वैशाख के महीने (vaishakh month 2022) में कालाष्टमी का व्रत 23 अप्रैल (Kalashtami 2022 Date) यानी कि शनिवार को रखा जाएगा. हर महीने की कृष्ण अष्टमी को कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है. बता दें कि महाकाल (Mahakal) के कई रूप हैं, जिन्हें अलग-अलग तरीके से पूजा और पुकारा जाता है. इन्हीं में से एक भगवान काल भैरव (Kaal Bhairav) हैं. कहते हैं कि अघोरी समाज के लोग कालाष्टमी को उत्सव की तरह मनाते हैं. कालाष्टमी व्रत वाले दिन साध्य योग, त्रिपुष्कर योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बना हुआ है. इस योग में काल भैरव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती है, कार्यों में सफलता और रोग एवं भय से मुक्ति मिलती है. जो लोग कालाष्टमी व्रत रखेंगे, उनको कालाष्टमी व्रत कथा का पाठ (Kalashtami Vrat 2022) अवश्य करना चाहिए.
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कालाष्टमी 2022 व्रत कथा (Kalashtami 2022 Vrat katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है जब भगवान ब्रह्मा, भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान महेश तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चल रही थी. इस बात पर धीरे-धीरे बहस बढ़ती चली गई. जिसको कम करने के लिए सभी देवताओं को बुलाकर एक बैठक की गई.
सभी देवताओं की मौजूदगी में हो रही इस बैठक में सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा, लेकिन उस बात का समर्थन भगवान शिव शंकर और भगवान श्री हरि विष्णु ने तो किया, लेकिन भगवान ब्रह्मा ने भोलेनाथ को अपशब्द कह दिए. इस बात पर महादेव को क्रोध आ गया.
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कहा जाता है कि भगवान शिव के इस क्रोध से उनके स्वरूप काल भैरव का जन्म हुआ. भोलेनाथ के अवतार काल भैरव का वाहन काला कुत्ता माना जाता है. इनके एक हाथ में छड़ी है. बता दें कि इस अवतार को 'महाकालेश्वर' के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति भी कहा जाता है. कथा के अनुसार, भोलेनाथ के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए थे.
कथा के अनुसार, भगवान काल भैरव ने क्रोध में भगवान ब्रह्मा के पांच मुखों में से एक मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास चार मुख ही हैं. इसी तरह ब्रह्माजी के सिर को काटने की वजह से भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप चढ़ गया था. क्रोध शांत होने पर काल भैरव ने भगवान ब्रह्मा से माफी मांगी, तब जाकर भगवान भोलेनाथ अपने (Kalashtami Vrat 2022 Puja Muhurat) असली रूप में आए.
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इसके बाद भगवान काल भैरव को उनके पापों के कारण दंड भी मिला. कहा जाता है कि इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में उनका दंड समाप्त होता है. इसका एक नाम 'दंडपाणी' (Kalashtami Vrat 2022 Puja Muhurat) पड़ा था.