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Siddha Kunjika Stotra Benefits: इस स्तोत्र का रोजाना करेंगे पाठ, मिलेंगे अद्भुत और चमत्कारी लाभ

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) को परम कल्याणकारी माना गया है. इस स्त्रोत के पाठ से मनुष्य की बड़ी से बड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं. ये स्तोत्र श्रीरुद्रयामल के गौरी तंत्र में शिव पार्वती संवाद (stotra benefirts) के नाम से वर्णित है.

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Megha Jain
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Siddha Kunjika Stotram

Siddha Kunjika Stotram( Photo Credit : social media)

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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha kunjika stotram) को परम कल्याणकारी माना गया है. इसका पाठ करने से लोगों को चमत्कारिक रूप से कष्टों से मुक्ति मिलती है. साथ ही उनकी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं. ये स्तोत्र श्रीरुद्रयामल (siddha kunjika stotram benefits) के मन्त्र से सिद्ध है. इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं होती. ये एक अद्भुत स्तोत्र है, जिसका प्रभाव बहुत चमत्कारी होता है. इस स्त्रोत के पाठ से मनुष्य की बड़ी से बड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं. ये स्तोत्र श्रीरुद्रयामल के गौरी तंत्र में शिव पार्वती संवाद के नाम से वर्णित है. यदि दुर्गा सप्तशती का पाठ मनुष्य को कठिन लगे या पढ़ने का समय न हो तो उसे सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddh Kunjika Stotra) का पाठ करना चाहिए. ये सरल होने के साथ ही कम समय में बहुत ही प्रभावकारी असर दिखाता है. 

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माना जाता है कि इस पाठ के मंत्रों में बीजों का समावेश है और बीज किसी भी मंत्र की शक्ति माने जाते हैं. इनमें इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि दुर्गा सप्तशती का पाठ आपको कठिन लगे या पढ़ने का समय न हो, तो आपको सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना चाहिए.ये सरल (Importance of Siddha Kunjika Stotra) होने के साथ ही कम समय में असर फलदाई माना जाता है. तो, चलिए सिद्ध कुंजिका स्तोत्र जानते हैं.    

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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र - (Siddha Kunjika Stotra)

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।

पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।

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अथ मंत्र :-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:

ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''

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।।इति मंत्र:।।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।

धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।

इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।

यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।

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