गंगा के पश्चिमी घाट पर भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंग में से एक विश्वेश्वर लिंग पर काशी विश्वनाथ का मंदिर है और इसी मंदिर के निकट दक्षिण दिशा में माँ अन्नपूर्णा देवी का मंदिर है जो भक्तों को अन्न-धन प्रदान करने वाली माँ अन्नपूर्णा का दिव्य धाम है. दीपावली से पहले धनतेरस पर्व पर माँ का अनमोल खजाना खोला जाता है और श्रद्धालुओं में इसकों साल में केवल एक दिन धनतेरस के दिन बाटा जाता है.
खजाने के रूप में भक्तों को अठन्नी, एक और दो रूपये के सिक्के दिए जाते हैं. जिसके पीछे की मान्यता है कि इस खजाने के पैसे को अगर अपने घर और प्रतिष्ठान में रखा जाये तो कभी धन, सुख और समृद्धि में कमी नहीं होती. माँ अन्नपूर्णा के स्वर्णिम स्वरुप का दर्शन भी वर्ष भर मे मात्र चार दिनों के लिए धनतेरस से खोला जाता है. माँ अन्नपूर्णा के दरबार में मिले धन को आस्थावान अपनी तिजोरी में और धान के लावा को रसोई या फिर अन्न के भंडारे में रखते हैं. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि उनका घर हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण रहेगा.
कई पीढियों से अन्नपूर्णा मंदिर में सेवा में लगे महंत परिवार के पास भी कोई ऐसी ठोस जानकारी नहीं है कि कब से वे इस प्राचिन मंदिर से जुड़े हैं और हर वर्ष यहां कितने लाख का खजाना श्रद्धालुओं में बाट दिया जाता है। लेकिन चलन की सबसे छोटी मुद्रा का वितरण यहां हर साल धनतेरस वाले दिन खजाने के रूप में धान के लावे के साथ किए जाने की परंपरा चली आ रही है। माँ ने जिस रूप में दर्शन दिया उसी स्वरूप की पूजा और दर्शन वर्ष में धनतेरस से शुरू होकर दिवाली के अगले दिन अन्नकूट तक चलता है।
Source : News Nation Bureau