भारत में ये कहावत आम है कि आस्तीन के सांप को दूध पिलाना. इस कहावत का अर्थ तो वैसे निगेटिव है लेकिन साल में एक दिन ऐसा भी आता है जब हर हिन्दू नाग को दूध पिलाकर पुण्य कमाना चाहता है. वह दिन है सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी यानी नागपंचमी (Nag Panchmi) का. इस दिन गली गली में सपेरे नाग लिए घूमते हैं और हम नाग की पूजा के बाद उसे श्रद्धा से दूध पिलाते हैं. पुण्य की आस में आपका नाग को दूध पिलाना हत्या जैसे पाप करा सकता है. क्योंकि सांप के लिए दूध जहर के समान है.
नागपंचमी (Nag Panchmi) पर नाग को दूध पिलाने का रिवाज भारत में अनादि काल से चला आ रहा है. इस बार 125 सालों बाद तीसरे सोमवार के दिन नागपंचमी (Nag Panchmi) पड़ रही है. मान्यता है कि नाग देवता की पूजा करने से भगवान शंकर जल्द प्रसन्न होते हैं.
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भगवान शिव को प्रसन्न करने के चक्कर में सांप को दूध पिलाते हैं. हमारी आस्था भले ही सांप को दूध पिलाने की बात कहती है, लेकिन विज्ञान कहता है कि सांप स्तनधारी जीव नहीं बल्कि रेप्टाइल है. रेप्टाइल जीव दूध को हजम नहीं कर सकते. ऐसे में दूध पीने से सांप की आंत में संक्रमण हो सकता है और उसती मृत्यु तक हो सकती है.
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वैज्ञानिकों का कहना है कि सांप का पाचन तंत्र ऐसा नहीं होता कि वह दूध को पचा सके. सांप मांसाहारी रेप्टाइल जीव है जबकि दूध का सेवन स्तनधारी करते हैं. ऐसे में सांप को दूध पिलाना एक तरह से उन्हें ही नुकसान पहुंचाने जैसा है.
सांप को रखते हैं भूखा
नाग पंचमी से महीने-डेढ़ महीने पहले ही सपेरे जंगल से सांपों को पकड़ते हैं और उन्हें भूखा-प्यासा छोड़ देते हैं. निर्ममता की हद ये होती है कि उनके जहरीले दांत को निकाल लिया जाता है.
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उन्हें कई दिनों तक भूखा रखने और एक डिब्बे में बंद रखने के बाद सांप कमजोर पड़ जाते हैं. ऐसे में जब उनके सामने बहुत दिनों बाद जब कोई कुछ भी रख देता है तो वे इसे पी जाते हैं.