मोहर्रम : शिया मुसलमान क्‍यों मनाते हैं मातम, क्‍या है रोज-ए-आशुरा का इतिहास

आज से मोहर्रम की शुरुआत हो गई है. इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने को मोहर्रम कहा जाता है. इस पवित्र महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है. मोहर्रम महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहते हैं. बताया जाता है कि इसी दिन इमाम हुसैन की शहादत हुई थी.

आज से मोहर्रम की शुरुआत हो गई है. इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने को मोहर्रम कहा जाता है. इस पवित्र महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है. मोहर्रम महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहते हैं. बताया जाता है कि इसी दिन इमाम हुसैन की शहादत हुई थी.

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Sunil Mishra
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शिया मुसलमान क्‍यों मनाते हैं मातम, क्‍या है रोज-ए-आशुरा का इतिहास( Photo Credit : File Photo)

आज से मोहर्रम (Moharram) की शुरुआत हो गई है. इस्लामिक कैलेंडर (Islamic Calender) के पहले महीने को मोहर्रम कहा जाता है. इस पवित्र महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है. मोहर्रम महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा (Roz-e-Ashura) कहते हैं. बताया जाता है कि इसी दिन इमाम हुसैन (Imam Hussain) की शहादत हुई थी. मोहर्रम को गम के महीने के तौर पर मनाया जाता है. इस्‍लामिक मान्‍यता के अनुसार, करीब 1400 साल पहले कर्बला की जंग हुई थी, जिसमें पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया गया था. उस समय यजीद नामक शासक इस्लाम को अपने तरीके से चलाना चाहता था. यजीद ने इमाम हुसैन को आदेश दिया कि वे उसे खलीफे के रूप में स्वीकार करें.

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यजीद का मानना था कि इमाम हुसैन उसे खलीफा मान लेंगे तो इस्लाम धर्म के लोगों पर वह राज कर सकेगा लेकिन इमाम हुसैन को यह मंजूर नहीं था. यजीद को यह बात बर्दाश्‍त नहीं हुई और उसने इमाम हुसैन के खिलाफ साजिश रचनी शुरू कर दी. कर्बला के पास यजीद ने इमाम हुसैन के काफिले को घेर लिया और खुद को खलीफा मानने के लिए मजबूर करने लगा.

इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा नहीं माना तो यजीदी सेना ने जंग का ऐलान कर दिया. यजीद ने मोहर्रम की 7 तारीख को इमाम हुसैन के साथियों के खाने-पीने के सामान की घेराबंदी कर लश्कर का पानी भी बंद करा दिया. मोहर्रम की 7 से 10 तारीख तक इमाम हुसैन और उनके साथी भूखे-प्यासे रहे.

मोहर्रम की 10 तारीख को यजीदी सेना और इमाम हुसैन के साथियों के बीच जंग हुई, जिसमें यजीदी सेना ने इमाम हुसैन और उनके साथियों का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया. इस जंग में इमाम हुसैन के 6 महीने के बेटे अली असगर, 18 साल के अली अकबर और 7 साल के उनके भतीजे कासिम को भी शहीद कर दिया गया. इसी कारण मुस्लिम समुदाय मोहर्रम को गम के तौर पर मनाता है. यजीदी सेना का जुल्‍म यही नहीं रुका. इमाम हुसैन का कत्‍ल करने के बाद यजीदी सेना ने इमाम हुसैन के समर्थकों के घरों में आग लगा दी और कइयों को कैदी बना लिया.

मोहर्रम का चांद दिखाई देते ही शिया लोग गम में डूब जाते हैं. चांद दिखने के बाद से ही शिया मुस्लिम पूरे 2 महीने 8 दिनों तक शोक मनाते हैं और खुशी के किसी मौके में शरीक नहीं होते.

Source : News Nation Bureau

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