Mythological Story of Ram and Hanuman: हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ही विष्णु भगवान के 7वें अवतार हैं. हनुमान जी के जन्म के बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि उनका जन्म भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार के रूप में हुआ है. पौराणिक कथाओं में एक अत्यंत रोचक प्रसंग है जब भगवान श्रीराम ने अपने परम भक्त हनुमान को मृत्यु दंड सुनाया. यह कथा भगवान राम और हनुमान जी के बीच अनूठे प्रेम और भक्ति की मिसाल है.
भगवान राम ने हनुमान को क्यों दिया मृत्युदंड
एक बार रामजी के दरबार में देव ऋषि नारद, वशिष्ठ, विश्वामित्र और अन्य महान ऋषि-मुनियों की सभा लगी थी. इस सभा में चर्चा हो रही थी कि रामजी अधिक शक्तिशाली हैं या उनके नाम की महिमा. अधिकांश ऋषि-मुनियों का मत था कि भगवान राम स्वयं अधिक शक्तिशाली हैं. लेकिन नारद मुनि ने दावा किया कि राम का नाम भगवान राम से भी अधिक शक्तिशाली है. उन्होंने इस बात को सत्य साबित करने का संकल्प भी लिया.
सभा के बाद नारद मुनि ने हनुमान जी से कहा कि वे सभी ऋषि-मुनियों का आदर-सत्कार करें लेकिन विश्वामित्र जी को छोड़ दें. हनुमान जी ने जब इसका कारण पूछा तो नारद मुनि ने कहा कि विश्वामित्र पहले राजा थे तो इस कारण वे ऋषि नहीं हैं. नारद मुनि के कहे अनुसार हनुमान जी ने सभी ऋषि-मुनियों का सम्मान किया लेकिन विश्वामित्र जी का अभिवादन नहीं किया. यह देखकर विश्वामित्र जी अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने हनुमान जी को मृत्युदंड देने का वचन श्रीराम से लिया.
भगवान राम के लिए यह स्थिति अत्यंत कठिन थी. एक ओर उनके प्रिय भक्त हनुमान थे और दूसरी ओर उनके गुरु विश्वामित्र, जिनकी आज्ञा का पालन करना उनका कर्तव्य था. श्री राम ने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए हनुमान जी को मृत्युदंड देने का निश्चय किया.
इस बीच, हनुमान जी इस परिस्थिति से अनजान थे कि भगवान राम उन्हें मारने क्यों आ रहे हैं. तब नारद मुनि ने उन्हें राम नाम का जप करने की सलाह दी. हनुमान जी राम का नाम जपने लगे और ध्यानमग्न हो गए. जब भगवान राम ने हनुमान पर अपने तीर चलाए, तो हनुमान पर उसका कोई असर नहीं हुआ क्योंकि वे राम नाम की भक्ति में डूबे हुए थे.
श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग भी किया लेकिन उसका भी हनुमान जी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. यह देखकर नारद मुनि ने विश्वामित्र जी को सारी सच्चाई बताई और उनसे श्रीराम को वचन से मुक्त करने की प्रार्थना की. विश्वामित्र जी ने रामजी को उनके वचन से मुक्त कर दिया. तो इस तरह नारद मुनि ने यह सिद्ध कर दिया कि राम का नाम भगवान राम से भी अधिक शक्तिशाली है. यह कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति और नाम की शक्ति अनंत है और राम का नाम स्वयं भगवान राम से भी बड़ा है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)