अब चैत्र नवरात्रि (chaitra navratri 2022) आने वाली है. जिसमें पहले दिन मां शैलपुत्री (maa shailputri) की पूजा की जाती है. मां शैलपुत्री हिमालयराज की पुत्री हैं. शैल का मतलब पत्थर या पहाड़ होता है. नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा इसलिए की जाती है, ताकि जीवन में उनके नाम की तरह स्थिरता बनी रहे. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. दुर्गासप्तशती (maa shalputri puja vidhi) का पाठ किया जाता है. आपतो बता दें कि पुराणों में कलश को भगवान गणेश का स्वरुप माना गया है इसलिए नवरात्रि में पहले कलश पूजा की जाती है. तो, चलिए इस दिन की पूजा विधि और कथा (maa shalputri katha) के बारे में बताते हैं.
मां शैलपुत्री की कथा
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ के दौरान सभी देवताओं को आमंत्रित किया. उन्होंने भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा. लेकिन सती बिना निमंत्रण भी यज्ञ में जाने को तैयार थी. ऐसे में भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण यज्ञ में जाना ठीक नहीं. लेकिन सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी. जब सती पिता के यहां बिना निमंत्रण पहुंची और उन्हें वहां बिना बुलाए मेहमान वाला व्यवहार झेलना पड़ा. तब उनकी माता के अलावा सती से किसी ने भी सही से बात नहीं की. यहां तक की बहनें भी यज्ञ में उनकी उपहास उड़ाती रहीं. इस तरह का कठोर व्यवहार और (maa shalputri 2022 vrat katha) अपने पति का अपमान वे बर्दाश नहीं कर सकीं और क्रोधित हो गईं. इसी ग्लानि और क्रोध में आकर उन्होंने खुद को यज्ञ में भस्म कर दिया. जैसे ही ये समाचार भगवान शिव को मिला उन्होंने अपने गणों को दक्ष के भेजा और उनके यहां चल रहा यज्ञ विध्वंस करा दिया. अगले जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया. तभी से उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है.
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मां शैलपुत्री की पूजा विधि
ये तो हमने आपको बता ही दिया है कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां के इस स्वरूप को सौभाग्य और शांति का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा करने से मन शांत रहता और घर में सौभाग्य का आगमन होता (maa shalputri 2022 poja vidhi) है. इसके साथ ही मां शैलपुत्री स्थायित्व और शक्तिमान का वरदान देती हैं. प्रातः काल स्नान-ध्यान के बाद पूजा घर में दिया जलाएं.
इस दिन की पूजा विधि की बात करें तो, कलश स्थापना के बाद उसी चौकी पर श्री गणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाये) की स्थापना भी करें. इसके बाद मां के सामने हाथ जोड़कर व्रत और पूजन का संकल्प (maa shailputri kahani) लें. मां को सोलह श्रृंगार की वस्तुएं, चंदन, रोली, हल्दी, बिल्वपत्र, फूल, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, फूलों का हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा आदि अर्पित करें.