आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु और सलाहकार थे. इन्होंने ही चंद्रगुप्त को अपनी नीतियों के बल पर एक साधारण बालक से शासक के रूप में स्थापित किया। आचार्य चाणक्य की अर्थनीति, कूटनीति और राजनीति विश्वविख्यात है. हर एक को प्रेरणा देने वाली है. अर्थशास्त्र के मर्मज्ञ होने के कारण इन्हें कौटिल्य कहा जाता था. आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र के जरिए जीवन से जुड़ी कुछ समस्याओं का समाधान बताया है. चाणक्य ने नीति शास्त्र में जीवन को बेहतर बनाने के तरीके के साथ ही दुष्ट लोगों से बचने के उपाय भी बताए हैं.
आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में पिता, पुत्र और जीवनसाथी के सही मायने में क्या कर्तव्य होते हैं और उमके साथ कैसे संबंध होनी चाहिए, के बारे में बताया गया है. तो आइये जानते हैं इन संबंधो के बारे में क्या कहती है चाणक्य नीति.
पुत्र को पिता का भक्त होना चाहिए
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि 'वही पुत्र है, जो पिता का भक्त है'. इस कथन का तात्पर्य यह है कि पुत्र को सदैव अपने पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए. कभी उनकी आज्ञा की अवमानना नहीं करनी चाहिए. सही मायने में वही पुत्र है जो अपने पिता की आज्ञा मानता हो और सदैव उनकी बातों का अनुसरण करे.
पिता वही जो पालन करे
एक पिता का कर्तव्य होता है कि वह अपनी संतान का सही प्रकार से भरण पोषण करे और उनकी शिक्षा, भरण पोषण एवं आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखे. एक पिता अपनी संतान का आदर्श होता है इसलिए पिता को अपने सभी कर्तव्य भलि प्रकार से पूर्ण करने चाहिए.
जीवन साथी वही जो सुख प्रदान करे
यहां पर सुख का मायने केवल शारीरिक सुख से नहीं है अपितु सही मायने में जीवन साथी वही है जो अपने साथी को प्रसन्न रख सके. तात्पर्य यह है कि जो हर परिस्थिति में साथ निभाए. सही मायने में जीवन साथी वही होता है जो अच्छे और बुरे दोनों समय में साथ खड़ा रहे और दुख की घड़ी में भी अपने साथी को सही मायनों में सुख प्रदान करे.
मित्र वही जिस पर विश्वास हो
किसी भी व्यक्ति के जीवन में मित्र का स्थान सदैव सम्मानीय होता है. चाणक्य नीति कहती है कि मित्र को अपने सुख और दुख दोनों साझा करना चाहिए. मित्र को ही व्यक्ति के बारे में अच्छी और बुरी दोनों तरह की बातें पता होती हैं, इसलिए चाणक्य कहते हैं कि सही मायने में मित्र वही है जिस पर विश्वास किया जा सके.
HIGHLIGHTS
- पुत्र को सदैव अपने पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए: चाणक्य
- सही मायने में मित्र वही है जिस पर विश्वास किया जा सके: चाणक्य