शिवरात्रि पर खास: कैलाश मानसरोवर की यात्रा करना हर शिव भक्त का सपना होता है. हर शिव भक्त जिंदगी में एक न एक बार भगवान शिव की भक्ति में लीन होकर इस जगह की यात्रा करना चाहता है. लेकिन कैलाश मानसरोवर की यात्रा इतनी आसान नहीं होती है. इस यात्रा में आपके स्वास्थ्य सहित कई अन्य फैक्टर होते हैं जिनपर ध्यान दिया जाना जरूरी होता है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा सिर्फ शारीरिक यात्रा नहीं होती बल्कि एक मानसिक यात्रा भी होती है. लेकिन भगवान शिव के प्रताप से इस यात्रा को करने वाले लोगों में एक अलग ही तेज नजर आने लगता है. आज हम आपको इस यात्रा से जुड़ी एक यात्रा वृत्तांत बताने जा रहे हैं ताकी जब कभी आप ऐसी यात्रा करने की सोचें तो आपको पता रहे कि आपको क्या करना है और क्या नहीं करना है. ये कहानी है ए.डी. मिश्रा जी जो आपको अपनी यात्रा के सुखद अनुभव शेयर कर रहे हैं.
ॐ नमः शिवाय
भगवान भोलेनाथ की प्रेरणा से ही मन मे यह इच्छा प्रस्फुटित हुई कि उनके धाम कैलाश के दर्शन किये जांय .इस हेतु संभावनाओं पर विचार किया गया तो कुछ बातें सामने आयीं .मुख्य रूप से –
1- पासपोर्ट की आवश्यकता
2- अनुमानित धन की आवश्यकता
3- यात्रा में लगने वाला समय
4- यात्रा के साधन और
5- स्वयं का स्वास्थ्य
पासपोर्ट के बारे में सोचते हि, सरकारी सेवा में रहते हुए विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र आवश्यकता आयी. वर्ष 2014 में ही उसके लिए आवेदन किया. काफी किन्तु परन्तु के बाद NOC सही प्रारूप पर 2015 के शुरुआत में ही मिल पाई और सेवानिवृत्त (मई 2015 में) होते होते पासपोर्ट भी बन गया.
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इसी बीच कई अन्य आवश्यक कार्य और बाधाओं के कारण यात्रा जुलाई २०१६ तक निश्चित न हो पायी. लेकिन भगवान शिव की कृपा से अगस्त में ट्रेवल एजेंसी से वार्ता करने पर यात्रा 12-09-2016 की सुनिश्चित हो सकी. यह भी पता लगा कि यह यात्रा 7 रात्रि और 8 दिन की होगी और प्रति व्यक्ति लगभग रु०1.75 लाख आएगा .बात चीत करने और समय बीतने के साथ यह राशि हम दोनो के लिए रु० 308876/- ( सेवा कर मिलाकर) पर निर्धारित हुई.घोड़ों और पोर्टर का खर्च इसमें शामिल नहीं था.शारीरिक स्वास्थ्य सामान्य ही था.
अतः मै सपत्नीक 12-09-2016 को इलाहाबाद से लखनऊ के लिए प्रस्थान कर गया .रात भर विभागीय हॉस्टल में रहकर दिनांक 13-09-2016 को प्रातः 9 बजे लखनऊ में ही होटल SSJ इंटरनेशनल में ही टूर ऑपरेटर ट्रिप टू टेम्पल के मुखिया श्री प्रवीण पांडे और श्री विकाश मिश्र जी से मुलाकात हुयी. यात्रा के लिए अन्य 32 लोगों से भी मुलाकात वहीँ पर हुयी .वहीँ पर भोपाल निवासी श्री योगेश पटेरिया से भेंट हुयी जो अपनी माx के साथ यात्रा हेतु आये थे .उनके ही सहयोग से लखनऊ में ही चीनी मुद्रा युआन विनिमय कर के प्राप्त किया.
लखनऊ से दो AC बसों द्वारा सभी लोग लगभग 11:30 बजे दिन में आगे की यात्रा के लिए रवाना हुए .बहराइच होते हुए लगभग 04:30 बजे शाम हम लोग नेपालगंज (नेपाल ) पहुंचे
वहां पर होटल सिटी इंटरनेशनल में खाना खाया गया .फिर वहां से तीन नेपाली बसों द्वारा दूसरे नगर सुरखेत पहुंचे .वहां के होटल में रात का भोजन करके विश्राम किया गया .होटल काफी अच्छा था .शाम को ही निर्देश मिले कि प्रातः 06:00 बजे तैयार होकर एअरपोर्ट निकलना होगा .पहले 20 लोगों को जाना था |
अतः 14-09-2016 को 20 लोग तैयार होकर प्रातः 06:00 बजे होटल के काउंटर के सामने आ गए |वहां पर Trip To Temple लोगो से अंकित बैग और जैकेट टूर ऑपरेटर द्वारा सभी को दिए गये .उसी बैग में सारा सामान लेकर जाना था .अतः लोगों ने अपने बैग आदि से अपना सामान नए बैग में रखकर , अपने बैग आदि वहीं छोड़ दिया और हम लोग एक बस से सुरखेत एअरपोर्ट के लिए रवाना हो गए .एअरपोर्ट होटल से लगभग 2 कि. मी. की दूरी पर है .
सुरखेत एअरपोर्ट से सिमीकोट तक की दूरी हवाई जहाज से लगभग 40 मिनट में तय हुयी और हमलोग लगभग 10:30 बजे सिमीकोट पहुँच गयें .टीम के बाकी सदस्यों को आने में लगभग शाम हो गयी; अतः सभी लोगों को सिमीकोट में ही होटल मानसरोवर में रुककर रात बितानी पड़ी .नेपाल का सिमीकोट एक छोटा सा नगर है, जिसे गाँव कहना ही बेहतर होगा .यह हर तरफ पहाड़ों से घिरा है .यहाँ यातायात का साधन हवाई जहाज/ हेलीकाप्टर या फिर पदयात्रा ही है .ऐसे में होटल व्यवसाय के अलावा वहां के लोगों का, मार्च / अप्रैल से सितम्बर / अक्टूबर तक यात्रियों का या किन्ही – 2 बड़े व्यवसायियों या होटल व्यवसायियों का सामान ढोना ही रोजगार का एकमात्र साधन है .सारा सामान अगर वह बाहर से आना है तो एयरलिफ्ट करके ही आयेगा .ऐसे में एक नौजवान ने बताया कि सीमेंट की एक बोरी Rs 11500-12000 की पड़ती है .“Trip To Temple” यहाँ से सम्राट ग्रुप में समाहित हो गया. सिमीकोट में कुछ थोड़ी दुकानें और यात्रा पर जाने वाले यात्रियों के ठहराने के लिए कुछ होटल हैं.होटल लकड़ी के बने हैं और दीवारों में पत्थरों की से कुशलता चिनाई की गयी है .फिर भी इतनी कारीगरी से बनाये गए है कि हवा खिडकियों के अतिरिक्त कहीं से भीतर नहीं जा सकती |होटल चलाने वालों ने खाने पीने में पूर्ण शाकाहारी एवं बिना लहसुन प्याज के भोजन का विशेष ध्यान रखा.
दिनांक 15-09-2016 को हम लोग 6-6 की टुकड़ियों में सिमीकोट से हेलीकाप्टर द्वारा अगली मंजिल “ हिलसा “ पहुंचाए गयें .हिलसा में एक कामचलाऊ गेस्टहाउस है , जिसमें एक – एक कमरे में 5-6 ब्यक्तियों को ठहराया जाता है.कुल मिलाकर दो मंजिले गेस्टहाउस में 100 लोग ठहर सकते हैं.इसमें एक ही शौचालय है.इस जगह ठहरने की अन्य कोई ब्यवस्था नहीं है.यहां पर थोड़े से गिनती के जो लोग रहते हैं उनका मुख्य काम आने जाने वाले यात्रियों का सामान हेलीकाप्टर से गेस्टहाउस और फिर वहां से चीन सीमा तक पहुँचाना और वापस लाना होता है.हेलिपैड भी अस्थाई ही बना है जो पत्थरों की समतल जमीन है.बगल में ही हरीतिमा लिए स्वच्छ “ करनाली “ नदी का प्रवाह मन को मोहने वाला है.यही करनाली नदी जो पवित्र कैलाश क्षेत्र से निकलती है और भारत में आकर घाघरा और सरयू कहलाती है.
दिनांक 15-09-2016 को ही 2 बजे तक टीम के अन्य सभी सदस्य हिलसा पहुंच गए.करनाली नदी को पार करने के लिए लोहे का झूला पुल बना हुआ है.यहीं से चीन की सीमा में 8 नेपाली शेरपाओं के साथ प्रवेश किया गया.इन शेरपाओं में एक वासुदेव बहुत ही मृदु स्वभाव का था.उसने बताया कि वह इस टूर के बाद पैदल ही नेपालगंज जायेगा और तीन दिन में वहां पहुंचेगा.
चीनी सीमा पर चीन की ही बसें यात्रियों को लेने आयीं थीं.वहीँ पर चीन द्वारा नियुक्त तिब्बती गाइड भी था.उसने सभी के पासपोर्ट इत्यादि चेक करके बस में क्रमवार बैठाया.फिर बाद में चीन का एक पुलिस/ मिलिट्री ऑफिसर ने सभी के पासपोर्ट की बारीकी से चेकिंग एवं ट्रांजिट परमिट से मिलान किया.
फिर बसें वहां से रवाना हुयी.लगभग 3 कि०मी० दूरी पर चीन का इम्माईग्रेशन ऑफिस था जहाँ पर पुनः जाँच की औपचारिकता पूरी होने पर बस आगे बढ़ी और हम लोग लगभग 3 घंटे की की यात्रा के बाद तकलाकोट/ पुरांग पहुंचे.यहाँ पर चीनी कस्टम एवं संचारी रोग विभाग द्वारा सामान की जाँच स्कैनर द्वारा की गयी तथा संचारी रोगाणुओं से मुक्ति हेतु मशीन से दवा छिड़की गयी.तत्पश्चात हम लोगों को थोड़ी दूर पर स्थित होटल में ले जाकर ठहराया गया.होटल बहुत बड़ा एवं अच्छा था.पुराना तकलाकोट चीन द्वारा पुरांग नाम से बनाया बसाया गया एक अत्याधुनिक नगर है जो भव्य भवनों एवं शॉपिंग माँल से युक्त है.अच्छी सड़कों एवं आधुनिक गाडियों से पुरांग जगमगा रहा था.चाय एवं भोजनोपरांत होटल में रात्रि विश्राम किया गया.बताया गया था कि और आगे चलने पर समुद्र तल से ऊँचाई बढती जाएगी और ऑक्सीजन की कमी होती जायेगी.इस कारण मानसिक अस्थिरता से बचाव के लिए Diamox नाम की दवा की एक एक टेबलेट सुबह शाम ले लेनी चाहिए.हम लोगों ने भी यह दवा खा ली.रात में मेरा मुख सूखने लगा, हाथों में कम्पन एवं सांस लेने में परेशानी होने लगी.समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है.तभी योगेश जी जागे और कहा कि दवा का साईड इफ्फेक्ट हो सकता है, थोड़ा थोड़ा पानी पीजिये और गहरी सांस लीजिये.ऐसा करने पर कुछ देर में थोड़ी राहत हुयी और किसी तरह रात बीती.
17/09/2016 को प्रातः हम लोग नाश्ता करके दो बसों द्वारा मानसरोवर के लिए रवाना हुए.वह पूर्णिमा की तिथि थी.लगभग 2.5 घंटे चलने के बाद रास्ते में सबसे पहले “राक्षस ताल” नामक झील पड़ी.इसे “रावण तालाब” भी कहते हैं.बताया गया कि रावण ने इसी झील के बीच स्थित टापू पर बैठ कर भगवान शिव की तपस्या की थी.यह झील समुद्रतल से 4515 मी० की ऊँचाई पर स्थित है.इसका पानी खारा है और इसके तल का क्षेत्रफल लगभग 225 वर्ग कि०मी० है.वहां पर थोड़ी देर रुककर फोटोग्राफी की गयी.
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फिर बसों से हम लोग मानसरोवर झील के लिए रवाना हुए.लगभग आधे घंटे की यात्रा के बाद मानसरोवर के पास पहुंचे.इसी बीच बर्फ से आच्छादित “पवित्र कैलाश” पहली बार दृष्टिगोचर हुए.कैलाश पर ”ॐ” की आकृति स्पष्ट रुप से सभी को दिखाई पड़ी.कभी धूमिल और कभी चटक बर्फ से बनती बिगड़ती.सभी लोग इस दृश्य को देख भगवान् भोलेनाथ की कृपा मान अभिभूत हो गए, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि कैलाश पर ॐकार का दर्शन भोले बाबा की कृपा से ही हो पाता है.
पवित्र कैलाश पर ‘ॐ’ आभासित होता हुआ
पेट्रोल पंप से बस में डीजल लेने के बाद “मानसरोवर” के पास गाइड ने सभी के लिए टिकट खरीदे.आगे एक चेकपोस्ट पर टिकट एवं परमिट लिस्ट चेक करके पवित्र मानसरोवर की परिक्रमा बस द्वारा शुरू हुयी.मानसरोवर झील समुद्रतल से 4590 मी० की ऊँचाई पर स्थित है.इसका परिक्रमा मार्ग लगभग 125 कि०मी० है.इसके तल का क्षेत्रफल लगभग 320 वर्ग कि०मी० है इसकी गहराई अधिकतम 90 मी० बताई गयी.राक्षस ताल एवं मानसरोवर के बीच एक पतली पहाड़ी है तथा दोनो एक “ गंगा छू “ चैनल ( तिब्बती भाषा में छू का अर्थ पानी होता है) द्वारा मिले हुए हैं.इसी के पास सतलुज नदी का उद्गम स्थल है.आकार में मानसरोवर गोलाकार है तथा राक्षस ताल अर्धचन्द्राकार है|
बस द्वारा लगभग आधी परिक्रमा करके हमलोग एक समतल स्थान पर पहुंचे.वहीँ पर सभी ने पवित्र मानसरोवर में स्नान किया.पानी बर्फ जैसा ही ठंडा था.पूर्णिमा होने के कारण हवा भी तेज थी, जिससे ठंढक में और वृद्धि हो रही थी.महिलाओं के कपड़े बदलने के लिए एक अस्थाई टेंट लगाया गया था.स्नानोपरांत लोगों ने मौसम को देखते हुए श्रद्दानुसार पूजा अर्चना की.वहीँ पर सभी को भोजन भी दिया गया; जिसमे राजमा, चावल,सब्जी, अचार, रसगुल्ला इत्यादि था.भोजन करने तक लगभग तीन बज गए थे और इसके बाद यात्रा का अगला चरण आरम्भ शुरू हुआ.मानसरोवर में तैरते दिए जैसे पच्छी भी दिखे जो एक अदभुद दृश्य उत्पन्न कर रहे थे.लग रहा था की पानी में दीपक तैर रहें हैं.परिक्रमड़ करते हुए लगभग 5 बजे हम लोग मानसरोवर के किनारे ही एक गेस्ट हाउस में पहुँच गए.जिसे “छू गुम्बा” कहा जाता है.
मानसरोवर किनारे छू गुम्बा में विश्राम स्थल की फोटो
यहां पर एक-एक कमरे में 7-7 व्यक्ति ठहराए गए.बिस्तर इत्यादि की ब्यवस्था उत्तम थी.पर समुद्रतल से 4590 मी० की ऊँचाई पर ठण्ड और ऑक्सीजन की कमी अपने आप में एक समस्या थी.पूर्णिमा की चांदनी में मानसरोवर का दृष्य अदभुद एवं अकल्पनीय था.शाम को अत्याधिक ठंढ के कारण कमरे में बिस्तर पर ही चाय, शब्जियों का सूप और खाना सभी को दिया गया.प्रातः 3:30 के बाद हवा के झोंके शांत हुए तो ठंढक में भी थोड़ी कमी महसूस हुयी.एक दो लोग काफी बीमार भी हो गए, जिस कारण 11 ब्यक्तियों का एक ग्रुप और तीन अन्य लोग मानसरोवर से ही अगले दिन वापस लौट गए.
मानसरोवर के किनारे हवन पूजन करते टीम के सदस्य
18/09/2016 को प्रातः काल गरम पानी मुंह हाथ धोने के लिए दिया गया. ठंढक के कारण केवल एक व्यक्ति श्री अनिल कुमार सिंह ने स्नान किया और अन्य लोगों ने मार्जन से ही काम चलाया.चाय पीने के बाद शेरपाओं ने एक हवनकुंड बना दिया; जहाँ पर सभी लोगों ने हवन पूजन किया.इस उपक्रम में 10-11 बज गए.फिर वहीँ पर सभी ने नाश्ता/ भोजन किया तथा अगले पड़ाव “ दारचेन “ के लिए प्रस्थान कर गए.बस से 18 कि०मी० चलने के बाद हम लोग दारचेन में “होटल हिमालया” पहुंचे.यह होटल भी चीनी सरकार का है और काफी बड़ा, अच्छा एवं सुविधायुक्त है.एक-एक कमरे में तीन – तीन बेड हैं.हम चार लोग एक ही कमरे में ठहरे क्योंकि योगेश अपनी माँ के साथ ही रहना चाहते थे.दोपहर में ही घोड़े एवं पोर्टर के लिए पैसे (1950 + 800 युवान) दे दिए गए.शाम को स्थानीय बाज़ार से लोगों ने छड़ी, दस्ताने, मंकी कैप, ऑक्सीजन सिलिंडर और गरम पानी के लिए फ्लास्क आदि खरीदे.रात्रि भोजनोपरांत विश्राम किया गया. 19/09/2016 को प्रातः काल चाय नाश्ता के बाद सभी को कामचलाऊ लंचपैक दे दिया गया.बस द्वारा लगभग आधे घंटे की यात्रा के बाद हम लोग तारबोचे स्थित “यम द्वार” पहुंचे जो पवित्र कैलाश के उत्तर में स्थित है.
यमद्वार के पास से कैलाश दर्शन
यहीं पर घोड़े एवं पोर्टर के लिए लॉटरी निकाल कर सभी को घोड़े एवं पोर्टर मुहैया कराये गए.60 साल या उसके ऊपर के लोगों को “दीरापुक गोम्पा” तक की यात्रा की अनुमति दी गयी, क्योंकि गाइड के कथनानुसार एक सप्ताह पहले पांच लोग दीरापुक से आगे की परिक्रमा में “डोलमा पास “ में ज्यादा ऊचाई होने के कारण ऑक्सीजन की कमी से मर गए थे और चाइना सरकार ने 60 साल या उसके ऊपर के लोगों की यात्रा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था.
कुछ लोग पैदल और कुछ लोग घोड़े से “पवित्र कैलाश” की परिक्रमा के लिए रवाना हुए.यह परिक्रमा पहले दिन 12 कि०मी० दुसरे दिन 22 कि०मी० एवं तीसरे दिन 8 कि०मी० की है.हमें 60 साल के ऊपर होने के कारण 12 कि०मी० दीरापुक गोम्पा तक ही जाने दिया गया|हम लोग घोड़े पर दक्षिण से कैलाश के पश्चिम की ओर होते हुए उत्तर की ओर दीरापुक शाम लगभग 5 बजे पहुंचे.लगभग 1 घंटा बाद पैदल परिक्रमा करने वाले साथी भी आ गए.एक गेस्ट हाउस में रुकने की ब्यवस्था थी.पर समुद्रतल से 4590 मी० की ऊँचाई पर अतिशीत और ऑक्सीजन की कमी के कारण वातावरण कठिन था.कैलाशनाथ के कैलाश के हिमगिरि स्वरूप के भब्य दर्शन हो रहे थे.सायंकाल चाय एवं भोजन कमरे में ही मिल गया.पर सारी रात साँस लेने में समस्या का अनुभव होता रहा.
20/09/2016 को प्रातः काल सूर्योदय के समय स्वर्णिम आभा वाले कैलाश का दर्शन मन को मोहने वाला था.कैलाश और कैलाशपति को प्रणाम करके हमारी वापसी और अन्य लोगों की अग्रिम यात्रा शुरू हुई. नाश्ता चाय के बाद पैक्ड लंच भी सभी को दे दिया गया था.प्रातः 7 बजे चलकर लगभग 12 बजे हमलोग यमद्वार वापस पहुँच गए. 15 मिनट में बस आ गयी. फिर पैदल आने वालों की लगभग एक घंटा प्रतीक्षा की गयी. तत्पश्चात हमलोग बस से दारचेंन स्थित होटल हिमालया वापस आ गए.
अग्रिम परिक्रमा पर गए लोग भी लगभग दो घंटे बाद होटल आ पहुँचे.22 कि०मी० की यात्रा के बाद ये लोग गाड़ियों से ही वापस आ गए.शाम की चाय के बाद रात्रि भोजनोपरांत विश्राम किया गया.सभी लोगों के वापस आने से दूसरे दिन 21/09/2016 की यात्रा प्रातः नाश्ते के बाद जल्दी ही शुरू हो गयी.पैक्ड लंच भी मिल गया था.ताकलाकोट पहुँचने पर आवश्यक चेकिंग के बाद हम लोग चीन - नेपाल बॉर्डर तक आ गए.फिर झूला पुल के रास्ते नेपाल के हिलसा में प्रवेश कर गए.यहाँ चाय पीने के बाद हेलीकाप्टर से दो बार में 10 लोग ही सिमिकोट तक आ पाए, जो वह रात वहीँ एक लॉज में गुजारे.शेष लोग रात हिलसा में ही रुके और 22/09/2016 की प्रातः 9 बजे तक हेलीकाप्टर से सिमिकोट पहुंचे.उसके कुछ देर बाद ही छोटे हवाई जहाज से 20 लोग नेपालगंज के लिए रवाना हुए.लगभग 11 बजे नेपालगंज हवाईअड्डे पहुंचकर वहां से टैक्सी द्वारा होटल ‘सिटी इंटरनेशनल’ पहुंचे.यहाँ तापमान पुर्वस्थान की तुलना में काफी अधिक था अतः सर्दी के कपड़े उतार कर सामान्य वस्त्र पहने गए.यहीं पर अपने बैग सूटकेस आदि लोगों को वापस मिले|
नेपालगंज के होटल ‘सिटी इंटरनेशनल’ में अच्छा खाना खाकर हम चार लोग एक स्कार्पियो गाड़ी से लखनऊ लगभग 05:30 बजे पहुँच गए.यहाँ “ Trip To Temples” के प्रवीण पाण्डेय पहले से ही मौजूद थे.होटल में रुककर सामान अपने अपने बैग में पैक किया गया.योगश जी के साथ हजरतगंज जाकर बचे हुए युवान रुपये में एक्सचेंज किया गया.फिर 7 बजे की AC बस से इलाहाबाद रवाना हुए और रात 12:30 पर घर आ गए.योगेश और उनकी माँ भी उसी रात 10:30 बजे ट्रेन से भोपाल रवाना हो गए और दुसरे दिन भोपाल पहुँच गए|
अध्ययन एवं गाइड द्वारा ज्ञात हुआ कि दीरापुक से 7 कि०मी० आगे ऊंचाई पर समुद्रतल से 5670 मी० की ऊंचाई पर “डोलमा पास” है.जहाँ मौसम बड़ा अनिश्चित रहता है.कभी तेज धूप और छड़ भर में हिमपात और तूफानी हवाएं चलने लगती हैं.चढ़ाई भी काफी खड़ी है.इसके बाद लगभग 6 कि०मी० तेज ढाल और ऊबड़ खाबड़ रास्ता है.इसी रास्ते में आगे चलकर गौरी कुंड है.जिस का पानी बहुत ठंढा है, जिस पर अधिकतर बर्फ जमी रहती है.कहा जाता है कि यहीं पर पार्वती जी ने गणेश जी की उत्पत्ति अपने शरीर के उबटन से की थी.दीरापुक से कुल 22 कि०मी० चलने के बाद जुथुलपुक नामक स्थान आता है जो समुद्रतल से 4750 मी० की ऊंचाई पर है.सामान्यतया इस स्थान पर लोग रात बिताते हैंकी यात्रा 8 कि०मी. पर पुन: यमद्वार पर समाप्त होगी.