Mahalaxmi Vrat 2024: महालक्ष्मी व्रत विशेष रूप से धन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है. इस व्रत का उद्यापन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल महालक्ष्मी व्रत 11 सितंबर से शुरू हुए है जो 24 सितंबर को खत्म होने वाले हैं. ऐसा माना जाता है कि बिना उद्यापन किए व्रत का फल नहीं मिलता. महालक्ष्मी व्रत के उद्यापन के लिए शाम के समय पूजा की जाती है. इस दौरान, व्रत की शुरुआत में बांधे गए 16 गांठों वाले लाल धागे को हाथ में बांधकर पूजा करते हैं और माता लक्ष्मी के सामने 16 देसी घी के दीपक जलाए जाते हैं. विधिवत रूप से मां लक्ष्मी की पूजा करने वाले जातक की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.
महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन कब है (mahalaxmi vrat ka udyapan kab hai )
- ब्रह्म मुहूर्त 04:35 ए एम से 05:23 ए एम
- प्रातः सन्ध्या 04:59 ए एम से 06:11 ए एम
- अभिजित मुहूर्त 11:49 ए एम से 12:37 पी एम
- विजय मुहूर्त 02:13 पी एम से 03:02 पी एम
- गोधूलि मुहूर्त 06:15 पी एम से 06:39 पी एम
- सायाह्न सन्ध्या 06:15 पी एम से 07:27 पी एम
- अमृत काल 01:11 पी एम से 02:46 पी एम
- निशिता मुहूर्त 11:49 पी एम से 12:37 ए एम, सितम्बर 25
- द्विपुष्कर योग 06:11 ए एम से 12:38 पी एम
महालक्ष्मी व्रत के उद्यापन की पूजा विधि
सामग्री
- देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र
- फल, मिठाइयाँ (जैसे लड्डू, बर्फी)
- 16 गांठ वाला धागा (या मौली)
- दीपक, धूप, अगरबत्ती
- चंदन, कुमकुम, चावल
- पत्ते (पान के पत्ते)
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें. पूजा के स्थान को साफ करके वहां एक सफेद चादर बिछाएं और उस पर लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें. लक्ष्मी जी के सामने दीपक जलाएं और धूप लगाएं.
मंत्र जाप
"ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः" का जाप करते हुए मन को एकाग्र करें.
फल, मिठाइयां और अन्य भोग अर्पित करें. ध्यान रखें कि सभी सामग्री ताजा और पवित्र हो. इसके बाद, आरती करें और जय लक्ष्मी माता का जाप करते हुए पूजा के बाद प्रसाद सभी उपस्थित लोगों में बांटें.
16 गांठ वाला धागा (मौली) महालक्ष्मी व्रत में बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस धागे को अपनी कलाई पर बांधें. इसे भाग्य और सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. पूजा के दौरान इस धागे को देवी लक्ष्मी के चित्र या मूर्ति के पास रखें. जब तक यह धागा आपके हाथ पर है, तब तक आप व्रत का पालन करते रहें. व्रत के बाद इसे घर के किसी पवित्र स्थान पर रखना चाहिए. व्रत समाप्त होने पर, धागे को नदी या पवित्र जल में प्रवाहित कर दें. महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन एक पवित्र और महत्वूर्ण अनुष्ठान है, जो समृद्धि और खुशियों प्रदान करता है. 16 गांठ वाला धागा इसे और भी विशेष बनाता है. इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)