Lord Shiva Vish Story: हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव के विष को गले में भरने के बारे में कथा के रूप में बताया गया है. शिव जी को भोला भी कहा जाता है, ऐसा माना जाता है कि वे बेहद दयालु हैं. अगर किसी दूसरे पर विपत्ति आती है या उनके किसी भक्त पर संकट आता है तो वे उसे पहले खुद पर ले लेते हैं. उनकी दया हमेशा इस संसार में रह रहे उनके भक्तों पर बनी रहती है. सच्चे मन से जो भी उन्हे याद करता है उसकी आवाज उन तक जरूर पहुंचती है. दीवाली महापर्व बीत चुका है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दीवाली की अमावस्या के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की जो चतुर्थी तिथि आती है उस दिन नागुला चविथि मनायी जाती है. ये दिन भगवान शिव और नागों को समर्पित होता है. इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा बेहद रोचक है.
भगवान शिव के विष पान की पौराणिक कथा (Mythological Story of Lord Shiva Vish)
भगवान शिव के गले में विष की कथा (Lord Shiva Vish Story) के बारे में हमारे पौराणिक ग्रंथों में बताया गया है. जब समुद्र मंथन हुआ तो देवताओं और असुरों को अमृत की प्राप्ति के लिए कई अमूल्य वस्तुएं प्राप्त हुईं, जिनमें से एक विष भी था, जिसे हालाहल या कालकूट विष कहा जाता है. यह विष इतना तीव्र और विनाशकारी था कि इसके प्रभाव से सृष्टि का अंत हो सकता था. इस विष को लेकर देवता और असुर घबरा गए और इसका समाधान खोजने के लिए भगवान शिव की शरण में गए.
पौराणिक कथाओं में ऐसा पढ़ने को मिलता है कि उस समय भगवान शिव ने सभी को बचाने के लिए इस विष को अपने गले में धारण कर लिया और इसे निगलने के बजाय अपने कंठ में ही रोक लिया. विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया, और तभी से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा. इस प्रकार भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए विष को अपने अंदर रोककर त्राण का कार्य किया.
नागुला चविथी (Nagula Chavithi) के दिन भगवान शिव और नागदेवता की पूजा का विशेष महत्व है. हर साल नागुला चविथी का पर्व दक्षिण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन शिव जी की पूजा करने और नाग देवता का पूजन करने से कष्टों का निवारण होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)