Operation Pakhand: आजकल के दौर में भी लोग अंधविश्वास का आसानी से शिकार हो जाते हैं. भारत में अनेकों ऐसे बाबा हैं जो ऐसे दावे करते हैं कि न सिर्फ वो भूत प्रेत भगा सकते हैं बल्कि भगवान से डायरेक्ट कनेक्शन भी बिठा सकते हैं. इसी लिस्ट में एक नया नाम शामिल हुआ है. मध्यप्रदेश के सुनील सराठे का दावा है कि उनके दरबार में किसी भी भक्त से धन नहीं लिया जाता. भक्त अर्जी लगाकर अपना काम पूर्ण करवाने आते हैं और जब उनका काम पूरा हो जाता है, तब वे अपनी इच्छा से चढ़ावा चढ़ाते हैं. सुनील सराठे इस चढ़ावे से सामाजिक कार्य पूरे करते हैं और धाम के विस्तार का काम भी इसी तरह किया गया है.
यानी एक तरह से यह चमत्कारी कालभैरव धाम किसी भी प्रकार की डिमांड नहीं करता और इसे धनार्जन से अलग कर दिया गया है. लेकिन सवाल यह है कि अगर इस धाम में धनार्जन नहीं होता, तो बाबा सुनील सराठे और उनके सेवकों का खर्च कैसे चलता है? और क्या यह गारंटी है कि वे हर भक्त की मनोकामना पूरी कर सकते हैं? क्या कालभैरव के दर्शन और सिद्धि पाना इतना आसान है? बिना तपस्या किए ही उन्हें बाबा कालभैरव का आशीर्वाद कैसे मिल गया?
प्रश्न कई हैं, और इनका उठना भी स्वाभाविक है. लेकिन क्या सुनील सराठे इन सभी सवालों का उत्तर दे पाएंगे? न्यूज़ नेशन ने अपनी अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ जारी मुहिम में अनगिनत बाबाओं को तर्क की कसौटी पर परखा. देवी की सवारी से लेकर तंत्र-मंत्र और झाड़-फूंक के माध्यम से उपचार करने वाले कोई भी बाबा खुद को साबित करने में सफल नहीं हो पाए. न्यूज़ नेशन ने भले ही किसी की आस्था या विश्वास को गलत नहीं ठहराया, परंतु भक्तों के बीच फैलते अंधविश्वास और चमत्कार के नाम पर फैले पाखंड पर सवाल जरूर उठाए. लेकिन अब तक इन सवालों का तार्किक उत्तर किसी ने नहीं दिया. इसलिए जब कोई मां काली का रूप धारण कर दरबार लगाता है, उसे पाखंड समझा गया. जो बाबा प्रेत बाधा मिटाने का दावा करते नज़र आए, वे भी तर्क की कसौटी पर अंधविश्वास फैलाते हुए प्रतीत हुए. खुद को अवतार सिद्ध करने आए बाबाओं की परीक्षा में वे असफल रहे.
न्यूज़ नेशन की मुहिम 'ऑपरेशन पाखंड, सच की पड़ताल' के अंतर्गत जितने भी बाबाओं को खुद को साबित करने का अवसर मिला, वे ऐसा कुछ नहीं साबित कर सके जिसे चमत्कार का नाम दिया जा सके. इसके विपरीत, बिना सिद्धि और तप के भगवान के दर्शन होने के दावों पर सवाल उठ गए. जो बाबा प्रेतों को वश में करने का दावा करते थे, वे भी पूरी तरह बेनकाब हो गए. समाज को अंधविश्वास के अंधकार से बाहर निकालने के लिए न्यूज़ नेशन की इस मुहिम में उन सभी दावों की पड़ताल हो रही है जो चमत्कार और पाखंड के बीच का अंतर स्पष्ट कर सके. इसी कड़ी में रायसेन ज़िले के चमत्कारिक कालभैरव धाम के साधक सुनील सराठे को खुद को साबित करने का मौका दिया गया तो ये भी जान लें कि वो तर्क की कसौटी पर कितने खरे उतरे?
अब तक जो कहानी सुनील सराठे ने बाबा कालभैरव की सवारी के बारे में बताई, वह अविश्वसनीय लगी. लेकिन तर्क की कसौटी पर वे खुद को साबित करने के लिए हर तरह के प्रमाण देने की कोशिश करते दिखे. एक फ्लेम आकृति को वे दर्शन का प्रमाण बताने आए, लेकिन इसे भी अंधविश्वास की श्रेणी में रखा गया. तो चमत्कार और इलाज का दावा गलत निकला.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)