सप्ताह के पहले वार यानी रविवार (इतवार) के दिन व्रत (Sunday Fast) रखने का विशेष महत्व होता है. जैसा की 'रवि' नाम से ही विदित है इस दिन सूर्य देवता के लिए व्रत रखा जाता है, उनकी पूजा अराधना की जाती है और मंत्रो का जप किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी को कोई शारीरिक पीड़ा (चर्म रोग, कुष्ठ रोग, नेत्र रोग आदि) है तो उसे रविवार का व्रत जरूर करना चाहिए. रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है, मान-सम्मान में वृध्दि होती है, धनलाभ होता है, शत्रुओं से रक्षा होती है. भगवान सूर्य नारायण को सभी ग्रहों का स्वामी माना जाता है इसलिए रविवार के दिन उपवास रखने से सभी ग्रह आपके अनुकूल हो जाते हैं. अगर आप भी रविवार व्रत करना चाहते हैं तो यहां जानिए रविवार व्रत कबसे शुरु करें, पूजा विधि, रविवार व्रत कथा- आरती और रविवार व्रत उद्यापन समेत व्रत से जुड़ी सारी जानकारी.
कैसे दें सूर्य को अर्घ्य
पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में भगवान सूर्य के अर्घ्यदान का विशेष महत्व बताया गया है. प्रतिदिन प्रात:काल में तांबे के लोटे में जल लेकर और उसमें लाल फूल, चावल डालकर प्रसन्न मन से सूर्य मंत्र का जाप करते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. इस अर्घ्यदान से भगवान सूर्य प्रसन्न होकर आयु, आरोग्य, धन, धान्य, पुत्र, मित्र, तेज, यश, विद्या, वैभव और सौभाग्य को प्रदान करते हैं.
सूर्य पूजा में करें इन नियमों का पालन अनिवार्य
1- रविवार अर्थात् सूर्यदेव के व्रत में शुद्धता व नियम का बेहद ध्यान रखना होता है. रविवार के व्रत के एक दिन पहले से ही नियम का पालन करना होता है. व्रत के एक दिन पहले से ही तामसिक भोजन (मांसाहारी भोजन) का सेवन न करें.
2- रविवार के एक दिन पहले यानी शनिवार रात में ब्रश करके सोएं ताकि मुंह में एक भी अन्न का दाना न रहे.
3- रविवार व्रत के दिन सूर्योदय से पहले ही उठकर स्नान कर लें. नहाने के पानी काला तिल और गंगा जल मिलाना शुभ होता है.
4- नहाने के बाद सूर्यनारायण को तीन बार अर्घ्य देकर प्रणाम करें. संध्या के समय फिर से सूर्य को अर्घ्य देकर प्रणाम करें.
5- आदित्य हृदय का नियमित पाठ करें.
6- स्वास्थ्य लाभ की कामना, नेत्र रोग से बचने एवं अंधेपन से रक्षा के लिए 'नेत्रोपनिषद्' का प्रतिदिन पाठ करना चाहिए.
रविवार व्रत पूजा विधि
रविवार को सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ लाल रंग के वस्त्र पहनें. सबसे पहले एक लोटे में जल, चंदन, चावल (अक्षत) और लाल पुष्प डालकर सूर्यदेवता को अर्ध्य दें. इसके बाद घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में एक चौकी पर भगवान सूर्य की मूर्ति, चित्र या सूर्य मंत्र स्थापित करें. इस व्रत को शुरू करने से पहले सूर्यदेव का स्मरण कर संकल्प लें कि -हे सूर्य देवता मैं आने वाले 12 या 30 रविवार तक व्रत कपने का संकल्प लेती हूं, अत: मेरी यह व्रत पूजा स्वीकार करें. इसके बाद आप अपने व्रत की शुरुआत करें. सबसे पहले जल, कुमकुम, चंदन पुष्प से छींटे देकर सूर्य को स्नान कराएं. इसके बाद सूर्य भगवान को किसी ऋतु फल का भोग लगाएं. सूर्य देव का स्मरण करते हुए 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:' इस मंत्र का 12 या 5 अथवा 3 माला जप करें. रविवार व्रतकथा सुनें और आरती करें. शाम में सूर्यास्त के समय भी एक बार फिर से लोटे में जल, चंदन, चावल (अक्षत) और लाल पुष्प डालकर सूर्यदेवता को अर्ध्य दें.
रविवार व्रत में क्या खाना चाहिए
रविवार व्रत में सूर्यास्त के बाद ही भोजन करें और इसमें गेहूं की रोटी, दलिया, दूध, दही और घी और चीनी आदि का सेवन करें. दिन में फलाहार का सेवन कर सकते हैं. रविवार व्रत के दिन नमक नहीं खाएं.
रविवार को ये कार्य ना करें
1- तेल, नमक, मांस या मदिरा का सेवन ना करें.
2- बाल न कटाएं और तेल की मालिश भी ना करें.
3- तांबे की धातु से बनी वस्तु ना खरीदें और ना ही बेचे.
4- नीला, काला और ग्रे रंग के कपड़े ना पहने, और यदि जरूरी ना हो तो जुते पहनने से भी बचे.
5- ऐसा कोई काम ना करें जिसमें दूध किसी भी प्रकार से जलाया जाए.
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रविवार को व्रत करने के फायदे
1- ये सूर्य देव का दिन होता है इस दिन उनकी आराधना की जाए तो विशेष लाभ मिलता है.
2- सूर्य की कृपा से समाज मेंमान-सम्मान प्राप्त होता है.
3- भाग्योदय होता है और नौकरी संबंधी समस्त परेशानियां दूर होती है.
4- सूर्य देव प्रसन्न हो जाए तो समस्त अशुभ फल भी शुभ में परिवर्तित हो जाते है.
5- सूर्य नमस्कार करें, इससे बुद्धि, विद्या, वैभव, तेज, ओज और पराक्रम आता है.
सूर्य देव की आरती
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव। जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥
रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता। षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि दाता॥
जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥
नभमंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा। निज जन हित सुखरासी, तेरी हम सबें सेवा॥
करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव। जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥
कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी। निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी॥
हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव। जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥
श्री रविवार की आरती
कहुं लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे।
सात समुद्र जाके चरण बसे, काह भयो जल कुंभ भरे हो राम।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मंदिर दीप धरे हो राम।
भार अठारह रामा बलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।
छप्पन भोग जाके प्रतिदिन लागे, कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।
अमित कोटि जाके बाजा बाजें, कहा भयो झनकारा करे हो राम।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रह्मावेद पढ़े हो राम।
शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम।
हिम मंदार जाके पवन झकोरें, कहा भयो शिव चंवर ढुरे हो राम।
लख चौरासी बंध छुड़ाए, केवल हरियश नामदेव गाए हो राम।