शनिदेव को कठोर कहा जाता है. न्यायप्रिय शनिदेव के लिए सब एक समान है. पृथ्वी पर रहने वाले व्यक्तियों से लेकर ब्रह्मलोक में रहने वाले देवी-देवताओं तक कोई भी शनि की दृष्टि से नहीं बचा है. कहते हैं कि भगवान शिव भी शनिदेव की साढ़ेसाति का शिकार हो चुके हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार किस तरह शनिदेव ने शिव भगवान पर साढ़ेसाति की नज़र डाली और भगवान को उस दौरान क्या कष्ट भोगना पड़ा आइए आपको सब बताते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन शनिदेव भगवान शिव के पास आए और उन्हें आदरपूर्वक प्रणाम करते हुए कहने लगे कि हे देव कल मैं आपकी राशि में व्रक दृष्टि से प्रवेश करने वाला हूं.
शनिदेव की ये बात सुनकर भगवान शिव मुस्कुराए और बोले हे शनिदेव आप कितने समय तक अपनी वक्री दृष्टि मुझपर रखेंगे.
तब शनिदेव ने भगवान शिव को कहा कि हे नाथ मैं कल आपकी राशि में सवा प्रहर ( पृथ्वी के साढ़ेसात साल ) मेरी वक्री दृष्टी रहेगी. भगवान शिव थोड़ा चिंतित तो हुए और उनकी ये बात सुनने के बाद वो इसका उपाय सोचने लगे.
अगले दिन से पहले भगवान शिव मृत्युलोक पहुंचकर वहां हाथी बन गए और ये सोचने लगे कि अब जब उन्हें शनिदेव देखेंगे ही नहीं तो भला वक्री दृष्टि कैसे उन पर डालेंगे. सवा प्रहर पूरा होने के बाद उन्होंने वापस अपना अवतार लिया और कैलाश आ पहुंचे.
कैलाश में भगवान शिव ने शनिदेव को उनका इंतज़ार करते देखा. प्रसन्नचित भाव से उन्होंने शनि से कहा आपकी वक्री दृष्टि का मुझपर कोई असर नहीं हुआ....
भगवान शिव की ये बात सुनकर शनिदेव भी मुस्कराए और उन्होंने कहा कि हे देव ... मेरी दृष्टी से ना तो देव और ना ही दानव बच पाए हैं.. आप पर भी मेरी वक्री दृष्टी का असर पड़ा है.
इसी वजह से आपको सवा प्रहर देवलोक छोड़ जाना पड़ा और देव योनी से पशु योनी में ये समय बिताना पड़ा. आश्चर्यचकित भगवान शिव ने ये बात सुनकर शनिदेव को अपने सीने से लगा लिया.
सभी देवी-देवताओं की अपनी शक्तियां हैं. हमें उनका आदर करना चाहिए. कभी भी किसी चीज़ के तिरस्कार करने से किसी को कोई फायदा नहीं मिला है. ये पौराणिक कथा भी आपको सीख देती है.
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Source : News Nation Bureau