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जाने 'मंथरा' दासी के बारे में जिसने बदल दी 'भगवान राम' की ज़िंदगी

आइये मिलते है रामायण की एक महत्वपूर्ण पात्र 'मंथरा' से जो थी तो एक कुबड़ी , कुरूप स्त्री और एक दासी। लेकिन मंथरा रामायण की मुख्य धारा थी जिसकी वजह से पूरे 'रामायण' की शुरुआत हुई।

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Vineeta Mandal
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जाने 'मंथरा' दासी के बारे में जिसने बदल दी 'भगवान राम' की ज़िंदगी

मंथरा दासी

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आइये मिलते है रामायण की एक महत्वपूर्ण पात्र 'मंथरा' से जो थी तो एक कुबड़ी , कुरूप स्त्री और एक दासी। लेकिन मंथरा रामायण की मुख्य धारा थी जिसकी वजह से पूरे 'रामायण' की शुरुआत हुई।

आखिर कौन थी 'मंथरा'
मंथरा राजा दशरथ की सबसे प्रिय और और सुंदर रानी कैकेयी की दासी थी जिसे विवाह के बाद उनके पिता ने उन्हें दहेज़ में दिया था। बताया जाता है कि कैकेयी को बचपन से मंथरा ने ही पाला-पोसा और उनका ख्याल रखा था इसलिए उन्हें वो अपनी बेटी सामान मानती थी वही रानी कैकेयी भी की भी वो अत्यधिक प्रिय दासी थी। वाल्मीकि रामायण की माने तो मंथरा एक गंधर्व कन्या (अप्सरा) थी जिसे इंद्र ने राम जी को वनवास हो इसके लिए ही पहले से ही कैकयी के पास भेज दिया था। हालांकि वो कहा से आई थी किसी को नहीं पता था, उसी के चलते कैकयी की माँ भी अपने पति से विद्रोह करती थी और पति ने उसे मायके भेज दिया था।

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'रामायण' में क्या थी उनकी भूमिका

जब राजा दशरथ राम को राजा बनाने के साथ उनके राज्याभिषेक की घोषणा करते है तब उस मंथरा ने ही कैकेयी को भड़का कर इसमें विघ्न डाला था। क्योंकि श्री राम के राजा बनने की बात का सोचकर वो सोचने लगी की राम राजा बनेंगे तो कौशल्या राजमाता कहलाएगी और तब कैकेयी नहीं बल्कि कौशल्या रानियों में श्रेष्ठ हो जाएगी। फिर मैं नहीं बल्कि उनकी दासियां मुझसे श्रेष्ठ हो जायेगी और फिर कोई भी मेरा सम्मान नहीं करेगा। फिर मंथरा ने कैकेयी को भड़काना शुरू किया और कहा, 'रानी आप यह मत भूलिए राम अगर अयोध्या के राजसिंहासन के अधिकारी बने तो भरत राज परम्परा से अलग हो जाएंगे' अपने बेटे के भविष्य को अंधकार में देखते हुए रानी कैकेयी ने मंथरा से सलाह ली कि उन्हें क्या करना चाहिए तब मंथरा ने उन्हें राजा से अपने दो वचन की बात को याद दिलाते हुए राजा दसरथ से उन वचनों में राम के वनवास और भरत के लिए राजसिंहासन मांग लेनी की सलाह दी। उसके बाद कैकेयी ने बिलकुल वैसा ही किया जैसे मंथरा ने कहा था और रघुवर कुल की परम्परा के हिसाब से राजा दशरथ को अपने वचनों का पालन कर राम को वनवास और भरत को राजसिंहासन देना पड़ा। 

इसके बाद ही राम ने अपने वनवास के दौरान सभी राक्षस-असुरों का विनाश कर लंका पर भी विजय प्राप्त किया था। बताया जाता है कि जब दशरथ ने राम को राजा बनाने का निश्चय किया और अवध में तैयारियां शुरू हुई, देवता घबरा गए। क्योंकि उनका उद्देश्य था राम वन में जाए ताकि रावण सहित अन्य राक्षसों का वध हो सके क्योंकि यही कारण था कि राम का अवतार हुआ था। लेकिन जब राज्यभिषेक की तैयारी शुरू हुई। तब राम को वन भेजने के उद्देश्य से देवताओं ने ज्ञान की देवी सरस्वती के जरिए कैकयी की दासी मंथरा की मति फेर दी और उसने कैकयी को भड़का दिया। गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपनी रामचरितमानस के अयोध्याकांड में इसके पीछे देवताओं की भूमिका का भी उल्लेख किया गया है।

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Source : News Nation Bureau

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