Devshayani Ekadashi 2022 Katha: 10 जुलाई के दिन रखा जाएगा देवशयनी एकादशी का व्रत, पढ़ें ये कथा

इस बार देवशयनी एकादशी (devshayani ekadashi 2022) 10 जुलाई को पड़ रही है. इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी (hashayani ekadashi 2022) के नाम से भी जाना जाता है.

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Megha Jain
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devshayani ekadashi 2022 katha

devshayani ekadashi 2022 katha( Photo Credit : social media )

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सनातन धर्म में एकादशी का बहुत महत्व होता है. ये आषाढ़ माह (ashadh month 2022) के शुक्ल पक्ष की एकादशी (ekadashi 2022 vrat) को पड़ती हैं. इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा में चले जाते हैं. फिर, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं. इस चार महीने (devshayani ekadashi 2022 ashadh month) की अवधि को ही चतुर्मास के नाम से जाना जाता है. इस दौरान सभी तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है. इस बार देवशयनी एकादशी 10 जुलाई को पड़ रही है. इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी (hashayani ekadashi 2022) के नाम से भी जाना जाता है. तो, चलिए इस दिन का व्रत (devshayani ekadashi 2022 vrat) रखने से पहले उसकी कथा पढ़ लें. 

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देवशयनी एकादशी 2022 कथा (devshayani ekadashi 2022 katha)  

एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि सतयुग में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे. उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी. राजा इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है. उनके राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा. इससे चारों ओर त्राहि त्राहि मच गई. धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिण्डदान, कथा व्रत आदि सबमें कमी हो गई. दुखी राजा सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है जिसका दण्ड पूरी प्रजा को मिल रहा है. फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का उपाय खोजने के लिए राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए. वहां वह ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम कर सारी बातें बताईं. उन्होंने ऋषिवर से समस्याओं के समाधान का तरीका पूछा तो ऋषि बोले− राजन! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है. इसमें छोटे से पाप का भी भयंकर दण्ड मिलता है. 

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ऋषि अंगिरा ने कहा कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें. इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी. राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का पूरी निष्ठा के साथ व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई और अकाल दूर हुआ तथा राज्य में समृद्धि और शांति लौटी इसी के साथ ही धार्मिक कार्य भी पूर्व की भांति आरम्भ हो गए.

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