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Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज से जानें क्या है कर्मों का बंधन, कैसे मिलेगा मोक्ष का मार्ग

Premanand Ji Maharaj: कर्मों में बंधन में बंधे मोक्ष का मार्ग पाना कितना मुश्किल या कितना आसान है ये प्रेमानंद जी महाराज से जानें.

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Inna Khosla
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Premanand Ji Maharaj what is the bondage of karma

Premanand Ji Maharaj

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Premanand Ji Maharaj: अगर किसी ने आपसे पैसे लिए हैं और वह ईमानदारी से लौटाने के बजाय बेईमानी कर रहा है तो उसे गाली मत दीजिए. हो सकता है कि आप पहले से ही बेईमानी के कारण इस स्थिति में हों, इसलिए इसमें कोई समस्या नहीं है. वह व्यक्ति आपके कर्ज़ के भार को उठा चुका है और आपको कर्म बंधन से मुक्त कर दिया है. उसे बेईमान मानकर अपने मन में कटुता न रखें. जो कुछ भी भविष्य में होगा, उसके परिणाम आपको भुगतने ही होंगे. इसलिए आपको अपने जीवन में जो भी दुख सहने पड़ें उन्हें सहन करें. भगवान की शरण लें और हमेशा उनकी भक्ति में लगे रहें. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, "यस्तु सर्वाणि कर्माणि, मां सस्मत परि अनन्या, येन माम् धपस्थे समहम्," अर्थात संसार बहुत कठिन है और इसे पार करना आसान नहीं है. 

कर्म के बंधन और मोक्ष के मार्ग की कहानी

एक महात्मा जी जो बचपन से ही भगवान शालिग्राम की पूजा करते थे उन्हें 90 लोगों ने घेर लिया जो उन्हें मारने के लिए आए थे. उन्होंने महात्मा जी को घेरकर मारने का प्रयास किया लेकिन महात्मा जी ने उनसे प्रार्थना की कि उन्हें गंगा में स्नान करने और भगवान की पूजा करने का एक अवसर दिया जाए. महात्मा जी ने स्नान किया और भगवान से प्रार्थना की, हे प्रभु, यह आपकी लीला क्या है? तब भगवान ने उनसे कहा, तुमने अपने पिछले जन्मों में 90 हत्याएं की हैं और इस जन्म में तुम्हें इसका परिणाम भुगतना होगा. परंतु तुम्हारी भक्ति के कारण अब तुम्हें 90 जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होगी. केवल इस जन्म में ही तुम्हारा कर्म पूरा हो जाएगा. इस प्रकार भगवान की महिमा से महात्मा जी को उनके कर्मों का फल एक ही जन्म में मिल गया और उनके 90 जन्मों का पाप समाप्त हो गया.

प्रेमानंद जी महाराज का कहना है कि ये संसार कर्मों का बंधन है. अगर महात्मा जी ने यह श्राप दिया होता कि आपकी वंशावली नष्ट हो जाएगी तो भगवान ने भी इसे स्वीकार किया होता. भगवान ने कभी यह नहीं दिखाया कि वे स्वयं भगवान हैं. उन्होंने नारद जी के श्राप को भी स्वीकार किया था. इसलिए हमें भी अपने जीवन में जो कुछ भी सहन करना पड़े उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए. भगवान की शरण में रहकर हमें अपने सभी कर्मों को उनके समर्पण में लीन कर देना चाहिए.

भगवान कहते हैं, "यस्य सर्वे समारंभ, काम संकल्प विरित ज्ञान नि दग्ध कर्मानी बुद्धा," अर्थात जिसने अपने सारे कर्मों को ज्ञान की अग्नि में जला दिया है और जिसके कर्म संकल्प और कामनाओं से मुक्त हैं, वही सच्चा ज्ञानी है. जब प्रेम प्रकट होता है तो सारे दुखों का नाश हो जाता है. भगवान का प्रेम ही वह शक्ति है जो जीवन के सभी दुखों और कठिनाइयों को मिटा सकती है. जब यह प्रेम आपके हृदय में जाग्रत होता है तो संसार के सबसे बड़े दुख भी आपको विचलित नहीं कर सकते.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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