Shiv Puran Brahma Story: जब ब्रह्म देव के झूठ ने छीन लिया उनसे भगवान का पद, गंवा बैठे थे अपना सिर

ब्रह्मा जी (brahma ji) के चार सिर हैं. उन्होंने हर मुख से एक वेद की रचना की है. बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी के पांच मुख (brahma ji head cut) थे. इस कथा का वर्णन शिव पुराण (shiv puran) में मिलता है.     

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Megha Jain
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brahma ji head cut

brahma ji head cut( Photo Credit : social media)

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ब्रह्मा जी (brahma ji) के चार सिर हैं. उन्होंने हर मुख से एक वेद की रचना की है. इस तरह से चार वेद (shiv puran kissa) हुए हैं. बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी के पांच मुख थे. अगर ये बने रहते तो शायद पांच वेदों की रचना होती लेकिन एक घटनाक्रम में ब्रह्मा जी के इसी पांचवें मुख (vishnu ji and brahama ji fight) ने असत्य बोला था. दंडस्वरूप भगवान भोले नाथ ने भैरव को आदेश देकर इसे कटवा दिया. इस कथा का वर्णन शिव पुराण (shiv puran) में मिलता है.     

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ब्रह्मा जी ने खुद को बताया ईश्वर -  

एक बार भगवान विष्णु शेष शय्या पर शयन कर रहे थे. तभी वहां ब्रह्मा जी पहुंचे. उन्होंने उन्हें पुत्र कहकर संबोधित किया और खुद को उनका ईश्वर कहा. भगवान विष्णु भी कुपित हुए. बोले-तुम तो मेरे नाभिकमल से पैदा हुए हो, इसलिए तुम्हारा ईश्वर तो मैं ही हूं. रजोगुण से मुग्ध दोनों ईश्वरों में इसी बात को लेकर युद्ध शुरू हो गया. ब्रह्मा जी हंस पर और विष्णु भगवान गरुड़ पर सवार होकर काफी समय तक युद्ध करते रहे. यह देखकर देवता घबरा गए. बोले- आप दोनों ही अराजकता पैदा कर रहे हो, इसलिए अब हम शिवजी (fight between vishnu ji and brahama ji) की शरण में जाते हैं. देवता शिव जी के पास पहुंचे.  

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झूठ बोलने पर काटा सिर -

ब्रह्मा जी ने खुद को ईश्वर साबित करने के लिए झूठ का सहारा लिया था. आकाश से केतकी का फूल लाकर कहा - मैंने लिंग का आदि पा लिया है. उनका छल देख शिव जी तुरंत प्रकट हो गए और भैरव की उत्पत्ति करके उन्हें मिथ्याभाषी ब्रह्मा को दंड देने का आदेश दिया. भैरव ने अपनी तलवार से तुरंत ब्रह्मा जी का वह सिर काट दिया. जिससे उन्होंने झूठ (why bhairav cut brahma ji head) बोला था.       

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सुलह के लिए आए भगवान शिव -

भोलेनाथ सब पहले से ही जानते थे. उन्होंने देवताओं को आश्वस्त किया और युद्धस्थल पर पहुंचे. देखा जाए तो दोनों ईश्वर एक दूसरे पर माहेश्वर और पाशुपत अस्त्र चला चुके थे. शिव जी ने तुरंत लिंग रूप धारण किया और दोनों अस्त्रों के बीच जा खड़े हुए. लिंग का स्पर्श पाते ही दोनों अस्त्र शांत हो गए. लिंग का ओर-छोर नहीं दिख रहा था. आदि अंत जानने के लिए ब्रह्मा जी हंस रूप में आकाश की ओर तो विष्णु जी शूकर रूप में पाताल को निकले, पर आदि (shiv puran kissa) अंत न मिला.         

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