हरिद्वार में 1 अप्रैल से शुरू होने वाले कुंभ मेले में चिकित्सा देखभाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की समीक्षा करने एक केंद्रीय टीम जाएगी. स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को यह जानकारी दी. मंत्रालय ने कहा कि टीम में नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के अधिकारी शामिल होंगे और इसके निदेशक सुरजीत कुमार सिंह होंगे. जैसा कि केंद्र द्वारा बताया गया है, टीम कुंभ के दौरान कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए निवारक उपायों के संबंध में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी कुंभ मेले के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) के कार्यान्वयन की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करेगी. बता दें कि उत्तराखंड सरकार के अनुसार, यह कुंभ मेला 1 से 30 अप्रैल यानी 30 दिनों तक चलेगा. इससे पहले हरिद्वार में 14 जनवरी से 28 अप्रैल के बीच 2010 में आयोजित किया गया था.
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हरिद्वार में कुंभ स्नान का भी खास महत्व है. हरिद्वार में कुंभ का आयोजन हर की पौड़ी गंगा किनारे आयोजित किया जाता है. हरिद्वार सबसे पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है. मान्यता है कि हर की पौड़ी पर भगवान हरि यानि कि विष्णु जी के चरण पड़े थे, तभी से इस स्थान का नाम हरि कि पौड़ी पड़ा.
हर की पौड़ी या ब्रह्मकुण्ड पवित्र नगरी हरिद्वार का मुख्य घाट है हर शाम सूर्यास्त के समय साधु संन्यासी गंगा आरती करते हैं, उस समय नदी का नीचे की ओर बहता जल पूरी तरह से रोशनी में नहाया होता है और याजक अनुष्ठानों में मग्न होते हैं.
कुंभ की कथा
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से अमृत कलश निकला तो देवताओं और असुरों के बीच अमृत के लिए युद्ध शुरू हो गया है. इस दौरान जिस-जिस स्थान पर अमृत गिरा तो उन्हीं पवित्र स्थानों पर कुंभ मेले आयोजित किया जाने लगा. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेले में स्वर्ग से सभी देवी-देवता धरती पर भ्रमण के लिए उतरते हैं. तो जो भी श्रद्धालु कुंभ स्नान करता है उनपर देवी-देवता विशेष रूप से अपनी कृपा बरसाते हैं. कुंभ मेला हरिद्वार के अलावा उज्जैन में शिप्रा नदी में, नासिक में गोदावरी किनारे और प्रयागराज (इलाहाबाद) के गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर लगता हैं.
हर की पौड़ी का महत्व
मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि ने गंगा नदी के तट पर कई वर्षों तक तपस्या की थी. और फिर उनकी मृत्यु के पश्चात राजा विक्रमादित्य ने उनकी याद में इस घाट का निर्माण करवाया था. आज भी इस पहाड़ी के नीचे भर्तृहरि के नाम से एक गुफा है. यह भी कहा जाता है कि तपस्या के दौरान राजा भर्तृहरि जिस रास्ते से उतरकर गंगा नदी में स्नान के लिए आते थे, उन्हीं रास्तों पर भर्तृहरि के भाई राजा विक्रमादित्य ने सीढियां बनवाई थीं. इन सीढ़ियों को राजा भर्तृहरि ने ‘पैड़ी’ का नाम दिया था. बाद में इस पैड़ी को हरि की पौड़ी या हरि की पैड़ी कहा जाने लगा, क्योंकि भर्तृहरि के नाम के अंत में हरि शब्द जुड़ा है. आज भी इस जगह को ‘हरि की पैड़ी’ या ‘हरि की पौड़ी’ कहा जाता है. दूसरी ओर, हरि का मतलब नारायण यानी भगवान विष्णु (Lord Vishnu) भी होता है.
उस समय इसे हरि-की-पैड़ी के नाम से पुकारा जाता था. पैड़ी का अर्थ, सीढ़ियां होता है. यह भी माना जाता है कि भगवान शिव वैदिक काल में यहां आये थे और भगवान विष्णु के पद-चिन्ह भी यहां एक पत्थर पर अंकित हैं. एक मान्यता यह भी है कि विष्णुजी के पैरों के निशान की वजह से भी इस स्थान को हर की पैड़ी पुकारा जाता है.
एक मान्यता यह भी है कि ‘हरि की पौड़ी’ ही वह जगह है, जहां समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं. ‘हरि की पौड़ी’ हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट है. एक अन्य मान्यता के अनुसार, वैदिक काल में इसी ‘हरि की पौड़ी’ पर श्रीहरि विष्णु और शिवजी प्रकट हुए थे और ब्रह्माजी ने यहां एक यज्ञ भी किया था.
HIGHLIGHTS
- हरिद्वार के अलावा कुंभ नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में लगता है
- हरि की पौड़ी’ अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं
- हर की पौड़ी पर भगवान हरि यानि कि विष्णु जी के चरण पड़े थे