आज 1 मार्च, 2022 को पूरे देश में शिवरात्रि (Mahashivratri 2022) का त्योहार धूम-धाम से मनाया जा रहा है. माना जाता है कि आज ही के दिन भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था और इस त्योहार से जुड़े तमाम श्रुतिफलों का सार भगवान शिव (Lord Shiva) को प्रसन्न करना है. शिव भारतीय संस्कृति में ईश्वर से कहीं ज्यादा हैं. वे संस्कृति के अलग-अलग पहलुओं पर अलग-अलग रूपों में प्रभाव छोड़ते हैं. इसके साथ ही संगीत के साधकों और नृत्य के उपासकों के लिए वे गुरू भी हैं. तो, आइए आपको बताते हैं भारतीय संस्कृति के ऐसे ही कुछ पहलुओं को जहां शिव आराध्य से कहीं (significance of mahashivratri) ज्यादा हैं.
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संगीत - भैरव, भैरवी और शिवरंजनी
पुराने समय से ही भगवान शिव का शब्दों और ध्वनियों के साथ जुड़ाव रहा है. माना जाता है कि तांडव खत्म होने पर शिव ने 14 बार डमरू बजाया था. इसी के आधार पर पाणिनी में 14 माहेश्वर सूत्रों की रचना की जिनसे वर्णमाला और तमाम रचनाएं बनीं. आज के डीजे वाले युग में कांवड़ के साथ एक खास तरह का संगीत भगवान शिव के साथ जोड़ दिया गया है, लेकिन शास्त्रीय संगीत में शिव (Mahashivratri Importance) का एक अलग ही जुड़ाव है. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ऐसे तमाम राग हैं जो भगवान शिव को समर्पित हैं. कहा जाता है कि ये शिव की प्रिय रचनाए (lord shiva music) हैं.
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भोजन - भांग, धतूरा और दूध ही नहीं
नॉर्थ ईस्ट के पॉप कल्चर ने भगवान शिव की एक खास इमेज को फेमस किया है. जिसमें भांग, धतूरा, कांवड़ और खास तरह की बूटियां शामिल हैं. लेकिन, अगर कल्चरल रूप की बात की जाए तो शिव के पसंदीदा भोजन में बहुत सी चीजें हैं. मां पार्वती को अन्नपूर्णा माना जाता है. इसलिए, काशी विश्वनाथ (mahashivratri story) मंदिर में रोज रात 10 बजे भगवान शिव को खीर का भोग लगाया जाता है. इस मान्यता के साथ कि पार्वती हर रात अपने पति को खीर बनाकर खिलाती हैं. एकादशी वाले दिन चावल से बचने के लिए, फल और मेवे का भोग लगता है. माना जाता है कि शिव अपने भक्तों की बीमारी को दूर करते हैं. इनके अलावा कई जगहों पर भगवान शिव और नंदी को दूब घास भी चढ़ाई जाती है और माना जाता है कि इससे उनके पशुओं के दूध देने की कैपेसिटी बढ़ जाती है.
नृत्य - नटराज
नटराज की मूर्ति भारत ने लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर वाले, स्वीडन के CERN (Conseil Europeen pour la Recherche Nucleaire) संस्थान को तोहफ़े में दी थी. इसी वजह ये है कि नटराज के रूप में शिव की प्रतिमा ब्रह्मांड में विनाश के बीच सृजन का ही सिंबल है. नटराज (Natraj) आग की लपटों के बीच नृत्य मुद्रा में हैं. उसी समय से नृत्य मुद्रा में शिव की पीतल और कांसे की मूर्तियां प्रचलन (mahashivratri puja vidhi 2022) में हैं. भारत के कलात्मक इतिहास के सबसे शानदार उदाहरणों को देखना हो, तो एक बार नेशनल म्यूज़ियम जाकर इसे देखा जा सकता है.