आज 11 जून को जहां एक तरफ गायत्री जयंती (gayatri jayanti 2022) मनाई जा रही है. वहीं ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को त्रिविक्रम द्वादशी (trivakram dwadashi 2022) भी है. ये तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. इस दिन भगवान के वामन या त्रिविक्रम रूप (dwadashi worship lord vishnu) की पूजा की जाती है. इस दिन व्रत रखने से शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं. इसके साथ ही अनजाने में हुए पाप भी खत्म हो जाते हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. कहा जाता है कि इस दिन शुभ योग में पूजा-पाठ करने से तीन गुना पुण्य फल मिलती है.
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त्रिस्पर्शा योग क्या है
इस दिन सूर्योदय से कुछ मिनटों पहले एकादशी हो, फिर पूरे द्वादशी रहे और उसके बाद त्रयोदशी तिथि हो तो, ये त्रिस्पर्शा द्वादशी (trisparsh dwadashi 2022) कहलाती है. यानी कि एक ही दिन में तीनों तिथियां आने से ऐसा योग बनता है. इसलिए, इस दिन पूजा करने का महत्व बढ़ (trivakram dwadashi 2022 shubh yog) जाता है.
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त्रिविक्रम द्वादशी 2022 पूजा विधि
इस दिन सूर्योदय से पहले तिल के पानी से स्नान करने का बहुत महत्व होता है. नहाने के बाद पीले या सफेद वस्त्र पहनकर पंचोपचार से भगवान विष्णु की पूजा करें.
इस दिन पूजा में पंचामृत के साथ ही शंख में दूध और जल मिलाकर भगवान का अभिषेक करने का विशेष विधान है. ऐसा करने से गोमेध यज्ञ करने जितना फल मिलता है.
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पूजा में भगवान विष्णु को धूप-दीप दिखाकर नैवेद्य लगाएं और पूजा के बाद व्रत-कथा सुनें. इसके बाद आरती करके प्रसाद को बांट दें.
इस द्वादशी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना चाहिए. व्रत खोलते समय चावल या इससे बनी दूसरी चीजें (trivakram dwadashi 2022 puja vidhi) खाने से बचें.