Lord Shivas Origin: कैसे हुआ भगवान शिव का जन्म, जानें शिव पुराण और विष्णु पुराण की विरोधाभासी कथाएं

Bhagwan Shiv Ka Janam Kaise Hua: देवों के देव महादेव का जन्म कैसे हुआ ये ज्यादातर लोग नहीं जानते. शिव पुराण और विष्णु पुराण में उनके जन्म से जुड़ी ये कथाएं प्रचलित हैं जो विरोधाभासी भी हैं.

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Inna Khosla
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Lord Shivas Origin

Lord Shivas Origin( Photo Credit : News Nation)

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Lord Shivas Origin: भगवान शिव के बारे में ऐसा कहा जाता है की भगवान शिव त्रिलोक के आदि और अंत के देवता है जिनके आगे दुनिया की सभी शक्तियां असफल हो जाती है. लेकिन क्या आपको मालूम है आखिर भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ था, उनकी माता कौन थी और उनके पिता का क्या नाम था, उन्होंने किससे अपनी शिक्षा प्राप्त की थी और किसे शिक्षा का दान दिया था. शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू हैं, जिनका कोई माता-पिता नहीं है. वहीं, विष्णु पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव का जन्म भगवान विष्णु के माथे से निकले तेज से हुआ था. इन दोनों पुराणों की कथाओं में विरोधाभास है, लेकिन दोनों ही भगवान शिव की महानता को दर्शाती हैं. दोनों पुराणों के अनुसार भगवान शिव की उत्पत्ति की पूरी कहानी क्या है आइए जानते हैं. 

शिव पुराण की कहानी 

शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव को स्वयंभू माना जाता है, जिसका मतलब होता है कि भगवान शिव का जन्म स्वयं ही. हुआ था. यानी की इससे एक बात तो साफ हो जाती है की ना ही भगवान शिव की कोई माता है और ना ही उनके कोई पिता है. इसी कारण से भगवान शिव पंचतत्वों से भी परे है. जीस कारण से इन्हें मृत्यु का भी कोई भय नहीं है और इनकी मृत्यु कभी नहीं हो सकती.

इस कथा के अलावा, भगवान शिव के जन्म की एक और पौराणिक कथा काफी ज्यादा पॉपुलर है जिसे शायद आपने बड़े बुजुर्गों से सुना होगा. एक बार की बात है जब भगवान विष्णु और परम ब्रह्मा जी के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई थी कि आखिर इस संसार में सबसे महान कौन है, और जब भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा इस बात को लेकर बहस कर रहे थे तो एक जलते हुए खम्बे के रूप में महादेव उनके बीच आए थे. वो दोनों इस रहस्य को नहीं समझ पाए और तभी अचानक से एक आवाज आई जिसने कहा कि जो भी इस खम्बे का छोर ढूंढ लेगा वही सबसे महान कहलाएगा. ऐसा सुनते ही ब्रह्मा जी ने एक पक्षी का रूप लिया और खम्बे का ऊपरी हिस्सा ढूंढने निकल गए. वही विष्णु जी ने वराह का रूप धारण किया और खम्बे का अंत ढूंढने निकल गए. बहुत देर तक खोजने के बाद भी दोनों में से किसी को भी खम्बे का छोर नहीं मिला और दोनों हार मान कर वापस आ गए. 

जिसके बाद भगवान शिव अपने असली रूप में आए और फिर भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने ये मान लिया की महादेव ही सबसे महान और शक्तिशाली है. इनसे बड़ी शक्ति इस दुनिया में कोई नहीं है. इसके साथ ही शिव पुराण में बताया गया खंबा इस बात को दर्शाता है कि न ही भगवान शिव जन्मे थे और ना ही उनका कोई अंत है. यही एक कारण है कि भगवान शिव को स्वयंभू कहा जाता है, यानि भगवान शिव का अंत है ही नहीं, वे अमर है. 

विष्णु पुराण की कहानी 

विष्णु पुराण में बताया गया है कि भगवान विष्णु के माथे से निकलने वाले तेज के कारण भगवान शिव की उत्पत्ति हुई थी और उनके नाभि से निकलते हुए तेज से कमल पर विराजमान ब्रह्मा जी का जन्म हुआ था. विष्णु पुराण की एक प्रचलित पौराणिक कथा है के अनुसार जब धरती, आकाश, पाताल या कहे पूरा यूनिवर्स पानी में डूबा हुआ था तब भगवान विष्णु के अलावा कोई भी देव या प्राणी इस संसार में नहीं था. तब केवल विष्णु ही जल सतह पर अपने शेष नाग पर लेटे हुए नजर आ रहे थे, जिसके बाद उनकी नाभि से कमल की डंडी पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और जब भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु इस यूनिवर्स से संबंधित बातें कर रहे थे तब भगवान शिव प्रकट हुए जिसके बाद ब्रह्मा ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया. इस कारण से भगवान शिव रूठ गए और उनके रूठ जाने के कारण भगवान विष्णु ने उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान कर ब्रह्मा जी को भगवान शिव की याद दिलायी. जिसके बाद भगवान ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और शिव से क्षमा मांगते हुए उन्होंने उनसे अपने पुत्र रूप में पैदा होने का आशीर्वाद मांगा. जिस कारण से भगवान शिव ने भगवान ब्रह्मा की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए उन्हें ये आशीर्वाद दे दिया. 

इसके बाद, जब भगवान ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना शुरू की तो उन्हें एक बच्चे की जरूरत पड़ी और तब उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद ध्यान आया. जिसके लिए भगवान ब्रह्मा ने तपस्या की और बालक के रूप में भगवान शिव उनकी गोद में रोते हुए प्रकट हुए. ये भगवान शिव का एकमात्र बाल रूप है, जब भगवान ब्रह्मा ने उनके रोने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका कोई नाम नहीं है. तब भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव का नाम रुद्र रख दिया, जिसका मतलब होता है रोने वाला. इसके बावजूद भी भगवान शिव चुप नहीं हुए इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया पर शिव को वो नाम भी पसंद नहीं आया और फिर भी वे चुप नहीं हुए. इस तरह शिव को चुप कराने के लिए भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव को 108 नाम दिए थे, जो रुद्र, सर्व भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव जैसे नाम थे और शिव पुराण के अनुसार उनके ये नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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