कान्हा जी की ब्रजभूमि कोसीकलां से कुछ कि.मी. की दूरी पर पश्चिम में कोकिलावन (Kokilavan Shani Mandir) है. जिसके बारे में ये माना जाता है कि यहां शनि देव कोयल बनकर पेड़ों के झुरमुट में बैठ गए थे और उन्होंने छिपकर श्रीकृष्ण की रासलीला देखी क्योंकि बाल्यवस्था में श्री कृष्ण गोपियों के साथ रात को रास रचाते थे. जिसे देखने की लालसा देवताओं में बहुत रहती थी. एक बार शनि देव (kokilavan shani katha) भी रास देखने के लिए आए. क्योंकि उनका रूप बहुत भयंकर था.
इसलिए, उन्होंने कोयल पक्षी का रूप धारण कर लिया, ताकि किसी की नजर भी पड़ जाए तो कोई समस्या न आए. हालांकि, कान्हा जी ने शनि देव को पहचान लिया. तभी से शनि देव ने श्री कृष्ण के प्रियजनों को न सताने का वचन दिया था. इसलिए, सदियों से ही यहां हर शनिवार को बड़ी संख्या में दूर-दूर से लोग आते हैं. तो, चलिए अब जन्माष्टमी (Janmashtami 2022) का त्योहार भी है तो, फटाफट से कोकिलावन के बारे में जान लेते हैं.
कोकिलावन कहां है -
शनि देव के कोयल बनने की वजह से ही इस जगह को कोकिलावन कहा जाने लगा. यहां सवा कोस के बीच में वन फैला हुआ है. जहां तीर्थयात्रियों को उसकी परिक्रमा करनी होती है. यहां गांव का नाम भी कोकिलावन है. परिक्रमा मार्ग में घास के तिनके बांधने से शनि देव को प्रसन्न करने की परंपरा चली आ रही है. कोकिलावन राधा की नगरी बरसाना के पास पड़ता है और ये मथुरा से 54 किलोमीटर की दूरी पर है.
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हर शनिवार लगता है मेला -
कोकिलावन में शनि देव का बहुत प्राचीन सिद्धपीठ भी मौजूद है. जहां काले रंग की विशाल प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाया जाता है और दीपक जलाए जाते हैं. यहां हर शनिवार को भारी भीड़ रहती है. सेठ हजारों लोगों को भरपेट खाना खिलाते हैं.
सूर्य के पुत्र हैं शनि, उनका भी है कुंड -
शनि देव सूर्य के पुत्र हैं. इसलिए, यहीं पर सूर्य कुंड भी है. लोग सूर्य कुंड में जरूर स्नान करते हैं जो दो कुंड मंदिरों के पास ही बने हैं. जिनमें महिलाओं का कुंड अलग और पुरुषों का अलग है. इनकी गहराई काफी ज्यादा है और ये कभी सूखते भी नहीं हैं. रस्सियों और चेन के जरिए इनमें डुबकी लगाई जाती है. तैराक छलांग मारकर (lord krishna rasleela) नहाते हैं.