Meera Bai Story: मीराबाई का नाम कृष्ण भगवान के साथ लिया जाता है. कहते हैं मीरा कृष्ण की ऐसी दीवानी हो गयीं थी कि वो उन्हें अपना पति मान चुकी थीं. उन्हें हर ओर सिर्फ कृष्ण ही कृष्ण नज़र आते थे. लेकि मीरा को कृष्ण से इतना प्रेम कैसे हुआ. कौन थी कृष्ण की ये दीवानी मीरा, जब ये कृष्ण भगवान को अपना पति मान चुकी थी तो क्यों मीरा ने विवाह किया और क्या विवाह के बाद मीरा ने अपने पति को धोखा दिया. इस स्टोरी में हम आपको मीराबाई की ये कहानी बताने जा रहे हैं जिसमें उनके कृष्ण प्रेम से जुड़ी हर बात आप जान पाएंगे.
कौन थी मीराबाई
मीराबाई का जन्म 16वीं शताब्दी में जोधपुर के राठौड़ रतनसिंह जी के घर में हुआ था. ये उनकी इकलौती संतान थी जो बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में रम गई थीं. कृष्ण के प्रति उनका अटल प्रेम आज भी मिसाल बना हुआ है.
मीरा को कृष्ण से कैसे हुआ प्रेम
ये घटना उनके बचपन से जुड़ी है. पौराणिक कहानियों के अनुसार एक बार मीराबाई के पड़ोस में किसी बड़े आदमी की बारात लाव-लश्कर के साथ आयी. उस समय सभी औरतें छत पर खड़ी होकर बारात देखा करती थी. मीरा भी उनके साथ बारात देखने अपनी छत पर खड़ी हो गयी. बारात की रोनक देखकर मीरा के मन में प्रश्न आया कि मेरा दूल्हा कौन है उन्होंने ये सवाल जब अपनी माता से पूछा तो उन्होंने बेहद सरल भाव में कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा कर दिया और कहा वो हैं तुम्हारे दूल्हे. मीरा कोमल हृदय की थी और उसके बालमन में ये बात इस तरह घर कर गयी कि फिर वो कृष्ण को अपना पति मानने लगी, मीरा कृष्ण की भक्ति में इस कदर लीन हो गयी कि फिर उन्हें उसके आगे-पीछे और कुछ समझ नही आता. मीरा की किशोरावस्था में माता-पिता इस बात की गंभीरता को नहीं समझ पाए. जब मीरा की उम्र शादी की हुई तो उन्हें ये बात समय आयी.
मीराबाई की शादी किससे हुई
अपने बेटी के उज्जवल भविष्य के लिए हर माता-पिता ने भी उनके लिए एक योग्य वर तलाशा. जब ये बात मीरा को पता चली की उसकी शादी की बात चल रही है तो वो बहुत रोई, मीरा ने शादी करने से इंकार भी कर दिया लेकिन मीरा के पिता ने मीरा का विवाह महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज के करवा दिया जो आगे चलकर महाराणा कुंभा कहलाए. कहते हैं विदाई के समय मीरा अपने साथ कृष्ण की वो मूर्ति जिसे वो अपना पति मानती थी साथ लेकर गयीं.
मीरा ने अपने पति को दिया था धोखा?
ससुराल में मीरा का मन नहीं लगता. वो घरेलू कामों से निबटाने के बाद कृष्ण मंदिर चली जाती. वहां कृष्ण से घंटो बातें करती उनके भजन गाती खूब नाचती और फिर लौट आती.
मीरा के ससुराल में तुलजा भवानी यानि मां दूर्गा को कुल देवी मानकर पूजा जाता था. जब मीरा से दुर्गा मां की पूजा के लिए कहा गया तो वो नहीं मानी उन्होंने कृष्णा का भक्ति को ही सर्वोप्रिय रखा. मीरा से नाराज़ उनकी ननद ने एक दिन उन्हें सबक सिखाने के लिए उनके खिलाफ साजिश रची और ये बात फैला दी कि मीरा का गुप्त प्रेम चल रहा है जिससे मिलने वो यहां से घंटो गायब रहती है.
एक दिन मीरा जब कृष्ण मंदिर में भक्ति में लीन थी तब उनके पति राणा कुंभा मंदिर का दरवाज़ा तोड़कर अंदर आ गए.
राणा मीरा पर चिल्लाया - ’मीरा, तुम जिस प्रेमी से अभी बातें कर रही हो, उसे मेरे सामने लाओ।’
मीरा ने जवाब दिया – ‘वह सामने बैठा है - मेरा स्वामी - नैनचोर, जिसने मेरा दिल चुराया है' और वह समाधि में चली गईं.
मीरा की ये बात सुनकर राणा कुंभा का दिल टूट गया, लेकिन फिर भी उसने एक अच्छे पति की भूमिका निभाई और मरते दम तक मीरा का साथ दिया.
मीरा पर ससुराल में यातनाएं बढ़ने लगी. हालांकि मीरा को राजगद्दी को कोई चाह नहीं थी लेकिन फिर भी उन्हें सताने का सिलसिला ससुराल में बंद नहीं हुआ. मीरा के देवर को राजा बना दिया गया और वो मीरा को इतना नापसंद करता था कि उसने मीरा को मरवाने की कई बार कोशिश की लेकिन कृष्ण भक्त मीरा का बाल भी बाका नहीं हुआ. लेकिन यातनाओं से परेशान होकर एक दिन मीरा चित्तौड़ छोड़कर चली गयी.
मीरा ने कैसे किया प्राणों का त्याग
मीरा जोगन बन बैठी. उसे जहां भी कृष्ण की भक्ति ले जाती वो वहां पहुंच जाती. दिन रात कृष्ण का नाम जपती, कृष्ण के भजन गाती, उनके लिए नाचती फिरती.
वृंदावन में भी मीरा ने कुछ समय व्यतीत किया. गांव-गांव में घूमकर मीरा ने कृष्ण भक्ति की. पौराणिक कथाओं के अनुसार मीरा जब अपने जीवन के अंतिम क्षणों पर आयी तब वो गुजरात के द्वारका में पहुंच गयी. यहां उन्होंने कुछ समय कृष्ण का ध्यान किया और फिर एक दिन द्वारकाधीश की मूर्ति के सामने नाचते नाचते वो उसी में समा गई. ये घटना वहां मौजूद सभी लोगों के सामने घटी जो इसे देखकर हैरान रह गए.
कृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति आज भी प्रसिद्ध है. ऐसी लग्न कृष्ण से आज तक और किसी ने नहीं लगायी है.
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