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History of Somnath Temple: सोमनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और इसका ऐतिहासिक महत्व 

Somnath Jyotirlinga : 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर है. इस मंदिर का इतिहास क्या है और मंदिर को जुड़ी पौराणिक कथा क्या है आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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History of Somnath Temple

History of Somnath Temple( Photo Credit : News Nation)

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History of Somnath Temple: सोमनाथ मंदिर भारत के गुजरात राज्य में स्थित एक हिंदू मंदिर है. यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला है और इसे भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है. सोमनाथ मंदिर की कहानी भारतीय पौराणिक कथाओं और इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यह मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह पर स्थित है. सोमनाथ मंदिर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व जानने के लिए इसकी कहानी को विस्तार से समझना आवश्यक है.

चंद्र देव की कथा

कहा जाता है कि चंद्र देव (सोम) ने दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया था. इनमें से रोहिणी उनकी प्रिय पत्नी थी. अन्य पत्नियों को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति से इसकी शिकायत की. दक्ष ने चंद्र देव को सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार करने का आदेश दिया, लेकिन चंद्र देव ने इसे नजरअंदाज कर दिया. इस पर क्रोधित होकर दक्ष ने उन्हें श्राप दिया कि उनका तेज और रूप क्षीण हो जाएगा. चंद्र देव ने इस श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव की आराधना की और कठोर तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्त किया और कहा कि वे कृष्ण पक्ष में क्षीण होंगे और शुक्ल पक्ष में पुनः अपने पूर्ण रूप में लौटेंगे. इस प्रकार चंद्र देव को उनका तेज वापस मिला और भगवान शिव ने सोमनाथ में ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान होने का वरदान दिया. इसी कारण यह स्थान 'सोमनाथ' (सोम+नाथ = चंद्र देव + भगवान) कहलाया.

सोमनाथ मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

सोमनाथ मंदिर का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है. इसे मूल रूप से चंद्र देव ने चांदी से बनवाया था. कहा जाता है कि इसे पुनः रावण ने सोने से, फिर भगवान श्रीकृष्ण ने लकड़ी से और अंत में राजा भीमदेव ने पत्थर से बनवाया था. सोमनाथ मंदिर कई बार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किया गया और पुनः बनाया गया. महमूद गजनी ने 1024 ई. में इस मंदिर को लूटा और ध्वस्त कर दिया. इसके बाद कई बार इसे पुनर्निर्मित किया गया. भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बाद, सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया. इसे वर्तमान स्वरूप में 1951 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्र को समर्पित किया.

सोमनाथ मंदिर का वास्तुशिल्प अद्वितीय है. इसका शिखर 150 फीट ऊंचा है और इसमें भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित है. मंदिर का गर्भगृह, सभामंडप और नृत्य मंडप, सभी उत्कृष्ट कला और शिल्प का नमूना हैं. इस मंदिर को हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है. हर साल यहां पर लाखों श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव के दर्शन करते हैं. महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष पूजा और उत्सव का आयोजन किया जाता है. सोमनाथ मंदिर की कथा और इसका इतिहास न केवल धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति का भी प्रतीक है. मंदिर के उत्थान और पतन की कथा भारतीय धरोहर की अदम्य शक्ति और पुनर्निर्माण की क्षमता का प्रतीक है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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