हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह (jyeshtha month) की पूर्णिमा को रखा जाने वाला व्रत वट पूर्णिमा व्रत या पूर्णिमा (vat purnima 2022 vrat) वट सावित्री व्रत कहलाता है. इस दिन सुहागिन महिलाओं द्वारा व्रत रखा जाता है. महिलाएं बरगद वृक्ष की पूजा करती हुई उसकी 108 बार परिक्रमा करती हैं. माना जाता है कि इस तरह से पूजन और परिक्रमा करने से पति भी दीर्घायु होता है. इस साल पूर्णिमा वट पूर्णिमा का व्रत 14 जून (vat savitri 2022 vrat) को रखा जाएगा. पौराणिक मान्यता है कि इस समय में सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाने के लिए यह व्रत रखा था. चलिए, इस दिन के महत्व और व्रत के नियमों के बारे में जानते हैं.
वट पूर्णिमा 2022 व्रत नियम
पूर्णिमा वट सावित्री व्रत के नियम ठीक उसी प्रकार होते हैं जो वट सावित्री व्रत के नियम हैं. तो, चलिए आपको बताते हैं कि वे नियम (vat Purnima 2022 vrat niyam) कौन-से हैं:-
वट पूर्णिमा व्रत में प्रातः काल उठकर स्नानादि नित्य कर्म से निवृत होकर पूजन की सामग्री लेकर निकट के बरगद वृक्ष के पास जाएं.
वृक्ष के पास विधि –विधान से पूजन करें और 108 बार परिक्रमा करें. उसके बाद व्रत कथा सुनें. पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद का वितरण करें.
जो महिलाएं पहली बार वट पूर्णिमा का व्रत रख रहीं हैं. उन्हें व्रत और पूजन के समय सुहाग की सारी सामग्री मायके की ही इस्तेमाल करनी चाहिए.
इस दिन रखने वाली महिलाओं को इस दिन नीले, काले या सफेद रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए.
इन्हें काली नीली और सफ़ेद रंग की चूड़ियां भी नहीं पहननी चाहिए.
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वट पूर्णिमा 2022 व्रत का महत्व
वट सावित्री व्रत की तरह ही ज्येष्ठ पूर्णिमा पर बरगद यानी वट वृक्ष की पूजा की जाती है.इसकी महत्ता वट सावित्री व्रत के समान ही है. माना जाता है कि महिलाएं वट पूर्णिमा में भी पति की लंबी आयु की कामना के लिए महिलाएं व्रत रखती है और पूजा-पाठ करती हैं. कहा जात है कि सावित्री अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज के पीछे पीछे चलती रहीं. उनके पतिव्रता धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने तीन वरदान दिए, जिसमें उनको सत्यवान के 100 पुत्रों की मां होने का वरदान भी शामिल था. ऐसे में यमराज को विवश होकर और वचन पर अड़िग रहने के लिए सत्यवाण के प्राण लौटाने पड़े. इसी कारण से ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन वट सावित्री का व्रत (vat Purnima 2022 vrat importance) रखा जाता है.
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सनातन धर्म में पूर्णिमा का दिन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस दिन भक्तों द्वारा पापों और आर्थिक कष्टों से मुक्त होने के लिए भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. दिलचस्प बात ये है कि वट वृक्ष या बरगद का पेड़ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि सावित्री इस पेड़ के नीचे बैठी थी क्योंकि उसने अपने पति को एक नया जीवन देने की कसम खाई थी. इसलिए, वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पर बरगद (vat savitri 2022 vrat importance) के पेड़ की पूजा की जाती है.