शिवलिंग की पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. शिवलिंग अलग-अलग आकारों में पाए जाते हैं. कुछ शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga) के रूप में जाना जाता है तो अन्य शिवलिंगों को स्वयंभू (Svayambhu) के रूप में जाना जाता है, अर्थात ये प्राकृतिक रूप से निर्मित होते हैं. भक्त शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र और अन्य पवित्र वस्तुएं चढ़ाते हैं. शिवलिंग को अक्सर ब्रह्मांड स्तंभ (cosmic pillar) के रूप में माना जाता है, जो सृष्टि का स्रोत और अनंत का प्रतीक है. भगवान शिव, साक्षात, अनंत, निराकार और निर्गुण आदि योगी हैं. सम्पूर्ण ब्रह्मांड में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जो भगवान शिव को ना जानता हो, लेकिन भगवान शिव के सत्य स्वरूप को जानना सबके बस की बात नहीं है. हम शिवलिंग की पूजा तो करते हैं लेकिन ज्यादातर यह नहीं जानते हैं कि शिवलिंग का वास्तविक अर्थ क्या है? शिवलिंग क्यों पूजनीय है? शिवलिंग का आकार ऐसा ही क्यों है? शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ क्या है और शिवलिंग से हमें क्या बोध मिलता है?
सबसे पहले हम शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ क्या है वह समझते हैं. शिवलिंग में शिव का अर्थ होता है परम शुद्ध चेतना परमेश्वर या परम तत्व और लिंग का अर्थ होता है निशान चिन्ह और प्रति. शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव, परमात्व का चिन्ह या प्रति शिवलिंग एक ऊर्जा का स्वरूप है जिसमें एक या एक से ज्यादा चक्र मौजूद होते हैं. ज्यादातर ज्योतिर्लिंग में एक या दो चक्र प्रतिष्ठित है. ध्यान लिंग में सभी सातों चक्र परम तक प्रतिष्ठित है. लिंग शब्द का मतलब है आकार. हम इसे आकार इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जो अप्रकट है, वो जब खुद को प्रकट करने लगता है या दूसरे शब्दों में कहें तो जब सृष्टि की उत्पत्ति शुरू हुई तो जो सबसे पहला आकार इसने लिया था वो एक दीर्घवृताकार था. एक पूर्ण दीर्घवृत या इल्लिप्स को हम एक लिंग कहते हैं.
सृष्टि की शुरुआत हमेशा एक दीर्घवृत या एक लिंग के रूप में हुई और उसके बाद ये कई रूपों में प्रकट हुई और हम अपने अनुभव से यह जानते हैं कि जब आप ध्यान की गहरी अवस्था में जाते हैं तो पूर्ण विलीन होने वाला बिंदु आने से पहले ऊर्जा एक बार फिर एक दीर्घवृत या एक लिंग का रूप ले लेती है. संस्कृत भाषा में लिंग का अर्थ प्रतीक होता है और इसलिए शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक. इसलिए शिवलिंग को भगवान शिव के पवित्र प्रतीक के रूप में पूजा जाता है.
इस ब्रह्माण में सिर्फ दो चीजें सत्य रूप से मौजूद हैं, एक है ऊर्जा और दूसरा है पदार्थ. हमारा शरीर मिट्टी से मिलकर बना है जो कि 1 दिन इसी मिट्टी में मिल जाएगा. इसलिए इसे पदार्थ कहा जाता है लेकिन शरीर के अंदर की आत्मा अमर होती है. वो शक्तिशाली है इसलिए उसे ऊर्जा कहा गया है. इसलिए शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का रूप धारण करके शिवलिंग का आकार ग्रहण करते हैं. आपको बता दें कि शिवलिंग की पूजा 2300 ईसा पूर्व से होती आ रही है, जिसके प्रमाण सिंधु घाटी की सभ्यता की खुदाई के दौरान सामने आए थे. आपको जानकर हैरत होगी कि शिवलिंग की पूजा केवल भारत में ही नहीं होती थी बल्कि प्राचीन रोमन सभ्यता के लोग भी शिवलिंग को पूजते थे. बेबी लोन में खुदाई के दौरान भी शिवलिंग मिले थे, जो इस बात की पुष्टि भी करते हैं.
शिवलिंग का अर्थ मुख्यतया ब्रह्मांड से है जिसका ना तो कोई आदि है और ना ही कोई अंत. अर्थात ब्रह्मांड सीमाओं से परे है वो इसकी कहीं से भी शुरुआत नहीं होती वो ना ही इसका कहीं अंत होता है. अगर हम प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग के संदर्भ में चर्चा करें तो उन सभी का आकार एक दूसरे से भिन्न है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अलग अलग उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अलग अलग शिवलिंग बनाए गए हैं. कुछ शिवलिंगों को स्वास्थ्य के लिए बनाया गया है. कुछ को विवाह के लिए वह कुछ को ध्यान साधना के लिए स्थापित किया गया है. वायु पुराण के अनुसार प्रलय काल में समस्त सृष्टि जिनमे लीन हो जाती है और पुनः सृष्टिकाल में जिससे. प्रकट होती है, उसे लिंग कहते है.
इस प्रकार विश्व की सम्पूर्ण ऊर्जा ही लिंग का प्रतीक है. पौराणिक दृष्टि से लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाक्य महादेव स्थित है. केवल लिंग की पूजा करने मात्र से समस्त देवी देवताओं की पूजा हो जाती है. लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है. शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है शिवलिंग.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau