हमारा भारत देश विभिन्न जाति, धर्मों, परंपरा और तीज त्योहारों के लिए जाना जाता है.पूरी दुनिया में भारत ही ऐसा देश है जहां इतनी सारी विभिन्नता के बाद भी लोगों के बीच में एकता बनी हुई है. भारत के अलग-अलग रंगों को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं. हमारे देश के हर कोने त्योहार को विभिन्न तरीके से मनाया जाता है. इसी के साथ हर जगह के कुछ त्योहार भी अलग और खास होते हैं. आज हम इसी कड़ी में बिहार के मिथिलांचल में मनाई जाने वाली सामा-चकेबा नाम के त्योहार के बारे में जानेंगे.
और पढ़ें: कोरोना के चलते सबरीमाला में श्रद्धालुओं की संख्या में जबरदस्त गिरावट
मिथिलांच हमेशा से अपने खानपान, लोक गीत, लोक कला और परंपरा के लिए जाना जाता है. सामा-चकेबा इन्ही लोक उत्सवों में से एक है. ये त्योहार पूरी तरह से भाई-बहनों को समर्पित है. सामा-चकेबा की शुरुआत छठ से हो जाती है, जो कि कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है. इस अनोखे पर्व में बहने मिट्टी की सामा-चकेबा और कई तरह की मूर्तियां बनाती है. छठ से लेकर कार्तिक पूर्णिम तक इन मूर्तियों की पूजा की जाती है और सामा के लोग गीत गाए जाते हैं.
लोक कथाओं के मुताबिक, सामा इतने दिन अपने मायके आती है इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन जब सामा का विसर्जन किया जाता है तो उसे गृहस्थी का पूरा सामान दिया जाता है. इसमें खानपान का सामान, कपड़े और अन्य दूसरी जरूरत की चीजें दी जाती है. वहीं बता दें कि सामा का विसर्जन विदाई गीत के साथ खाली खेत में किया जाता है.
सामा से जुड़ी पौराणिक कथा-
कथाओं के मुताबिक, सामा भगवान कृष्ण की पुत्री थीं और दुष्ट चुगला नाम के किसी व्यक्ति ने सामा के अपमान के लिए एक योजना बनाई. उसने सामा के बारे में भगवान कृष्ण को कुछ झूठी और मनगढंत बातें बताईं, जिसे सच मानकर गुस्से में श्रीकृष्ण ने अपनी पुत्री को एक पक्षी हो जाने का श्राप दे दिया. जब यह बात सामा के भाई चकेबा तक पहुंची तो वे बहुत दुखी हो उठे. उनको पता चल गया कि सामा के खिलाफ झूठी बात फैलाई गई है. सामा को श्राप से मुक्ति दिलाने हेतु चकेबा ने कठोर तप साधना की, जिससे उसकी बहन को श्राप से मुक्ति मिली. तब से ही ये सामा चकेबा भाई-बहन के प्रेम और समर्पण के प्रतीक बनकर पूजे जाने लगे. वहीं यहीं कारण है कि सामा खेलते समय चुगला का मुंह जलाया या काला किया जाता है.
यहां सुने सामा गीत-
Source : News Nation Bureau