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Ram Katha: अशोक वाटिका में हनुमान जी को देखकर छलक गए माता सीता के आंसू, सुनाई विरह पीड़ा

हनुमान जी (hanuman ji) ने माता सीता को अशोक वाटिका में ये विश्वास दिलाया कि वे प्रभु श्री राम के दूत हैं. वे पहचान के रूप में ही उनकी अंगूठी लेकर आए तो, माता सीता (ramayan katha) का उनके प्रति स्नेह जागा.

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Megha Jain
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Ramayan Katha

Ramayan Katha( Photo Credit : social media)

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हनुमान जी (hanuman ji) ने माता सीता को अशोक वाटिका में ये विश्वास दिलाया कि वे प्रभु श्री राम के दूत हैं. वे पहचान के रूप में ही उनकी अंगूठी लेकर आए तो, माता सीता का उनके प्रति स्नेह जागा. सीता माता की आंखों में जल भर गया और उन्होंने कहा कि वे तो आशा ही छोड़ चुकी थीं किंतु अब तुमने मेरे सामने उपस्थित (ram katha) हो कर फिर से आस जगा दी है. उन्होंने कहा कि तुम तो मेरे लिए तिनके के सहारे के समान हो. सीता माता ने प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी की कुशलक्षेम पूछने के बाद कहा, आखिर रघुनाथ जी ने मुझे भुला क्यों दिया जबकि वे तो जीव मात्र (hanuman ji in ashoka vatika) पर कृपा करने वाले हैं. हनुमान जी ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि हे माता आप अपना दिल छोटा न करें. क्योंकि उनके मन में आपके प्रति (ram katha vachak) स्नेह दोगुना है.          

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हनुमान जी ने माता सीता को सुनाया श्री रघुनाथ का संदेश -

हनुमान जी ने सीता माता को आश्वस्त करने के बाद श्री रघुनाथ जी का संदेश सुनाते हुए कहा कि हे सीते, तुम्हारे वियोग में अब मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है. सभी अनुकूल पदार्थ अब प्रतिकूल लगने लगे हैं. पेड़ों के नए-नए पत्ते भी अग्नि के समान, शांति देने वाली रात्रि कालरात्रि के समान कष्ट देने वाली और सबको शीतलता प्रदान करने वाला चन्द्रमा सूर्य के समान तपन (sita mata separation pain) देता लग रहा है.  

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श्री राम ने सीता माता को भेजे संदेश में बताई विरह पीड़ा -

हनुमान जी ने प्रभु श्री राम (ram laxman ji kahani) का संदेश सुनाते हुए कहा कि इतना ही नहीं कमलों के वन अब भालों के समान चुभने लगे हैं. शीतल बारिश करने वाले बादल अब खौलता हुआ तेल बरसाते दिख रहे हैं. जो लोग हमरा हित करने वाले थे. अब वही पीड़ा देने लगे हैं. शीतल मंद और सुगंधित वायु अब सांप के समान जहरीली होने लगी है. मन का दुख दूसरे से कह देने से कुछ कम हो जाता है किंतु, यहां पर मैं अपना दुख कहूं भी तो किससे. मेरा ये दुख कोई भी नहीं जानता है. हे प्रिये, मेरे और तुम्हारे प्रेम का रहस्य एक मेरा मन ही है जो जानता है. मेरा मन तो सदा ही तुम्हारे पास रहता है. बस, मेरे प्रेम का सार इतने में ही समझ लो. श्री राम का संदेश सुनते ही जानकी जी उनके प्रेम में मग्न हो गईं और उन्हें अपने शरीर की भी सुध (ram ji ki katha) नहीं रही.         

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