सावन (sawan 2022) का महीना चल रहा है. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसके बारे में शायद ही आपने सुना हो. जी हां, ये मंदिर भगवान शिव का है. उनका ये प्रसिद्ध दियावांनाथ मंदिर (Diyawannath Temple) सावन और शिवरात्रि में श्रद्धा और भक्ति का बड़ा केंद्र बन जाता है. मंदिर में इन दिनों हजारों की संख्या में तड़के से ही भक्तों (Diyawannath Temple in UP) का तांता लगा रहता है. सावन के सोमवार को भक्तों की इतनी भीड़ बढ़ जाती है कि व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन को काफी मेहनत करनी पड़ती है. प्रयागराज से गंगा और आसपास इलाके की पवित्र नदियों से जल लाकर कांवड़िए दियावांनाथ का अभिषेक करते हैं.
शत्रुघ्न ने की थी शिवलिंग की स्थापना -
श्री राम ने अपने तपोबल से शत्रुघ्न को सेना सहित मूर्छित से वापस सामान्य किया. शत्रुघ्न ने गुरू वशिष्ठ से वाणासुर को पराजित करने का उपाय पूछा. वशिष्ठ ने शत्रुघ्न को एक विशेष शिवलिंग की स्थापना का निर्देश दिया. गुरू की आज्ञा से शत्रुघ्न ने इस शिवलिंग की स्थापना की और इनका नाम दीनानाथ महादेव पड़ा. बाद में इनका नाम दियावांनाथ महादेव (diyawan nath temple history) प्रचलित हो गया.
बसुही नदी के किनारे है मंदिर -
दियावांनाथ की मान्यता ज्योतिर्लिंग के तरह की ही है. ये जागृत शिवलिंग त्रेता काल से ही उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के बरसठी इलाके में बसुही नदी के किनारे स्थापित है. पंगुलबाबा कुटी, करियांव, मीरगंज के महंत ब्रह्मचारी आत्मानंद जी का कहना है कि ये शिवलिंग भगवान श्रीराम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न द्वारा स्थापित है.
वाणासुर का था राज -
उनका कहना है कि त्रेता युग में ये क्षेत्र घने वन से घिरा हुआ था और यहां वाणासुर नामक राक्षस का शासन चलता था. उस पर नियंत्रण पाने के लिए शत्रुघ्न सेना समेत यहां आए और वाणासुर से युद्ध किया. ये संग्राम कई महीनों तक चला. इस दौरान वाणासुर ने अपनी मायावी और आसुरी शक्ति से शत्रुघ्न को सेना सहित मूर्छित कर दिया. जब ये सूचना प्रभु श्रीराम को मिली तो वो गुरू वशिष्ठ के साथ (UP Diyawannath Temple) यहां पधारे.
500 साल पहले मिला मंदिर -
रिपोर्ट्स के मुताबिक, त्रेता युग का शिवलिंग मध्यकाल तक आते-आते घने झुरमुट में छिप गया. करीब पांच सौ साल पहले क्षेत्र के सूबेदार दुबे की गाय शिवलिंग पर अपना दूध स्वयं चढ़ा देती थी. ये रहस्य किसी को मालूम नहीं था. एक बार सूबेदार दुबे ने अपनी गाय को शिवलिंग पर दूध अर्पित करते देख लिया. इसके बाद शिवलिंग के महात्म्य के बारे में क्षेत्र में चर्चा तेज हुई और लोगों ने शिवलिंग की खुदाई शुरू कर दी, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली. कुछ दिन के बाद एक भक्त को इस स्थान पर मंदिर स्थापित करने का स्वप्न आया, जिसके बाद भगौती प्रसाद मिश्र पंडा के नेतृत्व में दियावांनाथ मंदिर (Diwana Mahadev) की स्थापना हुई.