Advertisment

Muharram 2023: जानिए क्या है मुहर्रम, मुस्लिम क्यों मानते हैं इसे गम का महीना?

Muharram 2023: आज दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय के लोग मुहर्रम का मातम मना रहे हैं. वहीं शिया समुदाय के लोग ताजिया निकालकर मातम मना रहे हैं. ऐसे में हम आपको मुहर्रम और उससे जुड़ी हुई चीजों को बारे में बताने जा रहे हैं.

author-image
Suhel Khan
एडिट
New Update
Muharram2

Muharram 2023( Photo Credit : Social Media)

Advertisment

Muharram 2023: मुस्लिम समुदाय के लोग आज देशभर में मुहर्रम का जुलूस निकाल कर मातम मना रहे हैं. इस दौरान जगह-जगह ताजिया उठाए जा रहे हैं और लोग इमाम हुसैन की शहादत को याद कर रहे हैं. मुहर्रम हिजरी कलेंडर का पहला महीना होता है. जिसे गम के महीने के रूप में जाना जाता है. इसीलिए इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग शादी-विवाह जैसे कोई शुभ कार्य नहीं करते.  मुहर्रम का खुशी का नहीं बल्कि गम का पर्व होता है इसीलिए मुहर्रम के दिन शिया समुदाय के लोग मातम मनाते हैं. कई बार लोग मुहर्रम को लेकर सोचते हैं कि आखिर मुहर्रम है क्या और इस दौरान मातम क्यों मनाया जाता है.

ये भी पढ़ें: लाल चीटियां भगाने का घरेलू नुस्खा, जड़ से खत्म हो जाएगा चीटियों का आतंक

मुहर्रम की 10 तारीख को मनाया जाता है मातम

बता दें कि इस्लाम धर्म में मुहर्रम को मातमी पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन यानी मोहर्रम की 10 तारीख को मुस्लिम समुदाय के लोग हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद कर मातम मनाते हैं. इस दौरान शिया समुदाय के लोग खुद को तकलीफ देकर इमाम हुसैन की याद में मातम करते हैं. बता दें कि इमाम हुसैन, पैगंबर मोहम्मद के नवासे थे जो कर्बला की जंग में शहीद हो गए थे. मुहर्रम को मनाने के बारे में जानने के लिए हमें इसके इतिहास के बारे में जानना पड़ेगा. दरअसल, इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफा का राज था तब खलीफा को पूरी दुनिया के मुसलमानों का प्रमुख नेता माने जाते थे. पैगंबर साहब की वफात के बाद अरब में चार खलीफा चुने गए. तब लोग आपस में तय करके खलीफा का चुनाव करते थे.

publive-image

जब सीरिया के गवर्नर यजीद ने खुल को घोषित किया खलीफा

इसके करीब 50 साल बाद इस्लामी दुनिया के बुरा वक्त शुरु हुआ क्योंकि सीरिया के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, जो बादशाहों की तरह काम किया करता था. जो पूरी तरह से इस्लाम के खिलाफ था. लेकिन इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने से इनकार कर दिया. इस बात से यजीद नाराज हो गया. उसने अपने राज्यपाल वलीद पुत्र अतुवा को फरमान लिखा. जिसमें उसने कहा कि हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने को कहो. साथ ही कहा कि अगर वह ना मानें तो उसका सिर काटकर मेरे पास भेज दो. राज्यपाल ने हुसैन को बुलाया और यजीद का फरमान सुनाया. इस पर हुसैन ने यजीद के आदेश को मानने से इनकार कर दिया और वह वापस मक्का चले गए. जिससे कि हज पूरा कर सके.

करबला के मैदान में हजरत हुसैन और यजीद की सेना की हुई जंग

इसके बाद यजीद ने यात्री के भेष में अपने सैनिकों को हुसैन का कत्ल करने को भेज दिया. लेकिन हुसैन को इस बात का पता चल गया. मक्का में किसी की हत्या करना हराम था. खून-खराबे से बचने के लिए हजरत हुसैन ने हज की बजाय उमरा किया और परिवार समेत इराक चले गए. मुहर्रम की दो तारीख और 61 हिजरी को हजरत हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे. उन्होंने नौ तारीख तक यजीद की सेना को समझाने की कोशिश की. उनपर हजरत हुसैन की बात का कोई असर नहीं पड़ा. उसके बाद हजरत हुसैन ने कहा कि तुम मुझे एक रात की मोहलत दो. जिससे मैं अल्लाह की इबादत कर सकूं. इसी रात को आशुरा की रात कहा जाता है.

publive-image

हजरत हुसैन के 72 साथी हुए थे शहीद

अगले दिन यजीद की सेना से और हजरत हुसैन के साथियों के बीच भीषण जंग हुई. जिसमें हजरत हुसैन के 72 साथी शहीद हो गए. हजरत हुसैन अकेले ही बचे थे. तभी अचानक खेमे में शोर सुनाई दिया. हजरत हुसैन का छह महीने का बेटा अली असगर प्यास से बेहाल था. हुसैन उसे हाथों में उठाकर मैदान-ए-कर्बला में ले आए. हजरत हुसैन ने यजीद की सेना से बेटे को पानी पिलाने के लिए कहा, लेकिन सेना ने उनकी नहीं सुनी. हजरत हुसैन के बेटे ने उनके हाथों में ही तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया. इसके बाद यजीद की सेना ने भूखे-प्यासे हजरत इमाम हुसैन को भी शहीद कर दिया. हजरत हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान की कुर्बान दे दी. इसे आशुर यानी मातम का दिन कहा जाता है.

ये भी पढ़ें: Padmini Ekadashi 2023 Upay: आपकी किस्मत बदल देंगे पद्मिनी एकादशी की कहानी और ये 10 उपाय

Source : News Nation Bureau

Religion News in Hindi Muharram muharram 2023 What is Muharram Imam Hussain Muharram in Karbala
Advertisment
Advertisment
Advertisment