भगवान शिव या भोलेनाथ (bholenath) को सृष्टि के पालनहार के रूप में जाना जाता है. उनके मात्र आशीर्वाद से ही सबके दुख दूर हो जाते हैं. माना जाता है कि भगवान शिव भक्तों के जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. कल यानी 14 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो रहा है. ऐसे में भगवान शिव की आराधना करने से भक्तों को सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है. पुराणों में भगवान शिव के 19 अवतारों के विषय में बताया गया गया है लेकिन, भगवान शिव के (Lord Shiva avatara) ऐसे भी अवतार हैं जिनका जन्म विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था. तो, चलिए उन अवतारों (Bhagwan Shiv ke Avatar) के बारे में जानते हैं.
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यतिनाथ भगवान का अवतार -
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने यतिनाथ का जन्म बड़े ही खास उद्देश्य के लिए हुआ था. उन्होंने ये अवतार भील दंपत्ति की परीक्षा लेने के लिए लिया था. जो भगवान शिव के भक्त थे. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, अर्बुदांचल पर्वत के पास आहूक और आहूका भील नाम के शिव भक्त रहते थे. वहीं वास करते थे. एक दिन यतिनाथ भगवान आहूक और आहूका भील के घर पहुंचें. आहूक ने अपना धनुष बाण उठाया और शिकार के लिए निकल पड़ा. सुबह यतिनाथ और आहूका ने देखा की आहूक को वन्य जीवों ने मार दिया. अपने पति की मृत्यु से आहूका इतना आहत हुई कि वह भी मुखाग्नि में बैठ गई. तब यतिनाथ भगवान ने दर्शन दिया और वरदान दिया कि वे अगले जन्म में भी पति-पत्नी (yatinath avtar) ही रहेंगे.
भगवान वृषभ देव का अवतार -
भगवान शिव ने ये रूप का अवतरण एक खास उद्देश्य के लिए लिया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु दैत्यों का वध करने पाताल लोक पहुंचे, तो वहां मौजूद स्त्रियां उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं. जो दैत्य उत्पात मचा रहे थे. वे भगवान विष्णु के पुत्र थे. जिनका जन्म इन्हीं स्त्रियों से हुआ था. जब ब्रह्म देव भगवान शिव के पास समाधान के लिए पहुंचे तब महादेव ने वृषभ रूप धरण किया और दैत्यों (rishabh dev avtar) का संहार किया.
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पिप्लाद अवतार -
भगवान शिव ने पिप्लाद अवतार लिया. जिसके बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि पिप्लाद नाम भगवान शिव को खुद ब्रह्मदेव ने दिया था. पिप्लाद देव ने देवी-देवताओं से पूछा कि मेरे पिता मुझे जन्म के पहले छोड़ कर चले गए. इसके पीछे क्या कारण है. देवी-देवता ने बताया कि ऐसा शनि की कुदृष्टि के कारण हुआ. इस बात को सुनकर पिप्लाद देव बहुत नाराज हुए और उन्होंने शनिदेव को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दिया. उनके श्राप से शनिदेव आकाश से गिरने लगे. ये देखकर देवी-देवताओं ने पिप्लाद देव शनिदेव को माफ करने के लिए कहा. तब, पिप्लाद देव ने शर्त रखी कि 16 साल की उम्र तक वे किसी को भी कष्ट ना दें, तभी से मान्यता प्रचलित हुई की शनि के कुप्रभाव से बचना हो तो पिप्लाद देव का ध्यान (piplad avtar) करना चाहिए.
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कृष्णदर्शन का अवतार -
भगवान शिव ने धरती पर धर्म और यज्ञ का महत्व समझाने के लिए इस रूप में धरती पर अवतरण लिया था. यही वजह है कि उन्हें 'धर्म' का प्रतीक भी माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, श्राद्ध देव के पुत्र राजा नभग ने यज्ञ को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया. इसके बाद ब्रह्मणों ने राजा नभग को अभीष्ट धन दिया और वे वहां से चले गए. इस घटना के कुछ देर बाद ही कृष्णदर्शन प्रकट हुए और उन्होंने राजा नभग को अभीष्ट धन देने के लिए कहा. इन दोनों के बीच इस विषय पर गंभीर चर्चा हुई. अंत में भगवान शिव को इस बात का निर्णय राजा नभग को अपने पिता से लेने के लिए कहा. तब श्राद्ध देव (krishnadarshan avtar) ने बताया कि ये स्वयं महादेव हैं जो परीक्षा के लिए अवतरित हुए हैं. तब राजा नभग ने उन्हें अभीष्ट धन सौंप दिया.