न्याय के देवता और यमराज के भ्राता सूर्यपुत्र शनिदेव कहते हैं ये एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनके क्रोध से इंसान तो क्या देवता भी कांपते हैं. जिस किसी पर भी शनिदेव की वक्र दृष्टि पड़ जाती है. उसके तो सभी बने बनाए काम बिगड़ जाते है. ऐसा नहीं है कि शनिदेव सिर्फ बुरे कर्मों का फल देते है. न्यायाधीश शनिदेव तो सच्चे और ईमानदार लोगों को भी उनके अच्छे कर्मों का फल देते हैं. कहते हैं शनिदेव की कृपा से तो रंक भी राजा बन जाता है. मान्यता है कि जो भी जातक शनि से जुड़े दान और उनके मंत्रों का जाप करता है, उसे बढ़ते कर्ज से मुक्ति पाने में मदद मिलती है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है साथ ही बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है यहीं नहीं शनिदेव की पूजा से साढ़ेसाती के प्रकोप से भी निजात मिलती है.
शनि ग्रहों के न्यायाधीश और दंडाधिकारी हैं. शनिदेव व्यक्ति को उसके शुभ अशुभ कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं. शनि देव बिना कारण के पीड़ा नहीं देते व्यक्ति के गलत कार्यों के फलस्वरूप ही उन्हे पीड़ा भोगनी पड़ती है. शनिदेव तो केवल पीड़ा देने के माध्यम बनते हैं.
सूर्यपुत्र शनिदेव न्याय के देवता हैं. जिस भी जातक की कुंडली में पितृदोष या कालसर्प दोष होता है तो उस जातक के जीवन में सदैव परेशानियां बनी रहती है. उनके जीवन में कभी कुछ ठीक नहीं चलता.ऐसे लोगों के परिवार में अक्सर वाद-विवाद बना रहता है.
और पढ़ें: अमेरिका से रहा है हनुमान जी का नाता! रिसर्च में किया गया दावा
अगर आप भी इसी तरह के दोषों से परेशान हैं तो आज न्यूज स्टेट आपकी परेशानियों को हल करने में मददगार साबित होगा.आज हम आपको शनिदेव के प्रकोप से बचने के वो तमाम उपाय बताएंगे जिन्हे करने से आपको शनिदेव से प्रकोप का सामना नहीं करना पड़ेगा.
चलिए सबसे पहले आपको बताते हैं कि शनि जब पीड़ा देते हैं तो इसके प्रभाव क्या होते हैं.
- जिस भी जातक पर शनि की वक्र दृष्टि पड़ जाती है, उसे लम्बी बीमारी की समस्या का सामना करना पड़ता है. ऐसे जातकों के हर कार्य में विलम्ब और रुकावट आती है. नौकरी के जुड़े रास्ते में कठिनाई आती है साथ ही ऐसे जातकों को जीवन में अकेलेपन का सामना करना पड़ता है. शनिदेव की पूजा अगर विधि-विधान से की जाए तो तुरंत फलदायी होती है.
- कहते हैं शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए लोहे का छल्ला सबसे मददगार साबित होता है. चलिए अब आपको बताते हैं आखिर क्यों शनि के प्रकोप से बचने के ल्ए लोहे का छल्ला धारण किया जाता है.
- कहते हैं शनिदेव का आधिपत्य लौह धातु पर है इसिलिए लोहे का छल्ला शनि देव की शक्तियों को नियंत्रित करने के काम आता है. मान्यता है कि लोहे से बना छल्ला शनि की पीड़ा को काफी हद तक कम कर देता है. लोहे का छल्ला बनवाते समय एक बात का ध्यान दें. लोहे के छल्ले को आग में ना तपाये. ये छल्ला धारण करने से पहले कुछ अहम बातों का ध्यान जरुर रखें.
- लोहे के छल्ले को शनिवार के अलावा किसी भी दिन लाएं. छल्ले को शनिवार की सुबह सरसों के तेल में डुबोकर रख दें. शाम को इसे निकाल कर जल से धोकर शुद्ध कर लें. उसके बाद ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करें. मंत्र जाप के बाद इसे मध्यमा उंगली में धारण कर लें. ऐसा करने से शनिदेव की पीड़ा का असर कम होने लगता है.
ग्रहों में शनिदेव को कर्मों का फल देना वाला ग्रह माना गया है. शनिदेव एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा लोग डर की वजह से करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है शनि देव न्याय के देवता हैं जो इंसान को उसके कर्म के हिसाब से फल देते हैं. शनिवार के दिन शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता जिसे लेकर पौराणिक मान्यता भी है.
माना जाता है कि रावण अपने अहंकार में चूर था और उसने अपने बल से सभी ग्रहों को बंदी बना लिया था. कहते हैं जब रावण शनिदेव को कैद कर लंका ले गया था. तब क्रोधित होकर हनुमानजी ने पूरी लंका जला दी थी. जिसके चलते सभी ग्रह आजाद हो गए. शनि के दर्द को शांत करने के लिए हुनमानजी ने उनके शरीर पर तेल से मालिश की थी और शनि को दर्द से मुक्त किया था. उसी समय शनि ने कहा था कि जो भी भक्त श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उसे सारी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी. तभी से शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई थी.
शनिदेव को तेल चढ़ाने को लेकर एक मान्यता और भी है...जिसके चलते एक बार शनि देव को अपने बल और पराक्रम पर घमंड हो गया था. लेकिन उस काल में भगवान हनुमान के बल और पराक्रम की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी. जब शनि देव को भगवान हनुमान के बारे में पता चला तो वो भगवान हनुमान से युद्ध करने के लिए पहुंचे. शनिदेव की युद्ध की ललकार सुनकर क्षी हनुमान शनिदेव को समझाने पहुंचे. लेकिन शनिदेव ने उनकी एक नहीं सुनी और युद्ध के लिए अड़ गए. जिसके बाद भगवान हनुमान और शनिदेव के बीच युद्ध हुआ, जिसमें शनिदेवबुरी तरह घायल हो गए. जिसके कारण उनके शरीर में पीड़ा होने लगी. घायल शनिदेव को क्षी हनुमान ने तेल लगाने के लिए दिया, जिससे उनका पूरा दर्द गायब हो गया. तभी शनिदेव ने कहा कि जो भी भक्त मुझे सच्चे मन से तेल चढ़ाएगा मैं उसकी सभी पीड़ा को दूर कर उनकी मनोकामनाओं को पूरा कर दूंगा.
शनिदेव को सीमाग्रह भी कहा जाता है. कहते हैं जहां सूर्य का प्रभाव खत्म होता है. वहां से शनिदेव का प्रभाव शुरू होता है. कहते हैं जिसपर शनि की कृपा हो जाए...उसकी तरक्की भी रुक नहीं सकती. और जिसपर उनकी वक्र दृष्टि पड़ जाए तो उसका जीवन बद से बदतर हो जाता है. शनि अगर खुश हों तो यशवान बनाते है और नाराज हों तो अपयश प्रदान करते हैं.
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें काले तिल, तेल, काले वस्त्र, काली उड़द अर्पण करें. रोजाना शनि चालिसा का पाठ करें. हर शनिवार को शनिदेव के लिए व्रत करें. शनिदेव के नाम से दीप जलाकर अपने अपराधों की क्षमा याचना करें. ऐसी मान्यता है कि शनिवार के दिन पीपल पर जल देने और 7 बार उसकी परिक्रमा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. शनिवार के दिन शनि का व्रत रखने से शि दोषों से तो छुटकारा मिलता ही है. साथ ही धन लाभ की प्राप्ति भी होती है. जीवन में ग्रहों का प्रभाव बहुत प्रबल माना जाता है और उस पर भी शनि ग्रह अशांत हो जाएं तो जीवन में कष्टों का आगमन शुरू हो जाता है. इसलिए शनि दोषों से पीड़ित जातकों को शनिवार इस दिन शनिदेव का व्रत जरुर रखना चाहिए.
शनिदेव के व्रत करने का पूरा विधि-विधान
1. शनिवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें.
2. लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं.
3. काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र और तेल से शनिदेव की पूजा करें. पूजन के दौरान शनि के दस नाम कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर का उच्चाण करें. पूजन के बाद पीपल के वृक्ष की सात परिक्रमा करें और अंत में शनिदेव के मंत्रों का जाप करें. कहते हैं लगातार सात शनिवार ऐसा करने से शनि दोषों से छुटकारा पाया जा सकता है.
हिन्दू मान्यता है कि शनि की अगर शुभ दृष्टि हो तो रंक भी राजा बन जाता है. देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग ये सब इसकी अशुभ दृष्टि पड़ने पर नष्ट हो जाते हैं. कहते है कि शनि जिस अवस्था में होगा, उसके अनुरूप फल प्रदान करेगा इसिलिए भक्त शनि के दर जाकर उन्हे प्रसन्न करने की तमाम कोशिशें करते है.
Source : Yogita bhagat