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Muslim Princess Love Story: हिन्दुओं की ये कुलदेवी थी एक मुस्लिम शहजादी, जो हिंदू ब्राह्मण के लिए हुई थी सती

Princess Jaitunnisha : ये कहानी शायद आप ना जानते हों कि हिंदूओं की एक कुलदेवी मुस्लिम शहजादी थी. कैसे वो सती हुई और कुलदेवी के रूप में उन्हें लोगों ने स्वीकारा आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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Princess Jaitunnisha

Princess Jaitunnisha( Photo Credit : News Nation)

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Muslim Princess Love Story: मुस्लिम शहजादी जैतुन्निशा ने हिंदू ब्राह्मण के लिए सती होने की कहानी बेहद दिलचस्प है. भारतीय इतिहास में अनेक हिंदू रानियों और स्त्रियों के जौहर और सती होने के बारे में लिखा गया है. लेकिन, आज हम आपको एक मुस्लिम शहजादी जैतुन्निशा (Princess Jaitunnisha) की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने एक हिंदू ब्राह्मण, गोविंद राम, के लिए सती होने का फैसला किया. यह कहानी पंद्रहवीं शताब्दी की मांडू सल्तनत की है, जो आज के मध्य प्रदेश के धार जिले में थी. इस सल्तनत के सुल्तान थे नसरुद्दीन खिलजी. इनकी बेटी जैतुन्निशा ने गोविंद राम से प्यार किया और अंततः उनके साथ गंधर्व विवाह किया. कैसे एक शहजादी को हिंदू ब्राह्मण से प्यार हुआ आइए जानते हैं.

गोविंदराम मंडलोई कौन थे  ?

भारतीय इतिहास के जानकारों के अनुसार, मांडू सल्तनत के सुल्तान थे नसरुद्दीन खिलजी. इसी मांडू सल्तनत के अंतर्गत आता था मनावर का क्षेत्र जहां टैक्स वसूली का जिम्मा था गोविंदराम मंडलोई का. गोविंदराम मंडलोई सुल्तान नसरुद्दीन खिलजी के लिए काम करते थे, जिनका काम था मनावर क्षेत्र का सारा टैक्स जमा करके सुल्तान के खजाने में जमा करना. 1 दिन गोविंदराम बैलगाड़ी पर टैक्स की रकम लेकर सुल्तान के महल जा रहे थे तभी रास्ते में दो शेरों ने गोविंदराम पर हमला कर दिया. वीर गोविंदराम खजाना छोड़कर भागे नहीं बल्कि दोनों शेरों को भगाने के बाद खजाना लेकर सुल्तान के दरबार पहुंचे. जल्दी ही गोविंदराम की वीरता का यह किस्सा सुल्तान नसरुद्दीन तक पहुंचा. गोविन्दराम की वीरता पर सुल्तान बेहद खुश हुए और राज़ दरबार में गोविंदराम को सम्मानित भी किया. 

शहजादी से पहली बार कब मिले गोविंदराम मंडलोई ? 

इस सम्मान सभा में ही शहजादी जैतुन्निशा ने गोविंदराम को पहली बार देखा. मजबूत और सुंदर कद काठी के गोविन्दराम को देखते ही जैतुन्निशआ मोहित हो गई और गोविंदराम पर अपना दिल हार गई. अब गोविंदराम के प्यार में पड़ी जैतुन्निशा ने अपनी दासी के हाथों गोविंदराम के लिए प्रेम पत्र भिजवा दिया. उनके मन में गोविंदराम के लिए उमड़े प्यार की खबरें जल्द ही चारों तरफ फैलने लगी. सुल्तान नसरुद्दीन को भी जब इसका पता चला तो उन्होंने बेटी को खूब समझाया लेकिन गोविंदराम के प्यार में पड़ी जैतुन्निशा ने कुछ भी सुनने से इनकार कर दिया. आखिरकार थक हार कर सुल्तान ने गोविंदराम को बुलाया. गोविंदराम ने भी अपनी मजबूरी गिनाते हुए कहा यहां के जैसी सुख सुविधा नहीं दे सकूंगा लेकिन जैतुन्निशा तो फैसला कर चुकी थी कि शादी ना हुई तो गोविंद राम की तलवार से विवाह कर लेगी और फिर आजीवन उस तलवार को ही अपना पति मानकर रहेंगी. 

ऐसे हुआ था शहजादी जैतुन्निशा और गोविंदराम का विवाह 

आखिरकार जैतुनिशा का प्यार जीत गया और दोनों का गंधर्व विवाह हुआ. जैतुन्निशा और गोविंदराम की शादी के बाद जैतुन्निशा का नाम रखा गया बेसरबाई. लेकिन, पुत्री मोह में सुल्तान नसीरुद्दीन ने विवाह से पहले शर्त रखी थी की जैतुन्निशा विवाह के बाद भी उनके महल में ही रहेंगी. शहजादी ने भी यह शर्त मान ली थी और शादी के बाद भी वह सुल्तान के महल में ही रही. विवाह के कुछ दिन बाद गोविंदराम मनावर लौट गए. जहां दुर्भाग्यवश सांप के काटने से उनकी मृत्यु हो गई, उस समय सर्पदंश से मौत होने पर हिंदुओं में भी शव को दफनाने की प्रथा थी. आज भी कुछ जगहों पर यह प्रथा देखने को मिलती है. 

जब सती हुई शहजादी जैतुन्निशा / बेसरबाई

गोविंदराम को जब दफनाया गया तो कुछ लोगों ने यह अफवाह उड़ा दी मुस्लिम शहजादी से धर्म बदलकर विवाह करने के कारण गोविंदराम को दफनाया गया है. इसी बीच पति की मौत की खबर जैतुन्निशा तक पहुंची तो वह अपने घोड़े पर सवार होकर तुरंत मनावर पहुंच गई. मनावर पहुचकर. बेसरबाई (Besarbai) ने सुहागिनों की तरह 16 सिंगार किए और फिर सती होने के लिए आ गयीं. जल्दी लोगों को जब यह पता चला तो वह उन्हें रोकने आ गए. तब एक सिपाही ने गोविंदराम से हुए गंधर्व विवाव की बात बतायी. बेसरबाई ने गोविन्दराम के घरवालों से उनकी पगड़ी मांगी और मान नदी के किनारे पहुंच गई. 

मान नदी के किनारे. तमोली जाति की एक महिला रहती थी, जिसने चिता के लिए लकड़ी की व्यवस्था की. जब यह महिला चिता जलाने के लिए आग लेकर आई तो बेसरबाई ने मना कर दिया. कहते हैं कि बेसरबाई ने अपनी योग अग्नि से चिता जलाई और सती हो गई. मंडलोई समाज के लोग बताते हैं कि सती होने से पहले बेसरबाई ने कुछ नियम कायदे बताए थे. मंडलोई समाज में आज भी इन नियमों का पालन होता है. मनावर में श्री खेड़ा पति हनुमान मंदिर में आज भी बेसरबाई का सती स्तंभ लगा है.

औरंगजेब ने जब तोड़ दी सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी की कब्र

औरंगजेब को जब पता चला सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी ने अपनी बेटी का विवाह एक हिंदू से किया था तो उसने गुस्से में आकर सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी की कब्र तोड़ दी थी. लेकिन बेसरबाई के सती स्तंभ को तब मंडलोई समाज ने औरंगजेब की नजरों से बचा लिया और आज भी बेसरबाई का यह सती स्तंभ अपने मूल स्वरूप में ही है. 

उस दौर में मुस्लिम शासन होने के कारण किसी ने भी बेसरपाई के इतिहास को लिखने की हिम्मत नहीं दिखाई. बाद में जब मनावर ग्वालियर के सिंधिया राज़ घराने के क्षेत्र में आया तब बेसरबाई की कहानी को इतिहास में स्थान मिला. आज भी इस समाज के लोगों ने बिसरबाई की हर सीख को याद रखा है. बेसरबाई अपने घोड़े पर सवार होकर सती होने आई थी. उन्होंने कहा था कि समाज के पुरुष सिर्फ घोड़ी पर ही बैठेंगे. आज भी इसका पालन होता है. नवरात्र के महीने में बेसरबाई को लपसी यानी गेहूं के आटे का हलवा और पुड़ी का भोग लगाया जाता है. किसी भी मांगलिक कार्य में कुल देवी के रूप में बेशरबाई को भी निमंत्रण दिया जाता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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