक्षा के लिए उनके ऊपर शेषनाग के रूप में एक पहाड़ मौजूद है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पालनकर्ता नंद बाबा और यशोदा ने अपनी वृद्धावस्था में कृष्ण के सम्मुख चारों धामों की तीर्थयात्रा की इच्छा जताई थी. यह जानकर श्रीकृष्ण ने सभी धामों से बृज क्षेत्र में प्रतिस्थापित होने का आह्वान किया. तब से यह मान्यता है कि चारों धाम के साथ अन्य तीर्थों के प्रतिरूप ब्रज क्षेत्र में आज भी मौजूद हैं. स्थानीय इतिहासकारों के अनुसार, द्वापर युग में जब वृद्ध नंद बाबा और यशोदा को संतान नहीं हुई, तो उन्होंने भगवान शिव शंकर से मन्नत मांगी कि पुत्र होने पर वे चार धाम की यात्रा करेंगे.
इसके बाद करीब-करीब वृद्धावस्था में श्रीकृष्ण उनके यहां छोटे बालक के रूप में अवतरित हुए. कृष्णत की गौचरण लीला के बाद नंद बाबा और यशोदा को चारधाम की यात्रा का संकल्प याद आया. इसके बाद उन्होंने तीर्थ यात्रा पर जाने की तैयारी शुरू कर दी। लेकिन, श्रीकृष्ण ने योग माया से चारों धामों का आह्रान कर उन्हें ब्रज में ही बुला लिया और एक-एक करके सारे तीर्थ ब्रज में आकर उपस्थित हो गए. इसलिए, माना जाता है कि चारों धामों के साथ अन्यर तीर्थ भी ब्रज में ही हैं. उन्हीं एक धाम में से केदारनाथ धाम की भी यहां इस रूप में मौजूदगी है.
नजदीकी नंदगांव में श्री नंदबाबा मंदिर के सेवायत सुशील गोस्वामी बताते हैं कि पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान अभी तक उपेक्षित ही रहा है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की निगाह भी अभी तक इस पर नहीं पड़ी है. स्थानीय लोग अपने प्रयासों से ही इसकी देखभाल करते रहते हैं. यहां सावन के महीने में आने वाले सभी सोमवारों को विशेष पूजा और महाशिवरात्रि पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. इसके साथ ही, कार्तिक मास में 84 कोस परिक्रमा के दौरान बड़ी संख्या में देशी-विदेशी भक्त यहां दर्शनों के लिए पहुंचते हैं.