Krishna Janmashtami 2020: जन्माष्टमी पर क्यों मनाई जाती है दही हांडी, क्या है मान्यता

कृष्ण जन्मोत्सव की धूम देशभर गूंज रही है. इस साल जन्माष्टमी 11 और 12 अगस्त को पड़ रही है. कृष्ण जन्माष्टमी यूं तो पूरे भारत में मनाई जाती है, पर दही हांडी सभी स्थानों पर अधिक प्रचलित नहीं है.

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Aditi Sharma
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जन्माष्टमी पर क्यों मनाई जाती है दही हांडी( Photo Credit : फाइल फोटो)

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कृष्ण जन्माष्टमी की धूम देशभर गूंज रही है. इस साल जन्माष्टमी 11 और 12 अगस्त को पड़ रही है. कृष्ण जन्माष्टमी यूं तो पूरे भारत में मनाई जाती है, पर दही हांडी सभी स्थानों पर अधिक प्रचलित नहीं है. यह सबसे अधिक लोकप्रिय महाराष्ट्र में है. दही हांडी के कार्यक्रम जन्माष्टमी के दिन आयोजित किये जाते हैं और युवा टोलियां इस उत्सव में बड़े उत्साह से भाग लेती हैं. हालांकि इस साल कोरोना के चलते दही हांडी का मजा थोड़ा फीका पड़ सकता है. लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि जन्माष्टमी के दिन दही हांडी क्यों मनाई जाती है और क्या हैं इससे जुड़ी मान्यता.

जनमाष्टमी पर क्यों मनाई जाती है दही हांडी

दही हांडी के इतिहास की बात करें तो प्रचलित कृष्ण लीलाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ आस-पड़ोस के घरों से माखन और दही चुराया करते थे. कृष्ण की बदमाशियों से परेशान हो महिलाओं ने माखन और दही मटके में रख ऊपर रखने लगी. इसके बाद कृष्ण अपने सभी मित्रों के साथ मिलकर एक मानवीय पिरामिड बनाते थे और उनके ऊपर चढ़ कर मटके से दही और माखन खाते थे. वास्तव में पूरा वृंदावन उनकी इन लीलाओं का आनंद उठाया करता था. यही कारण है कि लोग उन्हें बड़े प्यार से माखनचोर कह कर पुकारने लगे और दही हांडी फोड़ने वाले बच्चों को गोविंदा कहा जाने लगा।

क्या है दही हांडी का इतिहास

मान्यता के अनुसार वर्तमान में मनाई जाने वाली दही हांडी का इतिहास हमें नवी मुंबई के घणसोली गांव में मिलता है. कहा जाता है कि इस गांव में दही हांडी आज से लगभग 110 वर्ष पहले 1907 में सबसे पहले मनाई गई थी. तब से यह परंपरा चली आ रही है और यहां से अलग-अलग क्षेत्रों में इसका विस्तार हुआ है. यहां के हनुमान मंदिर में जन्माष्टमी से एक हफ्ते पहले उत्सव मनाए जाने लगते हैं इसके बाद यह उत्सव दही हांड़ी से साथ समाप्त होते हैं। यही कारण है कि श्री कृष्ण के जन्मदिन पर दही हांडी फोड़ने की प्रथा चली आ रही है.

क्या होता है दही हांडी में

दही-हांडी प्रतियोगिता में युवाओं का एक समूह पिरामिड बनाता है, जिसमें एक युवक ऊपर चढ़कर ऊंचाई पर लटकी हांडी, जिसमें दही होता है, उसे फोड़ता है. ये गोविंदा बनकर इस खेल में भाग लेते हैं. इस दौरान कई जगहों पर प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है. प्रतिभागियों को 9 स्तरों से नीचे आमतौर पर मिलकर एक पिरामिड बनाते हैं और हांडी को तोड़ने के लिए 3 मौके दिये जाते हैं. इन प्रतियोगिताओं में जीतने वाली टोली को इनाम में पैसे, मिठाई और उपहार दिए जाते हैं. विभिन्न संगठन दही हांडी में लाखों तक का इनाम देते है. साथ ही विभिन्न जगहों पर दही हांडी से मिलने वाला पैसा सामाजिक कार्यों में दान दिया जाता है. दही हांडी आज के दौर में इतनी प्रचलित हो चली है कि बॉलीवुड में इस पर अनेक गाने बन चुके हैं. जिनकी ताल पर आज हजारों लोग झूमते हैं.

बता दें कि इस उत्सव को मनाने की तैयारियां 3 महीने पहले से ही शुरू हो जाती हैं.पिरामिड बनाने का अभ्यास भी 3 महीने पहले से शुरू हो जाता है.इसमें भाग लेने वाले गोविंद अपने आप को फिट रखने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं.वहीं पिरामिड बनाने से पहले सभी जरूरी बातों का ध्यान रखा जाता है. किसी भी तरह की मेडिकल एमरजेंसी से निपटने के मौके पर एंबुलेंस रहती है.

Source : News Nation Bureau

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