भारत को आध्यात्म और साधना का केंद्र माना जाता है. भारत की जड़ों में भक्तिभाव और धर्म बसा हुआ है. यहां पर कई प्राचीन मंदिर हैं जिनका न सिर्फ चमत्कारिक बल्कि रहस्यात्मिक महत्व भी है. इनमें से कई मंदिर तो ऐसे हैं भी जिनमें साफतौर पर चमत्कार और रहस्यमयी घटनाओं को होते देखा जा सकता है. जहां एक तरफ देवी-देवताओं में आस्था रखने वाले लोग इसे भगवान की कृपा मानते हैं, तो वहीं वैज्ञानिकों के लिए यह आश्चर्य और शोध का विषय है. ऐसे में आज हम आपको उन 5 मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके रहस्य के आगे वैज्ञानिकों का ज्ञान भी परास्त हो चुका है और आज तक भी वो उन रहस्यों से पर्दा नहीं उठा पाए हैं.
मां कामाख्या देवी मंदिर
मां कामाख्या देवी का मंदिर असम में राजधानी गुवाहाटी के नजदीक स्थित है. यह चमात्कारिक मंदिर मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में शामिल हैं. लेकिन प्राचीन मंदिर में देवी भगवती की एक भी मूर्ति नहीं है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मां सती के शव को काटा था, तो कामाख्या में उनके शरीर का एक भाग गिरा था. जहां-जहां माता सती के अंग गिरे थे वह जगह शक्तिपीठ कहलाती है. यहां पर कोई मूर्ति नहीं है मां सती के शरीर के अंग की पूजा की जाती है.
कामाख्या मंदिर को शक्ति-साधना का केंद्र माना जाता है. यहां पर हर किसी की कामना पूरी होती है. इस वजह से इस मंदिर का नाम कामाख्या पड़ा है. यह मंदिर तीन भागों में बंटा है. इसके पहले हिस्से में हर किसी को जाने की इजाजत नहीं है. दूसरे हिस्से माता के दर्शन होते हैं. यहां पर एक पत्थर से हमेशा पानी निकलता रहता है. बताया जाता है कि इस पत्थर से महीने में एक बार खून की धारा बहती है. यह क्यों और कैसे होता है. इस बात का पता आज तक वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए.
ज्वालामुखी मंदिर
हिमाचल प्रदेश के कालीधार पहाड़ी के बीच माता ज्वाला देवी का प्रसिद्ध ज्वालामुखी मंदिर है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, यहां पर माता सती की जीभ गिरी थी. मान्यताओं के मुताबिक, माता सती के जीभ के प्रतीक के तौर पर ज्वालामुखी मंदिर में धरती से ज्वाला निकलती है. यह ज्वाला नौ रंग की होती है। यहां नौ रंगों की निकलने वाली ज्वालाओं को देवी शक्ति का नौ रूप माना जाता है. यह ज्वाला महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी की रूप है. मंदिर में निकलने वाली ज्वालाएं कहां से निकलती हैं और इनका रंग कैसे परिवर्तित होता है. आज तक इस बात की कोई जानकारी नहीं मिल पाई है. इस ज्वाला को मुस्लिम शासकों ने कई बार बुझाने की कोशिश की, लेकिन उनको सफलता नहीं मिली.
करणी माता मंदिर
करणी माता का मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक में स्थित है. यह चूहों वाली माता का मंदिर के नाम देशभर में प्रसिद्ध है. करणी माता के मंदिर में अधिष्ठात्री देवी की पूजा की जाती है. अधिष्ठात्री देवी के मंदिर में चूहों का साम्राज्य है. यहां पर करीब 2500 हजार चूहे मौजूद हैं. यहां पर मौजूद चूहे अधिकतर काले रंग के हैं. इनमें कुछ सफेद और काफी दुर्लभ प्रजाति के हैं. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जो लोग सफेद चूहा देख लेते हैं उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है. सबसे आश्चर्य करने वाली बात यह है कि चूहे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और मंदिर परिसर में दौड़ते रहते हैं. मंदिर में चूहों की संख्या इतनी है कि लोग पांव उठाकर नहीं चल पाते. इस मंदिर के बाहर चूहे नहीं दिखते हैं.
मेहंदीपुर बाला जी मंदिर
महेंदीपुर बालाजी मंदिर भी राजस्थान में है. यह चमात्कारिक मंदिर राज्य के दौसा जिले में स्थित है. मेहंदीपुर बालाजी धाम हनुमान जी के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में शामिल है. माना जाता है कि यहां पर भगवान हनुमान जागृत अवस्था में विराजमान हैं. बताया जाता है कि जिन लोगों के ऊपर भूत-प्रेत और बुरी आत्मा का साया होता है. वह प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान के मंदिर में आते ही लोगों के शरीर से बुरी आत्माएं और भूत-पिशाच पीड़ित व्यक्ति के शरीर से निकल जाता है. इस मंदिर में रात को रुका नहीं जा सकता है और यहां का प्रसाद भी घर नहीं लेकर जाया जा सकता है.
काल भैरव मंदिर
मध्य प्रदेश के उज्जैन में भगवान काल भैरव का प्राचीन मंदिर स्थित है. यह मंदिर उज्जैन शहर से 8 किमी दूरी पर है. परंपराओं के मुताबिक, भगवान कालभैरव को भक्त सिर्फ शराब चढ़ाते हैं. सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि शराब के प्याले को काल भैरव की प्रतिमा के मुख से जैसे ही लगाते हैं, तो वह एक पल में गायब हो जाता है. इस बात की भी जानकारी आज तक नहीं मिल पाई.