Difference between Naga Sadhu and Aghori Baba: हिंदू धर्म में कई प्रकार के साधु-संत देखने को मिलते हैं.इन्हीं साधु-संत में नागा साधु और अघोरी बाबा भी शामिल हैं, जो अन्य साधुओं से अलग दिखते हैं. ये साधु अक्सर कुंभ मेले के दौरान नजर आते हैं. नागा साधु ही कुंभ मेले में स्नान करने वाले सबसे पहले व्यक्ति होते हैं. कुंभ उत्सव के दौरान आए श्रद्धालु इनका आशीर्वाद लेने के लिए उनके अखाड़े भी जाते हैं. यूं तो अघोरी बाबा और नागा साधु देखने में हू-ब-हू लगते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दोनों में काफी अंतर है? जी हां, नागा साधु और अघोरी बाबा बनने की प्रक्रिया अलग होती है. नागा साधु और अघोरी बाबा के तप करने तरीके से लेकर रहन-सहन, ध्यान, यहां तक की भोजन करना भी अलग होता है. ऐसे में आइए जानते हैं नागा साधु और अघोरी बाबा में क्या अंतर है? इससे पहले जानते हैं कौन है दुनिया का पहला अघोरी?
कौन है दुनिया का पहला अघोरी?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को अघोर पंथ का प्रणेता माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि शिव जी ने ही अघोर पंथ की उत्पत्ति की थी. वहीं अघोर शास्त्र का गुरु भगवान शिव के अवतार भगवान दत्तात्रेय को माना जाता है.
नागा साधु और अघोरी बाबा में अंतर (Difference between Naga Sadhu and Aghori Baba)
1. शिव की पूजा करते हैं पूजा
नागा साधु और अहघोरी बाबा को कठिन तपस्या करने के साथ-साथ उन्हें बहुत कठिन परीक्षाओं से भी गुजरना पड़ता है. नागा साधु और अहघोरी बाबा बनने में एक दो साल नहीं बल्कि लगभग 12 साल लग जाते हैं. तो सोचिए जरा इन लोगों को एक साधु बनने के लिए 12 साल तक कठोर तप का सामना करना पड़ता है. बता दें कि अघोरी बाबा बनने के लिए श्मशान में तपस्या करनी पड़ती है. इन्हें जीवन के कई साल श्मशान में ही बिताना पड़ता है. हालांकि नागा साधु और अघोरी बाबा दोनों ही शिव की पूजा करते हैं.
2. नागा साधु बनने के लिए जरूरी है ये चीज
नागा साधु बनने के लिए अखाड़े में गुरु बनाना अनिवार्य माना जाता है. गुरु अखाड़े का मुखिया या अखाड़े का ही कोई बड़ा विद्वान होना चाहिए. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि नागा साधु बनने की प्रक्रिया तभी पूरी होती है जब गुरु की शिक्षा उचित तरीके से प्राप्त की जाए. उसके बाद गुरु की सेवा के बाद वे नागा साधु बनने के अगले चरण में पहुंचते हैं. इसमें कोई शक नहीं की नागा साधु प्रशिक्षित योद्धा होते हैं. लेकिन अधोरी बाबा बनने के लिए किसी गुरु की जरूरत नहीं होती है. क्योंकि उनके गुरु स्वयं भगवान शिव हैं और अघोरियों को भगवान शिव का पांचवां अवतार माना जाता है. वहीं अघोरी श्मशान में कब्रिस्तान के पास बैठकर तप करते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से उन्हें दैवीय शक्तियां प्राप्त होती हैं.
3. दोनों हैं मांसाहारी, लेकिन अघोरी बाबा खाते हैं ये भी चीज
नागा साधु और अघोरी बाबा दोनों ही मांसाहारी होते हैं. हालांकि कुछ नागा साधु शाकाहारी भी हैं. यूं तो दोनों साधु ही मांस खाते हैं लेकिन अघोरी बाबा मानव मांस भी खाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अघोरी बाबा कलियुग में भगवान शिव का जीवित रूप हैं और ये भगवान शिव का ही रूप माने जाते हैं
4. दोनों के दिखावे में हैं अंतर
नागा साधु और अघोरी बाबा, दोनों के ही दिखावे में काफी अंतर है. एक तरफ नागा साधु जहां नग्न होकर घूमते हैं तो वहीं अघोरी बाबा अपने शरीर के निचले हिस्से को ढकने के लिए जानवरों की खाल के कपड़े या कोई अन्य कपड़ा पहनते हैं. अघोरी पोस्टमार्टम अनुष्ठानों में संलग्न होते हैं और अक्सर वे खंडहर भूमि में रहते हैं. अघोरी अपने शरीर पर श्मशान की राख लगाते हैं और कपाल और आभूषण बनाने के लिए मानव शवों की हड्डियों का उपयोग करते हैं.
5. ब्रह्मचर्य नियम का करते हैं पालन
नागा साधु और अघोरी बाबा परिवार से दूर रहकर पूर्ण ब्रह्मचर्य नियम का पालन करते हैं. नागा साधु और अघोरी बाबा को अपने परिवार तक का त्याग करना पड़ता है. अपनी तपस्या के समय में वे कभी भी अपने परिवार से नहीं मिलते. ऐसा कहा जाता है कि ध्यान के दौरान वे किसी भी प्रकार की गड़बड़ी नहीं चाहते हैं इसलिए अपने परिवारवालों से दूर रहते हैं. अघोरी के अंदर अच्छे-बुरे, प्रेम-घृणा, ईर्ष्या और क्रोध जैसे भाव दूर हो जाते हैं.
भले ही ये साधु एक जैसे दिखते हैं, लेकिन इनमें कई अंतर हैं चाहे वह वेशभूषा के बारे में हो या रहन-सहन या फिर तपस्या आदि के बारे में.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)
Source : News Nation Bureau