रामायण की कहानी (ramayan story) के बारे में हम सभी जानते हैं. शायद ही ऐसा कोई हो जिसे इस बारे में न पता नहीं. असत्य पर सत्य की विजय की ये कहानी आज भी हमें बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है. प्रभु श्री राम ने लंका (lanka gather) में सुबेल पर्वत पर अपनी सेना के साथ डेरा डाल दिया था. जहां युवराज अंगद और हनुमान जी (lanka incident during gathering) प्रभु की सेवा करने लगे. दक्षिण दिशा की ओर देखने पर जब उन्हें पता लगा कि लंका की चोटी पर स्थिति महल में महफिल सजी है और रावण नाच गाना देख रहा है तो, प्रभु ने चमत्कार करने का विचार किया.
उन्होंने अपने धनुष से उस ओर साधते हुए एक बाण चलाया जिसने रावण का छत्र मुकुट और मंदोदरी (ram katha interesting fact) के कान के बाले काट दिए और बाण वापस भी आ गया. जिसे लोगों ने अपशकुन मान लिया. लेकिन, अभिमानी रावण ने हंसते हुए कहा कि आप लोग भयभीत बिल्कुल भी न हों. सिरों का गिरना भी जिसके लिए शुभ होता रहा है, उसके लिए मुकुट का गिरना कैसे अपशकुन (ramayan story) हो सकता है.
मंदोदरी ने की प्रभु श्री राम के विश्वरूप की व्याख्या -
लंका की महारानी मंदोदरी ने अपने पति यानी कि लंका के राजा रावण को प्रभु श्री राम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि लोभ उनके होठ हैं तो, यमराज भयानक दांत हैं. माया उनकी हंसी है और चौकीदार भुजाएं हैं. अग्नि उनका मुख है और वरुण जीभ है. उत्पत्ति पालन और प्रलय उनकी क्रिया है. अठारह प्रकार की असंख्य वनस्पतियां उनके रोएं हैं, पर्वत हड्डियां और नदियां नसों (shri ram) का जाल है. समुद्र पेट और नरक नीचे की इंद्रियां हैं. इस प्रकार प्रभु विश्वमय हैं, मंदोदरी ने कहा उनके बारे में इससे अधिक कल्पना और क्या की जाए.
मंदोदरी ने रावण से कहा, श्री राम को मनुष्य मानने की भूल न करें -
जब से कान के बाले टूट कर गिरे, मंदोदरी सबसे अधिक सोच में पड़ गईं. अनहोनी की आशंका में उनकी आंखों में पानी भर आया. उन्होंने हाथ जोड़कर रावण से प्रार्थना की, हे प्राणनाथ, श्री राम का विरोध छोड़ दीजिए. उन्हें मनुष्य मानकर मन में जिद्द न पकड़े रहिए. मेरी इस बात पर विश्वास कीजिए कि रघुकुल शिरोमणि श्री राम चंद्र विश्वरूप हैं. उनके अंग-अंग में वेद विभिन्न लोकों की कल्पना करते हैं. पाताल उनके चरण हैं और ब्रह्मलोक उनका सिर है. बीच के सभी लोकों का विश्राम उनके अंग-अंग में है. सूर्य उनके नेत्र हैं और बादलों के समूह उनके बाल हैं. उनकी भौहों का चलना ही काल है. अश्वनी कुमार उनकी नाक के समान हैं और उनकी पलक के खुलने और बंद करने से रात और दिन होते हैं. वेद कहते हैं कि दसों दिशाएं उनके कान हैं. वायु उनकी श्वांस है और वेद तो उनकी वाणी (mandodri) में बसते हैं.