जाम्बवान जी (jambhavan) को ब्रह्मा का अंशावतार माना जाता है. भगवान की आराधना, सेवा और सहायता करने के भाव से ही उन्होंने जाम्बवान के नाम से ऋक्ष रूप (main message of Ramayana) में अवतार लिया था. दरअसल, ऋक्ष के रूप में अवतार लेने की वजह ये थी कि उन्होंने रावण को वरदान दे दिया था कि उसकी मृत्यु नर-वानर आदि के अलावा किसी देवता आदि से न हो. इसलिए, उन्होंने सोचा कि अब ऋक्ष रूप में रहकर ही रामजी (Ramayana story) की सहायता करेंगे.
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हनुमान जी को कराया शक्ति का स्मरण
भगवान के राम अवतार काल में वे श्री राम के प्रधानमंत्री बनकर रहे. रावण द्वारा सीता जी के हरण के बाद उनकी खोज करने में वे हनुमान जी के साथ रहे. जब समुद्र पार जाने की किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही थी तो, जाम्बवान ने ही हनुमान जी को उनकी शक्ति का स्मरण कराया और ये भी बताया कि उन्हें लंका जाकर क्या करना है. समय-समय पर उचित सलाह देने के साथ ही उन्होंने लंका में युद्ध किया और बहुत से राक्षसों (Ramayana story in hindi) का संहार भी किया.
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जब जाम्बवान के घर पहुंचे श्री कृष्ण
द्वापर युग में श्री कृष्ण का अवतार हुआ तब उसी समय द्वारका के एक यदुवंशी सत्राजित ने सूर्य की उपासना करके स्यामन्तक मणि प्राप्त की. एक दिन उसी मणि को पहनकर सत्राजित का छोटा भाई प्रसेन जंगल गया जहां एक सिंह ने उसे मार कर मणि छीन ली. बाद में ऋक्षराज जाम्बवान ने सिंह को मारकर वही मणि प्राप्त कर ली. इधर द्वारका में ये बात फैल गई कि श्री कृष्ण उस दिव्य मणि को चाहते थे और उन्होंने प्रसेन को मारकर मणि को ले लिया होगा. बस इसी बात पर मणि की खोज करने वे निकल (Is Ramayana an Indian story) पड़े.
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अयोध्या से नहीं जाने चागते ते अपने घर
भगवान राम के चरणों में जाम्बवान जी का इतना प्रेम था कि लंका से अयोध्या पहुंचने पर उन्होंने वहां से अपने घर जाने से इनकार कर दिया था. उनकी जिद थी कि उनके चरणों को छोड़कर वे कहीं नहीं जाएंगे. जब उन्होंने प्रभु श्री राम से द्वापर युग में आकर दर्शन देने की प्रतिज्ञा ले ली, तभी उन्होंने अपनी जिद छोड़ दी थी. घर आकर भी वे दिन-रात भगवान का ही चिंतन मनन (ramayana story summary) करते रहे.