Mythological Story: आप अपने जीवन में कई बार शिव जी के मंदिर अवश्य गए होंगे, वहां आपने नंदी महाराज की मूर्ति भी अवश्य ही देखी होगी. प्रत्येक शिवालय में भगवान शिव की मूर्ति के सामने नंदी की मूर्ति होती ही है. शिव मंदिर में स्थापित नंदी महाराज के आगे के दोनों पैरों में से एक पैर शरीर के नीचे दबा हुआ और दूसरा पैर थोड़ा उचका हुआ होता है और मूर्ति इतनी जीवंत होती है कि मानो नंदी महाराज शिवजी के एक आदेश पर अभी उठकर चल देंगे. शास्त्र में कहा गया है ॐ महाकालयम, महावीर्यम, शिव, वाहन उत्तम. गणनामत्वा प्रथम वंदे नंदीश्वर महाबलम. शिव जी के सभी गनों में सर्वश्रेष्ठ नंदी शिव जी को अत्यंत प्रिय है नंदी या भगवान शिव का वाहन है. भगवान शिव ने ही नंदी को यह वरदान दिया था कि शिव जी जहां भी रहेंगे, नंदी उनके साथ हमेशा रहेंगे. इसी वरदान के कारण जितने भी शिव मंदिर हैं. सभी में आपको द्वार पर स्थापित नंदी अवश्य ही मिलेंगे.
नंदी शिव जी के वाहन कैसे बने?
शिवपुराण की प्रचलित कथा के अनुसार, शिव जी अपने भक्तों की तपस्या को कभी व्यर्थ नहीं जाने देते. ऐसे ही एक ऋषि थे जिनका नाम था शिलाद जो आजन्म गृहस्थ आश्रम से दूर रहकर सन्यासी ही बने रहना चाहते थे और ब्रह्मचार्य का पालन करने का उन्होंने संकल्प लिया था. उनके पिता को अपने पुत्र के इस निर्णय से बड़ा ही दुःख हुआ. अपने पिता को दुखी देखकर शिलादरी ने भगवान शिव की तपस्या की. शिलाद की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें नंदी को पुत्र स्वरूप प्रदान किया. शिलादी अपने पुत्र नंदी के साथ अपने आश्रम में ही रहते थे. एक बार शिलाद के आश्रम में दो संत आए थे, जिनके नाम मित्र और वरुण थे. नंदी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन दोनों संतों की बड़े ही मनोयोग से सेवा की. जब वे संत जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को तो दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया, परन्तु नंदी को नहीं दिया. शिलाद ऋषि द्वारा कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि नंदी अल्प आयु हैं, नंदी बहुत अधिक काल तक जीवित नहीं रह सकते. स्वाभाविक था कि अपने पुत्र के लिए ऐसा सुनकर शिलाद ऋषि बहुत ही दुखी हो गए. उन्हें दुखी देखकर नंदी ने उन्हें समझाया कि जब भगवान शिव की कृपा से उन्होंने नंदी को पाया है तो उनकी आयु की चिंता भी भगवान शिव ही करेंगे.
अपने पिता को तसल्ली देकर नंदी भुवन नदी के किनारे शिवजी की तपस्या में लीन हो गए. नंदी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और उनकी इच्छा पूछी. जीस पर नंदी ने उनसे वरदान मांगा कि वे आज जन्म शिव के समीप रहना चाहते हैं. ऐसा सुनकर शिव जी ने नंदी को गले लगा लिया और उन्हें बैल का चेहरा देकर अपने वाहन के रूप में स्वीकार कर लिया. इस प्रकार उस दिन से नंदी हमेशा ही भगवान शिव के साथ ही रहते हैं और शिवालय में जब वे भगवान शिव की स्थापना की जाती है तो नंदी महाराज की मूर्ति की स्थापना भी अवश्य की जाती है.
सोमवार के दिन भगवान शिव के प्रिय साथी नंदेश्वर की भी आराधना अवश्य करें. कहते हैं कि शिव मंदिर में द्वारपाल के रूप में स्थापित शिव के प्रिय नंदी महाराज आपके संदेश को शिवजी तक जरूर पहुंचाते हैं. अतः नंदी महाराज को भी प्रसन्न करना आवश्यक है. तो जब भी आप शिव मंदिर में जाएं, नंदी महाराज की भी पूरी श्रद्धा और विधिविधान के साथ पूजा करें.
हर शिव मंत्रों के उच्चारण करने के साथ ही नंदेश्वर महाराज के गायत्री मंत्र का भी अवश् जाप करें. जो इस प्रकार है ॐ तत्पुरुषाय विद्या है वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो नंदी प्रचोदयात. इस गायत्री मंत्र से नंदी महाराज अवश्य प्रसन्न होंगे और आपकी मनोकामना भगवान शिव तक जरूर पहुंचाएंगे.
मंत्र बोलें और अपनी मनोकामना को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ नंदेश्वर के बाएं कान में कहें और नंदी महाराज से उसे भगवान शिव तक पहुंचाने की प्रार्थना करें और नंदेश्वर का गायत्री मंत्र आप उनके कान में कहें. इससे नंदी बाबा बहुत प्रसन्न हो जाएंगे और आपकी इच्छा भगवान शिव तक जरूर पहुंचाएंगे.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau