Mythology Story of Raksha Bandhan: श्रावण माह की पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है. इस पर्व के शुरुआत की कथा राजा बलि, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से जुड़ी है. राजा बलि ने विष्णु को वचन देकर पाताल में बांध लिया था. शिवजी की सलाह पर माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र में बांधकर विष्णु को मुक्त किया. यह कथा श्रावण माह की महिमा और रक्षाबंधन के महत्व को दर्शाती है. ये तो आप जानते हैं कि सावन का महीना, शिव भक्ति का एक उत्सव माना जाता है. क्या आप जानते हैं रक्षा बंधन का पर्व कैसे शुरू हुआ, किस प्रकार एक भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देकर उसके लिए प्रतिबन्ध हो जाता है. क्या है रक्षाबंधन की पौराणिक कथा आइए जानते हैं.
देवता और दानों के बीच कितनी युद्ध किए जाते थे ये तो हम सभी जानते हैं. दानो हमेशा यही कोशिश में होते थे कि कैसे देवताओं के अमृत को हासिल कर सके, उनके स्वर्ग पर कब्जा कर सके जिनके लिए दानव कई कई वर्षों तक तपस्या में लीन रहते थे, घोर तक किया करते थे और वरदान स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश से फल प्राप्त करते थे, जिसके कितने बुरे परिणाम देवताओं को सहन करने पड़े थे. राजा बलि जो राक्षस राज़ थे उनका जन्म तो राक्षस स्कूल में हुआ था परन्तु उनका वर्तन बाकी राक्षसों जैसा नहीं था क्योंकि महाराज बली भक्त प्रहलाद के पौत्र थे. विष्णु भक्त होने के साथ ही वो देवाधि देव महादेव की भी परम भक्त थे. महादेव की भक्ति से उन्होंने कई सारी सिद्धियां हासिल कर ली थी. राजा बलि ने 101 यज्ञ सम्पूर्ण करने का अनुष्ठान किया था. तब देवताओं को ये चिंता होने लगी की अगर राजा बलि ने ये अनुष्ठान पूर्ण कर लिया तो उनके हाथ से स्वर्ग और अमृत दोनों ही राक्षसियों के पास चले जाएंगे जिससे दान पृथ्वी पर आतंक मचा देंगे. इसी दुदा के हल हेतु सब देवता गन श्री हरि विष्णु के पास उपस्थित होते है.
श्री हरि विष्णु देवताओं की बात सुनकर राजा बलि के पास एक बटुक ब्राह्मण के रूप में जाते है क्योंकि राजा बली को महादानी भी कहा जाता है. इसलिए उनके द्वार पर आये किसी भी आचक को वो खाली हाथ जाने नहीं देते थे. यह भगवान विष्णु वामन अवतार में एक याचिका के रूप में राजा बलि के पास आते हैं तो राजा बलि उनसे कुछ मांगने को कहते हैं. जीस पर भगवान वामन उन्हें तीन पग भूमि मांगते हैं. राजा बलि ने वचनबद्ध होकर उस बटुक ब्राह्मण को तीन पग भूमि देने का वचन दिया. राजा बलि से वचन प्राप्त करते ही बटुक ब्राह्मण वामन ने विराट रूप धारण कर लिया. उन्होंने एक पग में स्वर्ग दूसरे पग में धरती नाप ली. अब वे तीसरा पैर कहा नापते तब राजा भरे ने अपने वचन का पालन करने हेतु तीसरा पर उन्हें अपने सर पर रखनी दिया.
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राजा बलि की दान क्षमता देखकर भगवान विष्णु उन पर प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने को कहा, तब राजा बली ने भगवान विष्णु को ऐसा और मांगा जिसके कारण भगवान विष्णु को वैकुंठ त्याग कर पाता. लोग में पहरा देना पड़ा. उधर श्री हरि विष्णु से वियोग में माता लक्ष्मी को सहन नहीं हो रहा था. माता लक्ष्मी इनके निवारण हेतु भगवान शिव जी के पास आती है. शिवजी माता लक्ष्मी से कहते है की राजा बलि वचनबद्ध पुरुष है. अगर माता लक्ष्मी राजा को किसी बंधन में बाँध ले तो वे श्री हरि को वापस वैकुंड ला सकती है. शिव जी ने माता लक्ष्मी की सहायता हेतु अपने नाग वासुकी को उनके साथ जाने का आदेश दिया. माता लक्ष्मी पाता लोग पहुंचती है. हर एक नाग कन्या का रूप धारण करती है. वे राजा बलि के पास पहुँचती है और उनसे सहायता के लिए अनुग्रह करती है और वासियों की जो उनकी सहायता हेतु आये थे वे एक रक्षा सूत्र में बदल जाते है और माता लक्ष्मी राजा बलि को ये रक्षा सूत्र बांध देती है.
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राजा बलि माता लक्ष्मी को वचन देते है की वे सदैव उनकी रक्षा करेंगे और उन्हें मनचाहा फल प्रदान करेंगे तो माता लक्ष्मी अपने देवी स्वरूप में आती है और उनसे श्रीहरि को मांग लेती है. तब राजा बलि उनसे कहते है की आज से जो भी स्त्री किसी पुरुष को रक्षा सूत्र बांध कर मन से भाई मानकर अपनी रक्षा का वचन मांगेगी तो भाई बहन की रक्षा करने के लिए बंधन में बन जायेगा. नाग रूपी रक्षासूत्र हमेशा भाई की कलाई पर बांधने से भाई की सारी बलाई टल जाएंगे. तब से श्रावण माह के पूर्णिमा को हर बहन अपने भाई को नाग रूपी मजबूत रक्षा सूत्र उसकी कलाई पर बांधती है और भाई उस रक्षा के बंधन में बंध जाता है. इसलिए इसे रक्षा बंधन का पर्व कहा जाता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau