Mahashivratri 2023 : आज महाशिव की रात्रि है. आज ही के दिन भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था. इस दिन भगवान शिव पहली बार ज्योतिर्लिंग के रूप में रूप में प्रकट हुए थे. शिवपुराण के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि जब वह ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे, तब इसके प्रारंभ और अंत का किसी को भी पता नहीं चला था,यहां तक कि खुद भगवान विष्णु और ब्रह्मा को भी नहीं पता चला था. भगवान शिव का यही स्वरूप महाशिवालय कहलाया और उस रात को महाशिवरात्रि कहा गया. शिव के कई स्वरूप हैं, उनके हर स्वरूप के पीछे कोई न कोई कहानी छिपी है. जो हमें जिंदगी जीने के तरीके के बारे में बताती है, तो ऐसे में आइए आज हम आपको अपने इस लेख में भगवान शिव के नामों के पीछे के कारण और उसके अर्थ के बारे में बताएंगे.
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भगवान शिव की इन नौ रूपों में छिपा है जिंदगी जीने का रहस्य
1.सभी जीव के स्वामी हैं भगवान शिव, इसलिए इनका नाम ईश्वर पड़ा
विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र में वेद व्यास ने भगवान शिव के लिए ईश्वर शब्द का प्रयोग किया है. ईश्वर का मतलब होता है, सभी के स्वामी. भगवान शिव को सृष्टि का स्वामी कहा गया है. भगवान शिव के हर नाम में ईश्वर जुड़ा हुआ है, जैसे कि केदारेश्वर, महाकालेश्वर.
2.भगवान शिव सभी विद्याओं के सबसे पहले गुरु हैं, इसलिए इनका नाम विद्येश्वर पड़ा
भगवान शिव को सभी विद्याओं के मालिक यानी की विद्येश्वर कहा गया है.देवताओं के गुरु बृहस्पति, दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य और पूरे मानव समाज को बनाने वाले सप्तऋषियों के गुरु भगवान शिव हैं. इसलिए उन्हें आदिगुरु कहा गया है. योग से लेकर, ज्योतिष, मंत्र और चिकित्सा ये सभी विद्याएं शिव की हैं.
3.भगवान शिव का नीलकंठ स्वरूप देता है ये संदेश
भगवान शिव जिन्हें नीलकंठ कहा जाता है. ये समुद्र मंथन के समय की बात की है,जब देवता और दानवों ने अमृत पाने के लिए समुद्र का मंथन शुरु किया था. मंथन के दौरान हलाहल नाम का विष निकला, जिसका जहर इतना तेज था कि सृष्टि का विनाश होने लगा था. तब भगवान विष्णु ने सभी देवताओं और दानवों को भगवान शिव से प्रार्थना करने की सलाह दी थी. तभी उनकी रक्षा करने के लिए भगवान शिव आगे आए थे और उन्होंने सारा विष अपने गले में अटका लिया. तब से वे निलकंठ कहलाने लगे. भगवान शिव का ये स्वरूप यह संदेश देता है कि बुराई को खुद पर न उतारें.
4.क्या कहता है भगवान शिव का अघोरी स्वरूप
अघोरी स्वरूप शिव तंत्र को बताता है. अघोरी उन्हें कहा जाता है, जिसकी बुद्धि और व्यवहार में कोई भेदभाव नहीं होता है. शिव का य अघोरी स्वरूप सौम्य स्वभाव का है, जो सबके लिए एक समान है.
5.भगवान शिव का कैलाशवासी स्वरूप देता है ये संदेश
भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं. लेकिन उन्हें इसलिए कैलाशवासी नहीं कहा जाता है. उन्हें कैलाशवासी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उनका व्यक्तित्व भी कैलाश के समान है, कैलाश ऊंचाई का प्रतीक माना जाता है. आज भी कैलाश मानरोवर की यात्रा करना बेहद कठिन माना जाता है.