शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है. इस दिन भगवान शनि की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. भगवान शनि को लेकर लोगों के मन में डर रहता है. शनिदेव नवग्रहों में से एक हैं. स्वयं भगवान शिव ने शनिदेव को नवग्रहों में न्यायाधीश का काम सौंपा है. शनिदेव के प्रचंड प्रकोप और उनकी तीव्र दृष्टि से कोई नहीं बच सका है. हर व्यक्ति शनिदोष, शनि की साढ़े साती और महादशा से बचने का प्रयास करता है. शनिदेव की पूजा अर्चना करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं और आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. शनिदेव के रूप की बात करें तो उन्हें हमेशा से ही काले वस्त्रों में पूजा जाता रहा है और शनिदेव को पसंद भी काले रंग की वस्तुएं ही आती हैं. ऐसे में आज हम आपको शनिवार के दिन शनिदेव के काले रंग से प्रेम के पीछे की रोचक कथा बताने जा रहे हैं.
यह भी पढ़ें: महाशिवरात्रि से इन 4 राशियों के खुलेंगे भाग्य, मिलेगी नौकरी बरसेगा धन
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान सूर्य की शादी दक्ष प्रजापति की बेटी देवी संध्या से हुआ था. जिनसे उन्हें मनु, यमराज और यमुना नामक संतान प्राप्ति हुईं. लेकिन देवी संध्या भगवान सूर्य के ताप को सह नहीं पा रही थीं, इसलिए उन्होंने अपनी जगह एक प्रतिरूप छाया को रख दिया जो दिखने में देवी संध्या की प्रतिरूप छाया थीं. इस बात का पता भगवान सूर्य को पता नहीं चला. लेकिन देवी छाया भगवान शिव की कठोर तपस्या कर रही थीं जिसकी वजह से वह अपनी गर्भावस्था के समय सही से ध्यान नहीं रख पा रही थीं. इस वजह से शनिदेव जन्म के समय अंत्यत काल और कुपोषित पैदा हुआ. जिसके देखकर सूर्यदेव ने अपनी संतान मानने से इंकार कर दिया. लेकिन ये बात भगवान शनि को बहुत बुरी लगी.
यह भी पढ़ें: तिरुपति मंदिर को बालों से होगी इतने अरब की आमदनी, जानकर हैरत में पड़ जाएंगे आप
देवी संध्या जब तप कर रही थी, उस समय मां के गर्भ में ही शनिदेव को भगवान शिव की शक्ति प्राप्त हो गई. जब शनिदेव ने भगवान सूर्य को क्रोध से देखा तो उनका रंग काला पड़ गया और उन्हें कुष्ठ रोग हो गया. सूर्यदेव ने भगवान शिव से क्षमा याचना मांगी और शनिदेव को सभी ग्रहों में सबसे अधिक शक्तिशाली होने का वरदान दिया. भगवान शनि ने अपने काला रंग होने और काले रंग के अपेक्षा के कारण काला रंग अतिप्रिय है, इसलिए उनकी पूजा में काले तिल, काला चना और लोहे की चीजों को खरीदा या दान में दिया जाता है.