Sadhguru: सद्गुरु के चाहने वाले विश्वभर में मिल जाएंगे. साल 1982 से वे विश्व में योग सिखा रहे हैं. उन्होंने भारत की संस्कृति और इतिहास को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाया है. भारत आस्था और विश्वास का देश है. यहां सब लोग ये मानते हैं कि भगवान है, लेकिन भगवान है या नहीं इस बारे में सद्गुरु का क्या मानना है, उनका ये विचार आपकी सोच बदल सकता है. धर्म प्रचारक सद्गुरु दुनिभर में तमाम विषयों पर बातें करते हैं. किसी बॉलीवुड या हॉलीवुड स्टार्स से कहीं ज्यादा लोकप्रियता उनकी है. अध्यात्म का पाठ विश्व को पढ़ाने वाले सद्गुरु भगवान में कितना विश्वास रखते हैं. वो ये मानते हैं कि भगवान है या नहीं इस बारे में उनके क्या विचार हैं आइए जानते हैं.
विश्वास से पहले समझें अज्ञान
इससे पहले कि हम भगवान को समझने की कोशिश करें, हमें विश्वास की प्रकृति को समझना होगा। आप किसी बात पर विश्वास क्यों करते हैं? अक्सर, लोग इसलिए किसी चीज़ पर विश्वास करते हैं क्योंकि वे ईमानदारी से यह स्वीकार नहीं करना चाहते कि वे उस विषय पर कुछ नहीं जानते। जब आप किसी चीज़ को नहीं जानते और उसे जानने का बहाना बनाते हैं, तो इसे ही विश्वास कहा जाता है। एक इंसान दो ही स्थितियों में हो सकता है – या तो उसे कोई बात मालूम है या फिर नहीं मालूम। लेकिन जो बात आपको नहीं मालूम है, उसके बारे में बहाने बनाना, अनुमान लगाना या मान लेना विश्वास कहलाता है। कुछ लोग मानते हैं कि भगवान हैं, और कुछ मानते हैं कि भगवान नहीं हैं। लेकिन दोनों एक ही नाव में सवार हैं। दोनों यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि वे नहीं जानते।
मैं नहीं जानता की महानता
सद्गुरु का कहना है कि समस्या यह नहीं है कि आप नहीं जानते, समस्या यह है कि आप इसे स्वीकार नहीं करते। "मैं नहीं जानता" में एक बहुत बड़ी संभावना छिपी है। अगर आप यह मान लें कि "मैं नहीं जानता," तो जानने की इच्छा आपके भीतर जागेगी। अगर यह इच्छा जागी तो खोज शुरू होगी और खोज शुरू होने पर आपके भीतर जानने की संभावना जीवित रहेगी। लेकिन अगर आप विश्वास करते हैं कि आप पहले से जानते हैं तो जानने की संभावना समाप्त हो जाएगी। इसी कारण से विश्वास और आस्था हर जगह हैं लेकिन इस विश्वास ने लोगों को वास्तविकता से दूर कर दिया है.
उन्होने बताया कि हमारे पौराणिक कथाओं में रामायण, महाभारत, शंकर, राम, सीता आदि के पीछे इतिहास है। लेकिन आज हम यह विवाद करते हैं कि वे वास्तविक थे या नहीं। मंदिर-मस्जिद, अयोध्या जैसे मुद्दों पर भी लोग लड़ रहे हैं। यह सारी लड़ाई विश्वास की लड़ाई है. दुनिया में जितनी भी लड़ाई होती है वह अच्छे और बुरे लोगों के बीच नहीं होती बल्कि एक इंसान के विश्वास और दूसरे इंसान के विश्वास के बीच होती है। अगर आप समझते कि "मैं नहीं जानता," तो आप किसी से लड़ाई नहीं करते। जब तक आप मानते हैं कि आप कुछ जानते हैं, तब तक लड़ाई निश्चित है। सवाल केवल इतना है कि आप इसे कितने समय तक संभाल सकते हैं। एक समय था जब लोग अपने विश्वासों पर चलते थे, लेकिन आज इंसानी बुद्धिमत्ता काफी विकसित हो चुकी है। अब समय आ गया है कि हम सिर्फ विश्वासों को थोपने के बजाय लोगों में जानने की विशेष इच्छा को जगाएं.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)