सावन का महीना 14 जुलाई (Sawan 2022) से शुरू हो चुका है. आज सावन का पहला सोमवार है. भोलेनाथ के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनका अभिषेक करते हैं. भक्त उन्हें पंचामृत, दूध या जल का अभिषेक करते हैं. लेकिन, भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने के कुछ नियम (rudrabhishek rules) हैं. अगर इस नियम के अनुसार शिवजी का अभिषेक किया जाता है, तो भोलेनात भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं. तो, चलिए शिवजी को जलाभिषेक करने के नियम (jalabhishek ke niyam) जानते हैं.
सही दिशा का महत्व -
महादेव को जल चढ़ाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कभी भी पूर्व दिशा की ओर मुंह करके जल न चढ़ाएं. पूर्व दिशा को भगवान शिव का मुख्य प्रवेश द्वार माना जाता है. मान्यता के अनुसार इस दिशा में मुख करने से शिवजी के द्वार में बाधा उत्पन्न होती है और वह रुष्ट भी हो सकते हैं. इसलिए हमेशा उत्तर दिशा की ओर मुख करके शिवजी को जल अर्पित करें. ऐसा कहा जाता है कि इस दिशा की ओर मुख करके जल चढ़ाने से शिव और पार्वती दोनों को आशीर्वाद (jalabhishek right direction) मिलता है.
जल की धार की गति -
देवधिदेव को जलाभिषेक करते समय शांत मन से धीरे-धीरे जल अर्पित करना चाहिए. मान्यता है कि जब हम धीमी धार से महादेव का अभिषेक करते हैं तो महादेव विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं. भोलेनाथ को कभी भी बहुत तेज या बड़ी धारा में जल नहीं चढ़ाना चाहिए.
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भोलेनाथ के जलाभिषेक करने के लिए ये पात्र -
जिस प्रकार पूजा के लिए जल की पवित्रता आवश्यक होती है. उसी तरह पूजा की पवित्रता भी आवश्यक है. यानी कि शिवजी को जल चढ़ाते समय ये ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है कि किस कलश से उन्हें जल चढ़ाया जाता है. शिवाभिषेक करने के लिए तांबे का पात्र सबसे अच्छा माना जाता है. कांसे या चांदी के पात्र से अभिषेक करना भी शुभ माना जाता है. लेकिन, गलती से भी शिवजी का किसी स्टील के बर्तन से अभिषेक नहीं करना चाहिए. ठीक वैसे ही तांबे के बर्तन से दूध का अभिषेक करना भी अशुभ माना जाता है.
जल अभिषेक करने का आसन -
शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय हमेशा बैठकर जल चढ़ाएं. रुद्राभिषेक करते समय कभी भी खड़े नहीं होना चाहिए. मान्यताओं के अनुसार, खड़े होकर महादेव को जल चढ़ाने से इसका पुण्य फल भी नहीं (jalabhishek aasan) मिलता है.