Acharya Chanakya: आचार्य चाणक्य के जन्म से मृत्यु तक जानें ये रोचक कहानी 

Acharya Chanakya: क्या आप जानते हैं आचार्य चाणक्य का जन्म कैसे हुआ, उनकी मृत्यु कैसे हुई, अगर नहीं तो उनके जीवन से जुड़ी शुरू से अंत तक आइए सब कहानियां जानें.

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Inna Khosla
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birth to death of Acharya Chanakya

Acharya Chanakya( Photo Credit : News Nation)

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Acharya Chanakya: प्राचीन भारत के शिक्षक, राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य को भला कौन नहीं जानता. उनकी दी सलाह आज भी लोगों के काम आती है. चाणक्य नीति को अगर सफलता की कुंजी कहा जाए तो गलत नहीं होगा. चाणक्य, प्राचीन भारत के विख्यात शिक्षक, शाही सलाहकार, कूट राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री थे. माना जाता है उन्होंने ही आज के आधुनिक भारत की नींव रखी. चाणक्य जीतने जबरदस्त शख्सियत थे. उनकी कहानी भी उतनी ही जबरदस्त है. आचार्य चाणक्य का जन्म कैसे हुए, उन्होंने अपने जीवनकाल में क्या-क्या किया और अंत में उनकी मृत्यु का कारण क्या था ये कहानी बहुत रोचक है. तो आप भी अगर चाणक्य की नीतियां पढ़ना पसंद करते हैं तो आइए जानते हैं उस महान आचार्य के जन्म से मृत्यु तक जुड़ी हर बड़ी और रोचक कहानी क्या है. 

चाणक्य का बचपन और पढ़ाई 

माना जाता है की चाणक्य का जन्म तक्षशिला जो आज के पाकिस्तान का हिस्सा है, वहां करीबन 2000 साल पहले हुआ. उनके पिता चणक मुनि एक शिक्षक थे. उनके जन्म होने के समय की एक बहुत रोचक कथा है. कहा जाता है कि जब वो पैदा हुए उनके पूरे दांत थे और उस समय ऐसा माना जाता था कि इस तरह पैदा होने वाला बच्चा आगे जाकर राजा या सम्राट बनेगा. लेकिन नियति को ये मंजूर नहीं था, क्योंकि उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता के अनुसार ये बिलकुल नामुमकिन था इसलिए उसी समय उनके सभी दांत उखाड़ दिए गए. पर लिखी को कौन टाल सकता है. हालांकि वो राजा या सम्राट नहीं बने पर उनका एक पूरा साम्राज्य है और उसका राजा बनाए जाने में और उसको चलाने में पूरा योगदान था. 

जब चाणक्य बने शिक्षक

माना जाता है कि पिता के शिक्षक होने के कारण उनको पढ़ाई में बहुत रुचि थी और जीस समय उनकी उम्र के बच्चे खेलने कूदने में व्यस्त रहते थे. उन्होंने वेदों को पढ़ना शुरू कर दिया था. बताया जाता है कि वेदों के पड़ने के दौरान ही उनका जुखाव राजनीति को पढ़ने तथा समझने की तरफ हुआ. अपनी इस रूचि को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने तक्षशिला में ही राजनीति की पढ़ाई की. तक्षशिला जो आज पाकिस्तान का हिस्सा है वो उस समय भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में से एक था जहाँ बड़े बड़े विज्ञान, विज्ञान, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र. वेद, गणित, ज्योतिष, विद्या आदि पढ़ाते थे. चाणक्य ने राजनीति को चुना राजनीति विषय में बहुत बेहतरीन पकड़ होने के कारण उन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन में ही कौटिल्य और विष्णु गुप्त जैसे नाम पाए. तक्षशिला में शिक्षा समाप्त करके चाणक्य वही शिक्षक के रूप में कार्य करने लग गए. वो अपने सभी विद्यार्थियों में बहुत प्रसिद्ध थे और सभी शिष्य उन्हें इतना मानते थे कि उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे.

तक्षशिला से पाटलिपुत्र

जिस समय चाणक्य तक्षशिला में पढ़ा रहे थे. उस समय उन्हें अपने गुप्त सूत्रों से एक खबर मिली कि कैसे यूनान का महान सम्राट सेल्यूकस भारत के कमजोर राजाओं के राज्यों पर हमला करने वाला है और कैसे ऐसी गतिविधि होने पर पाटलिपुत्र के राजा धनानंद ने अपने राज्य की प्रजा पे और कर लगा दिए हैं जिसका इस्तेमाल वो युद्ध की तैयारी के लिए नहीं बल्कि अपने निजी इस्तेमाल के लिए कर रहा है. 

भारत की एकता पे खतरा मंडरा रहा था और भारत के राज्यों की प्रजा पे जुल्म बढ़ रहे थे. इसने चाणक्य को बहुत चिंतित कर दिया. उस समय उन्होंने तक्षशिला छोड़कर पाटलिपुत्र जाने का सोच लिया. पाटलिपुत्र जिसे आज पटना के नाम से जाना जाता है, चाणक्य वहां पहुंच गए पाटलिपुत्र उस समय के भारत में बहुत महत्वता थी. वहां विद्वानों का आदर होता था और राज्य के लिए क्या जरूरी है और क्या नहीं, इसके बारे में विद्वानों की राय लेकर आगे बढ़ा जाता था. इसलिए भी चाणक्य ने भारत की एकता को बरकरार रखने के लिए अपनी शुरुआत पाटलीपुत्र से की. 

पाटलिपुत्र का राजा उस समय धनानंद था जो अपने प्रजा पे बहुत जुल्म ढा रहा था. उसका उद्देश्य प्रजा की देखरेख नहीं बल्कि उनसे अपने निजी कामों के लिए धन इकट्ठा करना था. इसी वजह से प्रजा भी उससे बहुत दुखी थी. पर क्योंकि वो राजा था और उसके पास सैनिकों की फौज थी. कोई भी उसके खिलाफ़ आवाज नहीं उठाता था. लेकिन जब चाणक्य पाटलिपुत्र पहुंचे वो राजा धनानंद को इसका पता चला तो उन्होंने एक समिति का गठन किया जो ये देखेगी की प्रजा क्यों दुखी है और उनका दुख किस तरह कम किया जा सकता है? चाणक्य भी उस विद्वानों की समिति का हिस्सा थे. 

चाणक्य और धनानंद के बीच की शत्रुता

चाणक्य जिस समिति का हिस्सा थे उसकी मुलाकात राजा धनानन्द से होती थी. जब चाणक्य समिति के प्रमुख बने तो समिति के साथ उनकी मुलाकात राजा धनानंद से हुई. शुरू से ही राजा धनानंद चाणक्य को उनकी कुरूपता उनके साथ बोलने के तरीके के कारण पसंद नहीं करते थे. धीरे-धीरे उनकी घृणा चाणक्य के लिए बढ़ती गई. चाणक्य राजा के आसपास रहने वाले बाकि लोगों की तरह उनकी चापलूसी नहीं करते थे और उनके राज्य में जो भी ठीक नहीं हो रहा था और जहां-जहां सुधार की जरूरत थी वो उन्हें साफ-साफ शब्दों में सब लोगों के सामने बोल देते थे.

1 दिन तो राजा धनानंद बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने चाणक्य को समिति के पद से हटा दिया और राज़ महल से भी निकालने का आदेश दिया. ये अपमान चाणक्य को बिल्कुल पसंद नहीं आया. उन्होंने भरी सभा में शपथ ली कि वो तब तक अपनी चोटी नहीं बांधेंगे जब तक वो राजा धनानंद को उनकी गद्दी से नहीं उखाड़ फेंकेंगे. 

ये प्रतिशोध सिर्फ चाणक्य का निजी प्रतिशोध नहीं था. उनका ये प्रतिशोध सार्वजनिक प्रतिशोध भी था, क्योंकि वो राजा के सामने जनता के हितों को प्रस्तुत करते थे. राजा ने जनता के प्रतिनिधि का अपमान किया था. 

चाणक्य और चंद्रगुप्त की मित्रता 

चाणक्य उत्सव में अपमान सहन करके पाटलिपुत्र की गलियों में गुस्साये हुए अपने गंतव्य के तरफ जा रहे थे. जब उनके पैर में काटा चुभा कोई और इंसान होता तो पहले ही गुस्से में था तो ऐसी परिस्थिति में वो और गुस्सा हो जाता पर चाणक्य साधारण इंसान नहीं थे और काटा चुभने पर वही एक किनारे बैठ गए और आराम-आराम से उस काटे के पौधे की जड़ों को निकालना शुरू कर दिया. और कुछ देर बाद पूरे काटे के पौधों के जड़ समेत निकालकर एक कोने में फेंक दिया. वो समस्या को जड़ से खत्म करने में विश्वास रखते थे. जिस समय वो ये सब कर रहे थे. एक किनारे एक युवक उन्हें ये सब करता देख रहा था. वो युवक था चंद्रगुप्त मोर्य, स्वराज का आने वाला भावी शासक चंद्रगुप्त ने आगे बढ़कर चाणक्य से बात की. उन्होंने कहा, कोई बड़े विद्वान लगते हैं. चाणक्य ने चंद्रगुप्त से कहा वो कुछ चिंतित दिख रहे हैं, क्या वो उनकी कोई मदद कर सकते हैं? तब चंद्रगुप्त ने उन्हें अपनी समस्या से परिचित कराया, जिसमें चाणक्य को पता चला कि कैसे वो भी उनके लगने वाले रिश्तेदार धनानंद के जन्मों के मारे हुए थे और उन्हें उस साम्राज्य का असली शासक होना चाहिए था.

दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और इस प्रकार और चंद्रगुप्त की मित्रता हुई जो आने वाले हजारों सालों तक एक मिसाल बनकर रह जाएगी और पूरे भारत वंश पर मौर्य साम्राज्य का परचम लहराएगी. उस दिन ही जिस दिन चंद्रगुप्त और चाणक्य की मित्रता हुई तब चाणक्य ने ये शपथ ली कि जब तक वो धनानंद शासन का विनाश नहीं कर देंगे और चंद्रगुप्त को उनकी सही जगह पे नहीं बिठा देंगे, चैन से नहीं बैठेंगे. 

धनानंद का विनाश और चंद्रगुप्त के साम्राज्य का सूर्य उदय

शुरू में कई सालों चंद्रगुप्त को शिक्षा प्रदान की गई. उनके शिक्षकों का चुनाव खुद चाणक्य करते थे. शिक्षा के माध्यम से चाणक्य ने चंद्रगुप्त को युद्ध कला अनुशासन दोनों में भली भांति तैयार कर दिया और दोनों ने मिलकर एक बहुत ही बड़ी शक्तिशाली सेना तैयार कर ली. वो एक ऐसा समय था जब सिकंदर और उसकी सेना कई हिस्सों पे हमला कर रही थी. तब चंद्रगुप्त और उसकी सेना का सामना भी सिकंदर और उसकी सेना से हुआ. उस समय चंद्रगुप्त एक बहुत ही शक्तिशाली सेना का सेना नायक था और उसके पीछे चाणक्य जैसे चतुर और चालाक दिमाग भी था. सिकंदर, चंद्रगुप्त और उसकी सेना का कुछ नहीं बिगाड़ पाया और धीरे धीरे कई कारणों से सिकंदर का खेमा बहुत कमजोर पड़ गया था. 

उसके बाद चंद्रगुप्त और चाणक्य ने मिलकर अपने सबसे बड़े दुश्मन राजा धनानंद को उसकी गद्दी से हटाने की तैयारी शुरू कर दी. शुरू में उन्हें बार बार विफलता मिली पर आखिर में चंद्रगुप्त की सैनिक ताकत और चाणक्य की राजनीति ने राजा धनानंग को उसकी गद्दी से उखाड़ फेंका और मोर्य साम्राज्य का परचम लहराया गया. इस तरह चाणक्य ने अपने प्रतिशोध को पूरा किया और अपने अपमान का बदला लिया. उनका प्रतिशोध निजी नहीं था बल्कि प्रजा को ध्यान में रख के लिया हुआ बदला था जिसे प्रजा का फायदा होता था. वो राज्य को सुरक्षित देखना चाहते थे, शासन को सुचारू रूप से चलते देखना चाहते थे और भारत वंश को एकजुट देखना चाहते थे ना की बिखरा हुआ. 

चाणक्य की मौत कैसे हुई ?

चाणक्य पहले मौर्यशासन चंद्रगुप्त के राजनीतिक सलाहकार रहे और उसके बाद उनके बेटे बिंदुसार के राजनीतिक सलाहकार रहे. बिन्दुसार के पैदा होने की एक कहानी बताई जाती है कि कैसे चाणक्य को जब ये पता चला की राजा चंद्रगुप्त को उनके दुश्मन विष देकर मारने का षडयंत्र रच रहे हैं तो चाणक्य ने राजा को उनके भोजन में थोड़ा-थोड़ा विष देना शुरू कर दिया. ताकि उनकी विष प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सके. अब 1 दिन राजा ने अपने भोजन में से कुछ हस्सा अपनी नौ महीने की गर्भवती पत्नी को दे दिया. वो उस विष को ना झेल पाई और उसने दम तोड़ दिया. पर चाणक्य ने पेट चीरकर उनके होने वाले बच्चे को बचा लिया जो उनका उत्तराधिकारी बिंदुसार बना. 

बिंदुसार जब बड़ा हुआ तो उनके एक मंत्री ने उन्हें भड़काना शुरू कर दिया कि कैसे उनकी माता की मौत के जिम्मेदार चणक्य है और उसी के चलते बिंदुसार चणक्य से घृणा करने लगे और उन्होंने अपने मंत्री के साथ मिलकर उन्हें मारने का षड्यंत्र रचा. अंत में बिन्दुसार के उस मंत्री सुबंधु ने धोखे से चाणक्य का वध कर दिया.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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