Premananda Ji Maharaj: हिंदुओं के लिए सनातन धर्म का खास महत्व है. प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार क्या है सनातन धर्म अगर आप ये जान लेंगे तो आप जीवन में इन तीन बड़ी गलतियों को करने से बच जाएंगे. इतना ही नहीं आप इसी मार्ग पर चलकर सच्चे सनातनी भी कहलाएंगे. सनातन धर्म क्या है (what is Sanatan Dharma) सनातन धर्म वेद हैं. भगवान का सच्चा स्वरूप क्या है? श्री हरि वेद रूप में विद्यमान हैं. इसलिए, सनातन धर्म वेद हैं, सनातन धर्म श्री हरि हैं, और सनातन धर्म ही भगवान का सच्चा स्वरूप है. उनकी इन बातों को सुनकर जिन लोगों को सनातन के बारे में सही जानकारी नहीं थी वो अब हो जाएगी. पहला लक्षण सत्य है. जो झूठ बोलते हैं, वे स्वयं को सनातन धर्म का अनुयायी कहने का अधिकार नहीं रखते. आज के समय में सौ में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो यह सोचे कि उसे झूठ नहीं बोलना चाहिए.
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि हम गर्व से कहते हैं कि हम सनातन धर्म के अनुयायी हैं परंतु सनातन धर्म का पहला लक्षण सत्य है. सत्य क्या है? भगवान स्वयं सत्य हैं. जब मृत्यु होती है तब सभी कहते हैं "राम नाम सत्य है". ब्रज में कहा जाता है "कृष्ण नाम सत्य है, गोपाल नाम सत्य है, गोविंद नाम सत्य है". आप भगवान का नाम नहीं लेते और सत्य का पालन नहीं करते, तो सनातन धर्म के अनुयायी कहलाने का आपके लिए कोई अर्थ नहीं है. रघुकुल की परंपरा हमेशा से सत्य पर आधारित रही है. अगर जीवन भी चला जाए पर वचन सत्य होना चाहिए. एक बार कहा गया वचन कभी झूठा नहीं होना चाहिए.
सत्य (Truth)
सनातन धर्म का पहला लक्षण सत्य है. सत्य भगवान नारायण, हरि, राम और कृष्ण के रूप में विद्यमान है. सत्य ही वह तत्व है जो त्रिकाल में अडिग रहता है. भगवान कृष्ण जब कारागार में प्रकट हुए, तब सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की और पहला श्लोक था "सत्य व्रतम त्र सत्यम". यह सत्य का मार्ग ही है जो भगवान का मार्ग है.
दया (Compassion)
सनातन धर्म का दूसरा लक्षण दया है. दया का अर्थ है सब पर करुणा करना, चाहे वे किसी भी परिस्थिति में हों. दया का उल्टा अहंकार और स्वार्थ है. जो यह सोचता है कि 'मैं कौन हूँ' और 'मेरा क्या है', वह दया का पालन नहीं कर सकता. एक सच्चे सनातन धर्म (Sanatan Dharm) के अनुयायी का कर्तव्य है कि वह सभी के प्रति दया भाव रखे.
तपस्या (Austerity)
सनातन धर्म (Sanatan Dharma) का तीसरा लक्षण तपस्या है. तपस्या का अर्थ है अपने धर्म का पालन करते हुए आने वाली कठिनाइयों को सहन करना. जो व्यक्ति अपने धर्म का पालन करते हुए आनंदपूर्वक कष्ट सहता है, उसे ही तपस्वी कहा जाता है. तपस्या वह होती है जब कोई व्यक्ति वासना, क्रोध आदि के प्रलोभनों को सहते हुए धर्म के मार्ग पर चलता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)