Mythological Story Of Ramayana: त्रेता युग में जब श्रीराम ने अयोध्या में अवतार लिया तो उनकी सेवा करने के लिए भगवान शंकर ने भी अपने अंश से वायु के द्वारा कपिराज केसरी की पत्नी अंजना माता के यहां वानर रूप में अवतार लिया. भगवान शिव के इस रूप को केसरी नंदन के रूप में जाना जाने लगा. बाल हनुमान बाल्यकाल से ही बहुत चंचल स्वभाव के थे. ऋषियों के आश्रम में बड़े-बड़े पेड़ों को वे अपनी सशक्त भुजाओं से तोड़ देते थे, आश्रम के सामान को अस्त व्यस्त कर देते थे. जिसके कारण ऋषियों को हवन पूजन और अध्ययन अध्यापन में व्यवधान होता था. इससे ऋषियों ने नाराज होकर उन्हें श्राप दिया कि आज से तुम अपना बल भूले रहोगे और जब कोई तुम्हें स्मरण कराएगा तभी तुम्हें अपने बल का भान होगा. बस इस घटना के बाद से बाल हनुमान सामान्य वानरों की भांति रहने लगे.
प्रहार से हनु (ठोड़ी) के टेढ़ा होने पर पड़ा नाम हनुमान
- केसरी नंदन के हनुमान नाम पड़ने की कथा भी एक घटना से जुड़ी है. जन्म के कुछ समय बाद ही सूर्य को कोई लाल फल समझा और बस उसे पाने के लिए वे आकाश की ओर दौड़ पड़े.
- संयोग से उस दिन सूर्य ग्रहण था और राहु उन्हें देखा तो समझा कि सूर्य को कोई और पकड़ने आ रहा है तो राहू खुद ही उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ा. किंतु जैसे ही वायुपुत्र केसरी नंदन उसकी ओर पूरे वेग से बढ़े तो भयभीत हो कर राहू भाग गया और सीधे इन्द्रदेव से गुहार लगाई.
- इन्द्रदेव सफेद ऐरावत पर सवार हो देखने निकले कि मामला क्या है. इधर अंजनी पुत्र ने ऐरावत हाथी को बड़ा सा सफेद फल समझा तो सूर्य को छोड़ उसे ही खाने की इच्छा हो गई और उसकी ओर लपके.
- इन्द्र ने घबराकर अपने वज्र से प्रहार किया जो पवन पुत्र की ठोड़ी (हनु) पर लगा तो वह टेढ़ी हो गई. बज्र के प्रहार से वे मूर्छित हो कर गिर पड़े, पुत्र को मूर्छित देख वायुदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी गति ही बंद कर ली.
- श्वास रुकने से सभी जीव जंतु और देवता भी व्याकुल हो गए. अंत में सभी देवताओं ने उस बालक को अग्नि जल व वायु आदि से अभय होकर अमर होने का वरदान दिया. इसके बाद ही वायुदेव प्रसन्न हुए और अपनी गति शुरू की.
- चूंकि ठोड़ी को संस्कृत में हनु कहा जाता है और पवन पुत्र पर प्रहार के कारण उनकी ठोड़ी टेढ़ी हो गई थी. इसलिए इसी कारण से इस घटना के बाद केसरी नंदन हनुमान कहलाये.
माता के आदेश पर सूर्य से प्राप्त किया ज्ञान
हनुमान जी ने मां के आदेश पर भगवान सूर्यनारायण के समीप जाकर वेद वेदांग आदि सभी शास्त्रों और कलाओं का अध्ययन किया. सभी प्रकार के ज्ञान और कलाओं में निपुण होने के बाद वे किष्किंधा पर्वत पर सुग्रीव के साथ रहने लगे. सुग्रीव ने इनकी योग्यता और कुशलता को परख कर अपना सचिव बना लिया. वे सुग्रीव के सबसे प्रिय हो गए. जब बालि ने अपने ही छोटे भाई सुग्रीव को मार कर घर से निकाल दिया तब भी हनुमान जी ने सुग्रीव का साथ दिया और उनके साथ ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे.