Maha Kumbh Mystery: महाकुंभ मेले की उत्पत्ति से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है जो देवता और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन की घटना पर आधारित है. समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक घमासान युद्ध हुआ था. अमृत को पाने की इस लड़ाई के दौरान कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरी थीं और ये स्थान थे- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक. इसलिए इन चार स्थानों को पवित्र माना गया और यहीं पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. इस महापर्व को लेकर भारतीय ज्योतिष शास्त्र और पुराणों में कई विशेष घटनाएं दर्ज हैं जो इस मेले को प्रत्येक 12 साल के अंतराल पर आयोजित करने के कारण को स्पष्ट करती हैं.
बृहस्पति की गति का महत्व (Significance of Jupiter's motion)
इस महाकुंभ मेले के आयोजन के पीछे प्रमुख कारणों में से एक है बृहस्पति ग्रह की गति. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, बृहस्पति ग्रह प्रत्येक राशि में लगभग एक साल तक स्थित रहता है. इस प्रकार, 12 राशियों का चक्र पूरा करने में बृहस्पति को लगभग 12 वर्ष का समय लगता है. जब बृहस्पति किसी विशिष्ट राशि में होता है और सूर्य देव भी विशेष राशि में स्थित होते हैं तो यह विशेष संयोग कुंभ मेले के आयोजन के लिए सबसे सही समय माना जाता है. इन ग्रहों की स्थिति का प्रभाव कुंभ मेला कहां होगा उस स्थान को भी निर्धारित करता है.
- जब बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तो प्रयागराज में कुंभ मेला आयोजित होता है.
- जब बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तो हरिद्वार में कुंभ मेला लगता है.
- बृहस्पति और सूर्य दोनों के सिंह राशि में होने पर नासिक में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है.
- बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में हों, तो उज्जैन में कुंभ मेले का आयोजन होता है.
तो इस तरह से बृहस्पति और सूर्य की विशेष राशियों में स्थिति ही यह तय करती है कि महाकुंभका आयोजन किस स्थान पर किया जाएगा.
काल भेद और देवताओं के 12 दिवसीय संघर्ष का महत्व (Significance of Kaal Bhed and 12 day struggle of Gods)
महाकुंभ के आयोजन के पीछे एक और कारण काल भेद से जुड़ा है. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, देवताओं का एक दिन मानव के 12 वर्षों के बराबर होता है. इस प्रकार, देवताओं के 12 दिवसीय संघर्ष को पृथ्वी पर 12 वर्षों के समय में परिवर्तित माना गया है. इसलिए, मानव जीवन में हर 12 साल के बाद महाकुंभ का आयोजन किया जाता है. महाकुंभ के दौरान करोड़ों श्रद्धालु इन चार पवित्र स्थानों पर स्नान करने आते हैं और अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं. इस आयोजन में साधु-संतों, महंतों और नागा साधुओं का जमावड़ा होता है, जो सनातन धर्म के महत्व (importance on sanatan dharm)और इसकी प्राचीन परंपराओं का संदेश फैलाते हैं. यह मेला भारतीय संस्कृति, एकता और धर्मनिष्ठा का प्रतीक है, जिसमें भाग लेने से आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. महाकुंभ मेले का आयोजन 12 वर्षों के चक्र पर आधारित है, जो बृहस्पति की गति, पौराणिक कथाओं और काल भेद के सिद्धांत पर आधारित है.
यह भी पढ़ें: Non Hindu Ban in Maha Kumbh 2025: महाकुंभ में गैर-हिंदूओं के प्रवेश पर लगेगी पाबंदी? जानें क्या है पूरा मामला
Religion की ऐसी और खबरें पढ़ने के लिए आप न्यूज़ नेशन के धर्म-कर्म सेक्शन के साथ ऐसे ही जुड़े रहिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)